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महामारी के दौरान कुछ राजनेताओं की हरकतें निन्दनीय, नए अमेरिकी राष्ट्रपति से उम्मीदें

कोविड-19 महामारी ने नस्लीय भेदभाव का दायरा बहुत बढ़ा दिया और भेदभाव बड़े पैमाने पर दिखने भी लगा.
Unsplash/Thomas de Luze
कोविड-19 महामारी ने नस्लीय भेदभाव का दायरा बहुत बढ़ा दिया और भेदभाव बड़े पैमाने पर दिखने भी लगा.

महामारी के दौरान कुछ राजनेताओं की हरकतें निन्दनीय, नए अमेरिकी राष्ट्रपति से उम्मीदें

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के समय में, कुछ देशों में राजनैतिक नेतृत्व ने, निन्दनीय बर्ताव किया है. उन्होंने उम्मीद भी जताई है कि अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्ता संभालने के साथ ही, वर्ष 2021 एक बेहतर साल होगा. 

मिशेल बाशेलेट ने, मानवाधिकार दिवस के मौक़े पर आयोजित प्रेस वार्ता में, व्यापक दायरे वाले विषयों पर सवालों के जवाब दिये.

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उन्होंने कहा कि ये देखना दिल दहला देने वाला था कि कुछ राजनैतिक नेताओं ने कोविड-19 महामारी के ख़तरे को कोई अहमियत नहीं दी और मास्क पहनने और लोगों के भीड़ भरी बैठकों या समारोहों में इकट्ठा होने पर रोक लगाने जैसे ऐहतियाती उपायों को ही ख़ारिज कर दिया.

भरोसे के सीने में छुरा

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “कुछ राजनैतिक नेता तो अब भी, अनौपचारिक रूप से, समुदाय आधारित रोग प्रतिरोधी क्षमता के बारे में बातें कर रहे हैं, जैसे कि लाखों लोगों की ज़िन्दगियाँ ख़त्म हो जाना, कोई ऐसा नुक़सान हो, जिसे किसी ज़्यादा बड़ी अच्छाई के लिये, आसानी से सहन कर लिया जाए."

"एक महामारी का इस तरह राजनीतिकरण किया जाना, ग़ैरज़िम्मेदारी की सीमाओं से भी परे का व्य्वहार है, ये बिल्कुल निन्दनीय है.”

उससे भी बदतर, कुछ राजनैतिक नेताओं ने तो वैज्ञानिक प्रमाणों को ही ख़ारिज कर दिया और षडयन्त्रकारी व साज़िश भरी कहानियों व ग़लत जानकारी फैलाने को हवा दी.

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि इस तरह की हरकतों ने, बहुत ही बहुमूल्य चीज़ – भरोसे, की छाती में छुरा भोंका है. देशों के बीच भरोसा, और देशों के भीतर भरोसा. सरकारों में भरोसा, वैज्ञानिक तथ्यों में भरोसा, वैक्सीनों में भरोसा, भविष्य में भरोसा. 

“अगर हमें, इस आपदा से उबरकर एक बेहतर भविष्य बनाना है, जैसाकि हमारे पूर्वजों ने, दूसरे विश्व युद्ध से हुई तबाही के बाद किया था, तो हमें उसी तरह का भरोसा एक दूसरे के लिये पैदा करना होगा.” 

ब्राज़ील, यूगाण्डा और म्याँमार

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट चिली की पूर्व राष्ट्रपति हैं. उन्होंने लातीनी अमेरिका का उदाहरण एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दिया जहाँ आम आबादी को इसलिये परेशानियाँ और तकलीफ़ें उठानी पड़ी हैं क्योंकि वहाँ के नताओं ने कोविड-19 की मौजूदगी और इस महामारी के बारे में वैज्ञानिक सबूतों को ही नकार दिया. 

पत्रकारों द्वारा ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो के बारे में टिप्पणी करने के लिये ज़ोर देने पर, मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि ब्राज़ील के नेताओं को, विज्ञान द्वारा दिखाई जा रही चीज़ों के लिये और ज़्यादा खुले दिमाग़ से काम लेना होगा, और महामारी ने, ख़ासतौर से ब्राज़ील में नाज़ुक परिस्थितियों में रहने वाले समूहों पर, विषम अनुपात में असर डाला है.

उन्होंने ऐसे देशों की भी आलोचना की जिन्होंने महामारी को, लोगों के मानवाधिकार सीमित करने और चुनावों में देरी करने के लिये एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया.

