यूएन एड्स की पुकार, कोविड को उखाड़ फेंकने के लिये ख़त्म करनी होंगी विषमताएँ

एचआईवी-एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में वैश्विक नेतृत्व मुहैया करा रही यूएन एजेंसी – यूएन एड्स की बुधवार को जारी एक नई रिपोर्ट में दिखाया गया है कि एचआईवी के साथ जीने वाले लोगों को इस वायरस और कोविड-19 की दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विषमताओं के बढ़ते दायरे के कारण उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से वंचित होना पड़ रहा है.
यूएन एड्स की 'वैश्विक एड्स ताज़ा जानकारी 2021' नामक रिपोर्ट के अनुसार, एचआईवी से संक्रमित लोगों को कोविड-19 महामारी का संक्रमण लगने और मौत होने की ज़्यादा सम्भावना का सामना करना पड़ रहा है, इसके बावजूद ऐसे लोगों की अधिकतर संख्या को जीवनरक्षक वैक्सीनें नहीं उपबल्ध हो पा रही हैं.
एचआईवी संक्रमण के जितने नए मामले सामने आ रहे हैं, उनमें लगभग 65 प्रतिशत संख्या महत्वपूर्ण आबादी और उनके यौन साथियों की है, मगर इसके बावजूद उनकी बड़ी संख्या को एचआईवी और कोविड-19 का मुक़ाबला करने के उपायों से बाहर रखा गया है.
इनमें लगभग 8 लाख बच्चे हैं जो एचआईवी के साथ जीवन जी रहे हैं.
यूएन एड्स की प्रमुख विनी ब्यानयीमा ने कहा है, “एचआईवी के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू हुए 40 वर्ष हो चुके हैं. सफलताओं और विफलताओं, दोनों ने ही हमें सिखाया है कि हम किसी महामारी का सामना करने के लिये तब तक तैयारी नहीं कर सकते या उसे तब तक नहीं हरा सकते जब तक कि विषमताएँ दूर ना की जाएँ..."
"...जब तक इनसान केन्द्रित और अधिकारों के सम्मान पर आधारित रुख़ ना अपनाया जाए और हर एक ज़रूरतमन्द इनसान तक पहुँच बनाने के लिये समुदायों के साथ एकजुट होकर काम ना किया जाए.”
इंग्लैंण्ड और दक्षिण अफ़्रीका में किये गए अध्ययनों से मालूम होता है कि एचआईवी से संक्रमित लोगों के लिये, कोविड-19 के कारण मौत होने का जोखिम, सामान्य स्वास्थ्य वाली आबादी की तुलना में दो गुना है.
विनी ब्यानयीमा का कहना है, “हम एचआईवी से सबक़ सीखने में नाकाम रहे हैं, जब लाखों संक्रमित लोगों को जीवन रक्षक दवाइयाँ मुहैया नहीं कराई गईं और ऐसे लोग उपचार व दवाइयों की उपलब्धता में मौजूद विषमताओं के कारण मौत के मुँह में चले गए.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे समय में जबकि धनी देश और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, कोविड-19 की वैक्सीनों के उत्पादन और आपूर्ति पर अपना लाभकारी दबदबा बनाए हुए हैं, विकासशील देशों में, वैक्सीन के अभाव में, करोड़ों लोगों की ज़िन्दगी अधर में लटकी हुई नज़र आती है.
यह स्थिति दुनिया को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रही है क्योंकि विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियाँ भारी बोझ का सामना कर रही हैं. यूगाण्डा एक ऐसा ही उदाहरण है जहाँ फ़ुटबॉल स्टेडियम अस्थाई अस्पतालों में तब्दील किये जा रहे हैं.
विनी ब्यानयीमा ने कहा, “योरोप के धनी देशों में लोग गर्मियों का लुत्फ़ उठाने की तैयारी में जुटे हैं क्योंकि वहाँ की अधिकतर आबादी को कोविड-19 की वैक्सीन लग गई है जबकि वैश्विक दक्षिण संकट में है.”
यूएन एड्स की इस ताज़ा रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कोविड-19 के दौरान लागू की गई तालाबन्दियों और पाबन्दियों ने किस तरह एचआईवी जाँच व्यवस्थाओं में व्यवधान डाला है.
वर्ष 2020 के दौरान, एचआईवी संक्रमण के जो लगभग 15 लाख नए मामले दर्ज किये गए थे, उनमें मुख्य रूप से ट्रांसजैण्डर, महिलाओं, यौनकर्मियों, समलैंगिक पुरुषों, ड्रग्स का सेवन करने वालों और उनके यौन संगियों की आबादी शामिल थी.
ये संख्या दुनिया भर में एचआईवी से संक्रमित लोगों का लगभग 65 प्रतिशत है.
अधिकतर देशों में ये संक्रमित आबादी हाशिये पर रहने को मजबूर है और इन संक्रमित लोगों को एचआईवी सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों के दौरान, अलबत्ता एचआईवी जाँच व उपचार में बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी हुई है, मगर वयस्कों की तुलना में, बच्चों के लिये इन सुविधाओं की कमी का दायरा बहुत बड़ा है.
वर्ष 2020 के दौरान, एचआईवी से संक्रमित वयस्कों के लिये इलाज उपलब्ध होने का दायरा 74 प्रतिशत था जबकि बच्चों के लिये ये संख्या केवल 54 प्रतिशत थी. परिणामस्वरूप लगभग 8 लाख बच्चे, जाँच व इलाज से वंचित रह गए.
बहुत से बच्चों का जन्म के समय ही एचआईवी परीक्षण नहीं किया गया इसलिये उनकी एचआईवी स्थिति के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है, जिससे उनके लिये उपचार की सुविधा हासिल करना पाना बहुत मुश्किल है.
यूएन एड्स का कहना है, “यह क़तई स्वीकार्य नहीं है.”