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जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में अदालतों की बढ़ती भूमिका

जर्मनी के ऐरलान्गन शहर में प्रदर्शन.
Unsplash/Markus Spiske
जर्मनी के ऐरलान्गन शहर में प्रदर्शन.

जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में अदालतों की बढ़ती भूमिका

जलवायु और पर्यावरण

हाल के वर्षों में विभिन्न देशों की अदालतों में जलवायु सम्बन्धी मुक़दमों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है जिस वजह से कोर्ट अब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के एक अहम स्थान के रूप में उभर रही हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की मंगलवार को जारी एक नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. 

यूएन पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट UNEP Global Climate Litigation Report: 2020 Status Review, के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में जलवायु सम्बन्धी मुक़दमे दोगुने हो गए हैं.

इस वजह से सरकारों और निकायों पर जलवायु संकल्पों को लागू करने का दबाव बढ़ रहा है और महत्वाकाँक्षी जलवायु कार्रवाई और अनुकूलन प्रयासों की दिशा में मापदण्डों का स्तर ऊँचा हो रहा है. 

यूनेप की क़ानूनी शाखा के कार्यवाहक निदेशक आर्नल्ड क्रेलहुबर ने बताया, “ स्वस्थ पर्यावरण के लिये अपने अधिकार का इस्तेमाल करने और न्याय पाने के लिये नागरिकों द्वारा अदालतों का रुख़ करने चलन बढ़ रहा है.”

इस रिपोर्ट को यूएन एजेंसी ने न्यूयॉर्क स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय के सबीन सेन्टर के साथ मिलकर तैयार किया है जोकि जलवायु परिवर्तन पर क़ानूनों पर ध्यान केन्द्रित करता है. 

रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु सम्बन्धी मुक़दमे ना सिर्फ़ अब आम हो चले हैं बल्कि उनमें सफलताएँ भी मिल रही हैं. 

वर्ष 2017 में 24 देशों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े 884 मुक़दमे लड़े गये थे. वर्ष 2020 के अन्त तक यह संख्या 38 देशों में बढ़कर डेढ़ हज़ार से ज़्यादा हो गई है. 

जलवायु सम्बन्धी अधिकाँश मुक़दमे अभी उच्च आय वाले देशों में ज़्यादा हैं, लेकिन हाल के समय में कोलम्बिया, भारत, पाकिस्तान, पेरु, फ़िलिपीन्स, और दक्षिण अफ़्रीका में इन मुक़दमों बढ़ोत्तरी देखने को मिली है.  

रिपोर्ट के अनुसार वादी (Plaintiffs) की पृष्ठभूमि में विविधता नज़र आने लगी है और इनमें ग़ैर-सरकारी संगठन, राजनैतिक दल, वरिष्ठ नागरिक, प्रवासी और आदिवासी लोग हैं. 

कार्यवाहक निदेशक आर्नल्ड क्रेलहुबर का मानना है कि जलवायु संकट को हल करने में न्यायाधीशों और अदालतों की एक अहम भूमिका है. 

यूएन एजेंसी का अनुमान है कि आगामी वर्षों में जलवायु सम्बन्धी मुक़दमों की संख्या बढ़ती रहेगी. 

कम्पनियों द्वारा जलवायु जोखिमों की ग़लत रिपोर्टिंग या चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में सरकार को मिली विफलताएँ इनकी अहम वजहें हो सकती हैं. 

साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला विस्थापन अनेक नए मुक़दमों को जन्म दे सकता है.