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'नैट-ज़ीरो' की दौड़, और दुनिया इस पर क्यों निर्भर है!

फ्राँस में एक सोलर पैनल फार्म के बीच से एक व्यक्ति लाल छाता लेकर जा रहा है.
Maxime Pontoire
फ्राँस में एक सोलर पैनल फार्म के बीच से एक व्यक्ति लाल छाता लेकर जा रहा है.

'नैट-ज़ीरो' की दौड़, और दुनिया इस पर क्यों निर्भर है!

जलवायु और पर्यावरण

अनेक देशों ने, आने वाले वर्षों में "शून्य उत्सर्जन" का लक्ष्य हासिल करने के मक़सद से, हाल ही में अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिये प्रतिबद्धताओं की घोषणा की है. यह शब्द आज दुनिया भर में गूँज रहा है और इसे अक्सर जलवायु परिवर्तन और इससे होने वाली तबाही से निपटने के लिये एक आवश्यक क़दम के रूप में देखा जाता है.

नैट-ज़ीरो क्या है और यह महत्वपूर्ण क्यों है?

सीधे शब्दों में कहें तो नैट-ज़ीरो का मतलब है कि हम वायुमण्डल में नया उत्सर्जन नहीं जुड़ने दे रहे हैं. उत्सर्जन जारी तो रहेगा, लेकिन वायुमण्डल से उसके बराबर मात्रा को सोखकर उसे सन्तुलित कर दिया जाएगा.

व्यावहारिक रूप में, हर देश जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते में शामिल हुआ है, जो वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर बनाए रखने का आहवान करता है. लेकिन, अगर हम जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाला उत्सर्जन, वायुमण्डल में फैलाना यूँ ही जारी रखते हैं, तो तापमान 1.5 के स्तर से ऊपर जाएगी, जिससे हर जगह लोगों के जीवन और आजीविका के लिये ख़तरा रहेगा.

पवन ऊर्जा की तरह,शुद्ध ऊर्जा भी शून्य उत्सर्जन हासिल करने का एक प्रमुख साधन है. मोंटेनेग्रो में स्थित पवन फार्म.
Unsplash/Appolinary Kalashnikova
पवन ऊर्जा की तरह,शुद्ध ऊर्जा भी शून्य उत्सर्जन हासिल करने का एक प्रमुख साधन है. मोंटेनेग्रो में स्थित पवन फार्म.

यही कारण है कि बड़ी संख्या में देश कार्बन तटस्थता, या अगले कुछ दशकों के भीतर "नैट ज़ीरो” की स्थिति प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर कर रहे हैं. यह एक बड़ा काम है, जिसमें अभी से महत्वाकाँक्षी कार्रवाई की आवश्यकता है.

2050 तक नैट-ज़ीरो उत्सर्जन पर पहुँचने का लक्ष्य है. लेकिन देशों को यह भी स्पष्ट करना होगा कि वो ये लक्ष्य कैसे हासिल करेंगे. नैट-ज़ीरो तक पहुँचने के प्रयासों में अनुकूलन व लचीलेपन के उपायों और विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण प्रबन्धन का समावेश होना ज़रूरी है.

तो दुनिया नैट-ज़ीरो की ओर कैसे बढ़ सकती है?

अच्छी ख़बर यह है कि नैट-शून्य का लक्ष्य हासिल करने के लिये तकनीकें मौजूद है और सभी की पहुँच में हैं. इसके लिये सबसे अहम है - प्रदूषण फैलाने वाले कोयले और गैस व तेल से चलने वाले बिजली स्टेशनों की जगह, पवन या सौर ऊर्जा फार्म जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों के ज़रिये, अर्थव्यवस्थाओं को स्वच्छ ऊर्जा से सशक्त करना. यह विकल्प बड़े स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने में सहायक होगा. इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा न केवल स्वच्छ है, बल्कि अक्सर जीवाश्म ईंधन की तुलना में सस्ती भी होती है.

अक्षय ऊर्जा द्वारा संचालित इलैक्ट्रिक वाहनों की ओर पूर्ण बदलाव भी उत्सर्जन को कम करने में एक बड़ी भूमिका निभाएगा ,जिससे दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण भी कम होगा. इलैक्ट्रिक वाहन तेज़ी से सस्ते और अधिक कुशल होते जा रहे हैं. नैट-ज़ीरो के लिये प्रतिबद्ध कई देशों ने जीवाश्म-ईंधन संचालित कारों की बिक्री को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म करने की योजना प्रस्तावित की है.