इस सन्दर्भ में उन्होंने, यूगाण्डा और म्याँमार के दो ख़ास उदाहरण दिये जहाँ सत्तारूढ़ दलों ने, कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिये लगाई गई पाबन्दियों का इस्तेमाल, लोगों की राजनैतिक भागीदारी सीमित करने के लिये किया.

अमेरिकी आशाएँ

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि अमेरिका में भी, महामारी से निपटने के उपायों और प्रयासों का उच्च राजनीतिकरण हुआ है, लेकिन नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मानवाधिकारों और बहुपक्षवाद को प्राथमिकता देने के अनेक वादे और संकल्प ज़ाहिर किये हैं. 

इनमें, देश में बसाए जाने वाले शरणार्थियों की सख्या में बढ़ोत्तरी की योजना और आ-प्रवासी परिवारों के सदस्यों को अलग किये जाने पर रोक लगाना, मैक्सिको की सीमा पर बनाई जाने वाली सीमा दीवार का निर्माण रोकना, राजनैतिक पनाह या शरण दिये जाने की समूची व्यवस्था क समीक्षा करना, और 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में, अमेरिका की फिर से वापसी की योजनाएँ शामिल हैं. 

मिशेल बाशेलेट ने कहा, “इसलिये, मुझे उम्मीद है कि अमेरिका में नया प्रशासन, हमारे लिये, मेरा मतलब है कि मानवाधिकारों के लिये बेहतर हालात बनाएगा, मेरा ख़याल है कि, ये बहुत-बहुत बेहतर होगा. मैं इसे लेकर बहुत आशावान हूँ.”

उन्होंने कहा कि अगर इन वादों और संकल्पों पर अमल किया जाता है  तो, मेरा ख़याल है कि उनका, अमेरिका और वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के बारे मे सकारात्मक असर पड़ेगा.

“वो ट्रम्प प्रसासन द्वारा लागू की गई नीतियों को भी बदल देंगे, जिनके कारण मानवाधिकारों को गम्भीर नुक़सान हुआ, इनमें महिलाओं, समलैंगिकों, आ-प्रवासियों और पत्रकारों के मानवाधिकार शामिल हैं.”

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि लेकिन मानवाधिकारों पर अमेरिकी नेतृत्व आंशिक रूप में, इस पर भी निर्भर करेगा कि देश घरेलू चुनौतियों से किस तरह निपटता है. ऐसे में, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा, व्यवस्थित नस्लभेद से निपटने की ज़रूरत को एक प्राथमिकता के रूप में स्वीकार करना, एक सकारात्मक क़दम है.

चीन और इथियोपिया

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि वो चीन के शिनजियाँग स्वायत्त क्षेत्र में गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघन की लगातार ख़बरों पर बहुत व्यथित हैं, और हाँगकाँग में भी तेज़ी से सिमटते लोकतान्त्रिक दायरे पर भी चिन्तित हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि उनका कार्यालय, वर्ष 2021 के शुरुआती महीनों के दोरान ही, चीन में एक तकनीकी दल भेज सकेगा, जोकि ख़ुद उच्चायुक्त की यात्रा के लिये तैयारियाँ करने के लिये होगी.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ये भी कहा कि इथियोपिया के टिगरे क्षेत्र में संघर्ष क़ाबू से बाहर होता जा रहा है, जिसका आम आबादी पर दिल दहला देने वाले असर पड़ रहा है. सरकार द्वारा, लड़ाई बन्द हो जाने के दावों के बावजूद, वहाँ लड़ाई अब भी जारी है.

टिगरे में मानवाधिकार उल्लंघन

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा, “हमें, मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघन की पुष्ट जानकारी हासिल हुई है, जिनमें आम आबादी और नागरिक ठिकानों पर अन्धा-धुन्ध हमले, लूटपाट, अपहरण और महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के मामले शामिल हैं.”

“हमें, टिगरे में युवाओं को, अपने ही समुदायों के ख़िलाफ़ लड़ाई में इस्तेमाल करने के लिये भर्ती किये जाने की भी ख़बरें मिली हैं.”

मिशेल बाशेलैट ने कहा कि दुनिया अगर मानवाधिकारों के बारे में गम्भीरता रुख़ अपनाए तो, ख़ुद को भुखमरी, ग़रीबी, असमानता और सम्भवतः यहाँ तक कि जलवायु परिवर्तन से भी बचाने का टीकाकरण कर सकती है. 

उन्होंने कहा, “अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, ख़ासतौर से जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में, तो वर्ष 2020, और भी ज़्यादा आपदा वाले रास्ते की तरफ़ पहला क़दम साबित होगा, हम इस बारे में आगाह भी किये जा चुके हैं.”