एचआईवी से वैश्विक नुक़सान, कोविड-19 के कारण, बहुत ज़्यादा होगा
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि देशों को एचआईवी/एड्स का मुक़ाबला करने के लिये नए महत्वाकाँक्षी लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये ताकि लाखों अतिरिक्त लोगों को कोविड-19 महामारी से सम्बन्धित संक्रमण और मौतों से बचाया जा सके.
एचआईवी और एड्स पर संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसी – UNAIDS ने गुरूवार को एक अपील करते हुए आगाह भी किया है कि महामारी ने एड्स का मुक़ाबला करने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया है, और वर्ष 2020 में हासिल किये जाने वाले लक्ष्यों में प्रगति बहुत पीछे हो गई है.
एजेंसी ने देशों से स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में कम संसाधन निवेश करने से सबक़ सीखने का आग्रह किया है. साथ ही, एड्स और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपदाओं का ख़ात्मा करने के लिये वैश्विक कार्रवाई तेज़ करने का भी आहवान किया है.
मानवीय क़ीमत
यूएन एड्स संगठन ने एचआईवी के संक्रमणों से निपटने के उपायों और कार्यक्रमों पर कोरोनावायरस महामारी के दीर्घकालीन असर के बारे में कुछ नए आँकड़ों का ज़िक्र करते हुए कहा कि अब से लेकर वर्ष 2022 तक, एचआईवी संक्रमण के तीन लाख अतिरिक्त मामले हो सकते हैं.
इनके अलावा, एड्स से सम्बन्धित 1 लाख 48 हज़ार मौतें भी हो सकती हैं.
यूएन एड्स संगठन की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयीमा का कहना है, “एचआईवी संक्रमण से निपटने के लिये, एक व्यापक, अधिकार-आधारित, और व्यक्ति-केन्द्रित कार्रवाई में समुचित और पर्याप्त संसाधन निवेश करने में सामूहिक नाकामी के नतीजे एक भयावह नुक़सान के रूप में सामने आए हैं.”
“केवल राजनैतिक रूप से आकर्षक लगने वाले कार्यक्रम लागू करने भर से कोविड-19 या एड्स के तूफ़ान का रुख़ नहीं मोड़ा जा सकता. वैश्विक प्रयासों को पटरी पर वापिस लाने के लिये ज़रूरी है कि इनसानों को प्राथमिकता पर रखा जाए, और ऐसी असमानताएँ ख़त्म की जाएँ, जिनमें बड़ी बीमारियाँ अपनी जड़ें जमाती हैं.”
यून एड्स ने एक नई रिपोर्ट में कहा है कि सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में वैसे तो वर्ष 2020 के लिये निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिये गए हैं, जिनमें बोत्सवाना और एस्वातिनी शामिल हैं, “लेकिन अनेक देश अब भी पीछे चल रहे हैं.”
एड्स का ख़ात्मा करने की राह पर
यूएन एड्स के दस्तावेज़ों में वर्ष 2025 के लिये प्रस्तावित लक्ष्यों का विवरण दिया गया है जो ऐसे देशों की कार्रवाइयों पर आधारित हैं जिन्होंने एचआईवी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में कामयाबी हासिल की है.
इन लक्ष्यों में, ख़ासतौर पर, एचआईवी और प्रजनन व यौन स्वास्थ्य सेवाओं बड़े पैमाने पर मुहैया कराने पर विशेष ध्यान दिया गया है, और इन प्रयासों में दण्डात्मक क़ानून, नीतियाँ, कलंक मानसिकता और भेदभाव ख़त्म करने पर भी ध्यान दिया गया है.
यूएन एड्स के अनुसार, “महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में बहुत ज़्यादा संसाधन निवेश करने के साथ-साथ, एचआईवी संक्रमण का मुक़ाबला करने के लिये भी साहसिक, महत्वकांक्षी लेकिन हासिल करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करने होंगे.”
संगठन का कहना है, “इन लक्ष्यों में इनसानों को केन्द्र में रखा जाए... ऐसे लोगों को, जो ज़्यादा जोखिम का सामना कर रहे हैं और जिन्हें समाज में हाशिये पर धकेल दिया गया है, -युवा महिलाएँ, लड़कियाँ, किशोर, यौनकर्मी,ट्रान्सजैण्डर लोग, दवाओं के इन्जेक्शन लगाने वाले लोग, समलैंगिक, और ऐसे पुरुष जो पुरुषों के साथ यौन गतिविधियाँ करते हैं.”
अगर ये लक्ष्य हासिल कर लिये जाते हैं तो, दुनिया एड्स को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़तरे को रूप में, वर्ष 2030 तक ख़त्म करने के प्रयासों में सही राह पर होगी.