अन्य हानिकारक उत्सर्जन कृषि से आते हैं (बड़े स्तर पर ग्रीनहाउस गैस मीथेन पशुधन से पैदा होती है). यदि हम कम माँस और पौध-आधारित अधिक खाद्य पदार्थ खाते हैं, तो इसे बहुत कम किया जा सकता है. हालाँकि यहाँ संकेत काफी आशाजनक हैं – मिसाल के तौर पर "प्लांट-आधारित माँस" की बढ़ती लोकप्रियता, जो अब प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय फास्ट-फूड सेन्टरों पर बेचा जा रहा है.

जर्मनी के चार्जिंग स्टेशन पर एक इलेक्ट्रिक हाइब्रिड वाहन.
Unsplash/Marc Heckner
जर्मनी के चार्जिंग स्टेशन पर एक इलेक्ट्रिक हाइब्रिड वाहन.

बाकी उत्सर्जन का क्या होगा?

उत्सर्जन कम करना बेहद ज़रूरी है. नैट-ज़ीरो पर जाने के लिये हमें वायुमण्डल से कार्बन हटाने के तरीक़े भी खोजने होंगे. यहाँ भी, समाधान हमारे हाथ में हैं. सबसे महत्वपूर्ण समाधान तो हज़ारों साल से प्रकृति में मौजूद हैं.

इन "प्रकृति-आधारित समाधानों" में जंगल, पीटबॉग्स, मैन्ग्रोव, मिट्टी और यहाँ तक कि भूमिगत समुद्री शैवाल वन भी शामिल हैं, जो अत्यधिक कुशलता से सारे कार्बन को सोखने का काम करते हैं. यही कारण है कि वनों को बचाने, पेड़ लगाने और पीट व मैन्ग्रोव क्षेत्रों के पुनर्वास के साथ-साथ खेती की तकनीकों में सुधार करने के लिये दुनिया भर में प्रयास जारी हैं.

नैट-ज़ीरो हासिल करना किसकी ज़िम्मेदारी है?

यह हम सभी की व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है, अपनी आदतों को बदलने और अधिक टिकाऊ जीवन-यापन अपनाने की, जो पृथ्वी को कम नुक़सान पहुँचाता हो और जीवन शैली में ऐसे परिवर्तन करना, जो संयुक्त राष्ट्र के ‘Act Now’ अभियान में दिये गए हैं.

निजी क्षेत्र को भी संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट के ज़रिये कार्रवाई में शामिल होने की आवश्यकता है, जो व्यवसायों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और सामाजिक लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाने में मदद करता है.

हालाँकि,यह स्पष्ट है कि उत्सर्जन कम करने के लिये क़ानून और नियम बनाकर, राष्ट्रीय सरकारों को ही यह बदलाव लाने होंगे. 

कई देशों की सरकारें अब सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं. 2021 की शुरुआत तक, वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की 65 प्रतिशत से अधिक और विश्व अर्थव्यवस्था की 70 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाले देशों ने, कार्बन तटस्थता के लिये महत्वाकाँक्षी प्रतिबद्धताएँ बनाने का काम पूरा कर लिया होगा.

यूरोपीय संघ, जापान और कोरिया गणराज्य ने 110 से अधिक अन्य देशों के साथ मिलकर 2050 तक कार्बन तटस्थता का संकल्प लिया है; चीन का कहना है कि वह 2060 से पहले ऐसा करने में सक्षम होगा. 

इस चित्र में नज़र आ रहे प्राकृतिक आवासों को बहाल करने से क्यूबा में जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद मिलेगी.
UNDP
इस चित्र में नज़र आ रहे प्राकृतिक आवासों को बहाल करने से क्यूबा में जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद मिलेगी.

क्या ये प्रतिबद्धताएँ केवल राजनैतिक बयानबाज़ी हैं या फिर इन पर अमल भी होगा?

ये प्रतिबद्धताएँ लक्ष्य तक पहुँचने के लिये अच्छे इरादों का महत्वपूर्ण संकेत हैं, लेकिन इनपर तीव्र और महत्वाकाँक्षी कार्रवाई करना ज़रूरी है. इसके लिये एक महत्वपूर्ण क़दम है - राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी के तहत कार्रवाई की विस्तृत योजना प्रदान करना. ये अगले 5 से 10 वर्षों के भीतर उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य और कार्यों को परिभाषित करते हैं. साथ ही, ये सही निवेश के लिये मार्गदर्शन और पर्याप्त वित्त आकर्षित करने के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण हैं.

