जलवायु आपदा: 'प्रकृति के साथ सुलह करने की घड़ी'
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु आपदा के ख़िलाफ़ लड़ाई को 21वीं सदी की सर्वोच्च प्राथमिकता क़रार दिया है. उन्होंने न्यूयॉर्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में दिये गए अपने एक उत्साहपूर्ण और स्पष्ट भाषण में ये बात कही.
इस भाषण के साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में जलवायु कार्रवाई माह शुरू हुआ है जिसमें वैश्विक जलवायु कार्रवाई और जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर प्रमुख रिपोर्टें जारी की जाएँगी.
Our planet is in a state of climate emergency.But I also see hope.There is momentum toward carbon neutrality. Many cities are becoming greener. The circular economy is reducing waste. Environmental laws have growing reach. And many people are taking #ClimateAction. pic.twitter.com/dDAHH279Er
antonioguterres
इसी कार्रवाई के तहत 12 दिसम्बर को जलवायु सम्मेलन आयोजित होगा, जोकि वर्ष 2015 में हुए, पेरिस समझौते की पाँचवीं वर्षगाँठ का मौक़ा है.
प्रकृति सदैव पलटवार करती है
यूएन प्रमुख ने पर्यावरण के साथ मानवता द्वारा छेड़छाड़ के नतीजों का ज़िक्र करते हुए ऐसी घटनाओं की तरफ़ ध्यान खींचा जिनके ज़रिये प्रकृति बढ़ती शक्ति और क्रोध के साथ अपनी प्रतिक्रिया दे रही है.
ये प्रतिक्रिया, जैव-विविधता के पतन, रेगिस्तान के विस्तार, और समुद्रों में रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ते तापमान के रूप में सामने आ रही है.
यूएन महासचिव ने मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 के बीच सम्बन्ध के भी स्पष्ट शब्दों में पेश किया.
उन्होंने कहा कि इनसानों और उनके मवेशियों द्वारा वन्य जीवों के पर्यावासों में लगातार दख़लअन्दाज़ी और अतिक्रमण, हमें और ज़्यादा जानलेवा बीमारियों के जोखिम में डाल रहे हैं.
कोविड-19 के कारण धीमी हुई आर्थिक गतिविधियों न वैसे तो हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों के कार्बन उत्सर्जन को अस्थाई तौर पर कुछ धीमा कर दिया है, कार्बन डाइ ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन गैसों का स्तर अब भी बढ़ रहा है.
वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया है.
इस चिन्ताजनक चलन के बावजूद, ग्रीनहाउस गैसों के एक बड़े हिस्से के लिये ज़िम्मेदार - जीवाश्म ईंधन उत्पादन भी काफ़ी बढ़ने की सम्भावना है.
हरित बटन दबाने का समय
महासचिव ने कहा कि ठोस वैश्विक कार्रवाई ये होगी कि विश्व अर्थव्यवस्था को हरित बटन के ज़रिये बदला जाए, और ऐसी टिकाऊ प्रणाली बनाई जाए जो नवीकरणीय ऊर्जा, हरित रोज़गारों और एक सहनशील भविष्य के लक्ष्यों से संचालित हो.
ये लक्ष्य हासिल करने का एक तरीक़ा – शून्य कार्बन उत्सर्जन की स्थिति हासिल करना है (शून्य कार्बन उत्सर्जन पर फ़ीचर यहाँ पढ़ सकते हैं).
इस मौर्चे पर उत्साहजनक संकेत नज़र आ रहे हैं जिनमें ब्रिटेन, जापान, चीन सहित अनेक विकासित देशों ने, अगले कुछ वर्षों के दौरान ये लक्ष्य हासिल करने के प्रति संकल्प व्यक्त किये हैं.
यूएन प्रमुख ने तमाम देशों, शहरों और कारोबारों का आहवान किया कि वो कार्बन तटस्थता का लक्ष्य हासिल करने के लिये वर्षश 2050 की समय सीमा निर्धारित करें.
इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये कार्बन उत्सर्जन में राष्ट्रीय स्तरों पर होने वाली बढ़ोत्तरी को धीमी करने और सभी लोगों को अपने स्तर पर अपना योगदान करने का भी आहवान किया गया है.
चूँकि नवीकरणीय ऊर्जा की लागत लगातार कम होती जा रही है, इसलिये इस विकल्प को अपनाना आर्थिक रूप से अक़्लमन्दी का रास्ता है. इस विकल्प को अपनाकर, अगले 10 वर्षों के दौरान, लगभग 1 करोड़ 80 लाख रोज़गार व कामकाज सृजित होंगे.
यूएन प्रमुख ने कहा कि इसके बावजूद, जी20 - विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश, निम्न कार्बन ऊर्जा के बदले, ऐसे क्षेत्रों पर 50 प्रतिशत और ज़्यादा संसाधन ख़र्च करने की योजना बना रहे हैं जो जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से जुड़े होंगे.
कार्बन की क़ीमत तय करें
बहुत से जलवायु विशेषज्ञ और कार्यकर्ता, अनेक वर्षों से कार्बन आधारित प्रदूषण की लागत को जीवाश्म ईंधन की क़ीमत तय करने में शामिल किये जाने की पुकार लगाते रहे हैं. यूएन प्रमुख ने भी इस पुकार से समर्थन व्यक्त करते हए कहा कि ऐसा करने से निजी और वित्तीय क्षेत्रों के लिये निश्चितता और भरोसे का माहौल बनेगा.
उन्होंने कहा कि कम्पनियों को अपने कारोबारी मॉडलों में बदलाव करना होगा, ताकि ज़्यादा संसाधन हरित अर्थव्यवस्था की तरफ़ जाएँ. साथ ही, लगभग 32 ट्रिलियन की सम्पदा वाले पैन्शन कोषों को भी कार्बन मुक्त वित्तीय उत्पादों और विकल्पों में निवेश करने के लिये क़दम आगे बढ़ाने होंगे.
यूएन महासचिव ने कहा कि बदलती जलवायु के साथ तालमेल बिठाने के प्रयासों में, कहीं और ज़्यादा धन निवेश करना होगा.धन की कमी के कारण ही, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में बाधाएँ आ रही हैं.
उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के सामने ये नैतिक अनिवार्यता और स्पष्ट आर्थिक दलील है कि मौजूदा और भविष्य में जलवायु के प्रभावों से बचाने के वास्ते सहनक्षमता बढ़ाने में, विकासशील देशों की मदद की जाए.