ब्रिटेन: 'राष्ट्रीयता और सीमाएँ विधेयक' से 'अधिकार उल्लंघन के गम्भीर जोखिम'

संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा कि ब्रिटेन में सांसद, जिस नए “राष्ट्रीयता व सीमाएँ विधेयक” (Nationality and Borders Bill) पर संसद में चर्चा कर रहे हैं उससे भेदभाव और मानवाधिकारों के गम्भीर उल्लंघन का ख़तरा बढ़ेगा, और ये विधेयक दरअसल अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत देश की ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन भी करता है.
मानव तस्करी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर सायबहॉन मुल्लाली ने एक वक्तव्य में कहा है कि अगर “राष्ट्रीयता और सीमाएँ विधेयक” (Nationality and Borders Bill) पारित होकर क़ानून बन जाता है तो इससे तस्करी के शिकार लोगों के मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जिनमें बच्चे भी हैं; तमाम प्रवासियों और पनाह मांगने वालों के सामने दरपेश जोखिमों में बढ़ोत्तरी होगी; और अन्ततः इससे गम्भीर मानवाधिकार हनन का रास्ता खुलेगा.
🇬🇧#UnitedKingdom: #NationalityandBordersBill seriously undermines rights of trafficked persons, migrants & asylum seekers, increasing risks of exploitation, statelessness & arbitrary deprivation of citizenship. UN experts urge the Gov to reverse the bill: https://t.co/udQ5HWvW2r pic.twitter.com/wFDa0fkTE4
UN_SPExperts
उन्होंने कहा, “ये विधेयक, प्रवासियों और पनाह मांगने वाले बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की सरकार की ज़िम्मेदारी को पहचानने में नाकाम है, और इससे, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के उल्लंघन के साथ-साथ, देश विहीनता का बहुत बड़ा जोखिम उत्पन्न होता है.”
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के अनुसार, किसी सुरक्षित स्थान पर शरण या पनाह मांगना और उसका आनन्द उठाना, एक बुनियादी मानवाधिकार है.
अलबत्ता, ये विधेयक, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून और शरणार्थी क़ानून के अन्तर्गत, ब्रिटेन की ज़िम्मेदारियों का सम्मान नहीं करता है, बल्कि इसके उलट लोकतांत्रिक समाजों के बुनियादी संरक्षण को ही तार-तार करता है, और कमज़ोर व नाज़ुक हालात वाले लोगों को ख़तरनाक परिस्थितियों में धकेलता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह विधेयक संसद में पारित होकर क़ानून बन जाता है तो यह शरण आवेदकों व शरणार्थियों को दण्डित कर सकता है, जिससे अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के दण्ड विहीनता के सिद्धान्त का उल्लंघन होता है. साथ ही, इससे शरण या पनाह मांगने वाले लोगों के वर्गों के बीच भेदभाव होगा, जोकि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के उलट है.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने प्रवासियों और शरणार्थी महिलाओं के सामने दरपेश विशेष जोखिमों को भी रेखांकित किया है.
इस विधेयक में ये प्रावधान है कि जिन महिलाओं को लैंगिक हिंसा का सामना या अनुभव करना पड़ा है, उन्हें पनाह व सुरक्षा की ख़ातिर ब्रिटेन में दाख़िल होने की इजाज़त देने के बजाय, बाहर से ही वापिस लौटा दिया जाएगा.
विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाते हुए कहा, “तस्करी और आधुनिक दासता का मुक़ाबला करने के लिये सरकार की तरफ़ से जो बार-बार वक्तव्य दिये जाते हैं, उन वक्तव्यों को, इन अपराधों के पीड़ितों के लिये, बिना किसी भेदभाव के, क़ानून का समान संरक्षण सुनिश्चित करने की ख़ातिर, करनी में बदलना होगा.”
मानवाधिकर विशेषज्ञों ने गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस विधेयक से, “मनमाने ढंग से, नागरिकता छीने जाने” की सम्भावना बढ़ेगी.
उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि इस चलन की जड़, नस्लवाद और भेदभाव में बैठी हुई है जिसका एक व्यथित इतिहास रहा है, और इससे देश विहीनता का जोखिम बढ़ता है.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि ये विधेयक, राष्ट्रीय सुरक्षा की चिन्ताओं को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की इजाज़त देता है, जिससे भेदभाव बढ़ने और गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघन का जोखिम बढ़ता है, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, प्रवासियों और शरणार्थियों के ख़िलाफ़.
उन्होंने ब्रिटेन सरकार से, प्रस्तावित उपायों को पलट देने का आग्रह किया है.
इन विशेषज्ञों ने, नवम्बर, 2021 में ब्रिटेन सरकार को एक पत्र भेजा था जिसमें, इस विधेयक के बारे में विभिन्न चिन्ताओं का ब्यौरा दिया गया था.
शुक्रवार को जारी वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वालों में ये विशेषज्ञ शामिल हैं:
मानव तस्करी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर सायबहॉन मुल्लाली,
प्रवासियों के मानवाधिकारों पर विशेष रैपोर्टेयर फ़ेलिप ग़ोन्ज़ालेज़ मोरालेस,
आतंकवाद का मुक़ाबला करने के दौरान मानवाधिकारों के संरक्षण और प्रोत्साहन पर विशेष रैपोर्टेयर फ़ियोनुआला नीआलियन, और
दासता के आधुनिक रूपों पर विशेष रैपोर्टेयर टोमोया ओबोकाटा.
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर रीम अल सालेम ने भी इस वक्तव्य को अपना समर्थन दिया.
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद करती है. इनकी नियुक्ति किसी विशेष मानवाधिकार स्थिति या किसी देश में स्थिति की जाँच-पड़ताल करके, उसकी रिपोर्ट सौंपने के लिये की जाती है. ये पद मानद होते हैं और इन्हें इनके कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.