पेरिस समझौते के लिये अब तक 186 देशों ने एनडीसी विकसित किये हैं. इस साल, उनके द्वारा उच्च महत्वाकाँक्षा और कार्रवाई का प्रदर्शन करने वाली नई या नवीनतम योजनाएँ प्रस्तुत करने की उम्मीद है. एनडीसी रजिस्ट्री देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.

क्या नैट-ज़ीरो हासिल करना यथार्थवादी है?

हाँ! विशेषकर अगर हर देश, शहर, वित्तीय संस्थान और कम्पनी, 2050 तक नैट-ज़ीरो उत्सर्जन में बदलाव के लिये यथार्थवादी योजना अपनाए.

हानिकारक उत्सर्जन कम करने में राष्ट्रीय सरकारें ही मदद कर सकती हैं.
Unsplash/Daniel Moqvist
हानिकारक उत्सर्जन कम करने में राष्ट्रीय सरकारें ही मदद कर सकती हैं.

इसमें कोविड-19 महामारी के बाद की पुनर्बहाली एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक मोड़ हो सकता है. जब आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज लागू किये जाएँ, तो वह अक्षय ऊर्जा निवेश, हरित निर्माण और हरित सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने का एक वास्तविक अवसर होगा, जिससे हस्तक्षेपों की एक पूरी श्रृँखला के ज़रिये जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद मिलेगी.

लेकिन क्या सभी देश बदलाव करने की स्थिति में हैं?

यह बिल्कुल सच है. जी20 देशों जैसे प्रमुख उत्सर्जनकर्ता, जो 80 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, उन्हें विशेष रूप से, महत्वाकाँक्षा और कार्रवाई के अपने वर्तमान स्तर को काफ़ी बढ़ाने की आवश्यकता है.

इसके अलावा, यह भी ध्यान रखना होगा कि कमज़ोर देशों व सबसे कमज़ोर लोगों के लिये लचीलापन व सहनशीलता बनाने के लिये, अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. वे जलवायु परिवर्तन को सबसे कम प्रभावित करते हैं लेकिन उसका सबसे बुरा असर उन्ही पर होता है. लेकिन, लचीलापन और अनुकूलन क्रिया को पर्याप्त वित्तपोषण नहीं मिलता हैं, जिसकी उसे बेहद आवश्यकता है.

ऐसे में जब वे नैट-ज़ीरो स्थिति हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, विकसित देशों को विकासशील देशों में शमन, अनुकूलन और लचीलेपन के लिये एक खरब डॉलर प्रति वर्ष प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूर्ण करना चाहिये.

जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त राष्ट्र क्या कर रहा है?

• यह पेरिस समझौते और सतत विकास के लिये 2030 एजेण्डा के तहत जलवायु लक्ष्यों पर वैश्विक सहमति की एक व्यापक प्रक्रिया का समर्थन करता है. 
• यह जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक निष्कर्षों और अनुसन्धान का एक प्रमुख स्रोत है. 
• विकासशील देशों के भीतर, यह सरकारों को एनडीसी की स्थापना और निगरानी में मदद देता है, और आपदा जोखिमों को कम करके व जलवायु-स्मार्ट कृषि की स्थापना जैसे जलवायु अनुकूलन उपाय लागू करता है.

कुछ जलवायु तथ्य:

  • औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भ की तुलना में, पृथ्वी अब 1.1°C अधिक गर्म है. हम जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे या 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर सहमत लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सही रास्ते पर नहीं हैं.
  • 2010-2019 अब तक दर्ज सबसे गर्म दशक रहा है. कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मौजूदा हालात के मद्देनज़र, सदी के अन्त तक वैश्विक तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की उम्मीद है.
  • तापमान वृद्धि (अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस वृद्धि) से बचने के लिये, दुनिया को 2020 और 2030 के बीच प्रति वर्ष लगभग जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में 6 प्रतिशत कमी करने की आवश्यकता होगी. इसके बजाय देश औसतन 2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि की योजना ही दिखा रहे हैं.
  • जलवायु कार्रवाई से बजट ख़राब या अर्थव्यवस्था नष्ट नहीं होगी: वास्तव में, एक हरित अर्थव्यवस्था में स्थानान्तरण रोज़गार के नए अवसर प्रदान करेगा. यह सामान्य तरीक़े से किये गए व्यापार की तुलना में 2030 के मध्य तक 26 खरब डॉलर का प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ दे सकता है - और यह भी एक सीमित अनुमान है.