समावेश व लोगों की ज़्यादा सहभागिता से शासन नीतियाँ बेहतर होंगी
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि ना केवल कोविड-19, बल्कि जलवायु परिवर्तन, ज़्यादा भागीदारी वाली राजनीति व मानवाधिकारो के लिये जद्दोजहद, और कम होता सार्वजनिक अविश्वास, इन सभी चुनौतियों ने समाजों को कड़ी निगरानी के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है जिन्हें सामाजिक व आर्थिक अन्यायों ने अपनी चपेट में ले रखा है.
महासचिव ने मानवाधिकारों पर उच्चस्तरीय सप्ताह के समापन अवसर पर आगाह करते हुए कहा कि इस तरह के संकट सभी देशों की शासन प्रणाली के लिये भारी-भरकम चुनौती पेश करते हैं, और उन पर पार पाने के लिये एक ऐसी रणनीति की ज़रूरत है जो एकता, एकजुटता और सहानुभूति पर आधारित हो.
Meaningful participation is "a major asset to governments" – UN Human Rights Chief @mbachelet says strengthening inclusive and effective participation is "a concern of deep global urgency".Full speech: https://t.co/UAn22UdlCy #UNGA pic.twitter.com/wUBRRTOSIn
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बराबरी के ज़रिये नेतृत्व
यूएन प्रमुख ने ऐसा नेतृत्व मुहैया कराए जाने का आहवान किया जो लैंगिक समानता पर आधारित हो. उन्होंने हाल की रिपोर्टों का हवाला दिया जिनमें मालूम हुआ है कि महिलाओं ने कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने में ज़्यादा मुस्तैदी दिखाई, ठोस जानकारी के आधार पर निर्णय लिये, सहानुभूति व हमदर्दी के साथ नेतृत्व मुहैया कराया, और ऐसे समावेशी गठबन्धन बनाए जिन्होंने बेहतर नतीजे हासिल किये.
“शासन प्रणाली में नए सिरे से जान फूँकना और उसे रचनात्मक बनाने की कुँजी दरअसल निर्णय प्रक्रिया में लोगों व सिविल सोसायटी की सार्थक सहभागिता है जिनसे उनका जीवन प्रभावित होता है.”
मानवाधिकारों पर उच्च स्तरीय कार्यक्रम यूएन महासभा की वार्षिक जनरल डिबेट के साथ-साथ ही आयोजित किये जाते हैं. इस कार्यक्रम में मानवाधिकारों की महत्ता और एक औज़ार के रूप में बहुपक्षवाद की महत्ता पर विचार किया गया.
साथ ही कोविड-19, से लेकर जलवायु संकट और विकास जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के उपायों पर भी चर्चा की गई.
दिखावटी भागीदारी से सावधान!
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते ये सुनिश्चित किये जाने का आहवान किया कि निर्णय प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी केवल दिखावटी होकर ना रह जाए, बल्कि ये भागीदारी सार्थक व प्रभावशाली हो.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भागीदारी का निर्णयों पर असल प्रभाव हो, और ये समयसंगत व टिकाऊ हो: ये बहुत अहम है कि भागीदारी समावेशी हो, ख़ासतौर से ये भागीदारी बहुत हाशिये पर धकेल दिये गए और नाज़ुक हालात में जीने वाले लोगों व समूहों तक बढ़ाई जाए.
मिशेल बाशेलेट ने भागीदारी के बारे में पाँच महत्वपूर्ण सन्देशों पर ज़ोर दिया. पहला, भागीदारी को शासन प्रणाली के ज़रूरी सिद्धाँत के रूप में देखा जाए,
दूसरा, ये संयुक्त राष्ट्र के मूल उद्देश्यों को हासिल करने के लिये एक कुँजी है – टिकाऊ विकास, संघर्ष की रोकथाम और मानवाधिकारों को बढ़ावा दिया जाना.
तीसरा, भागीदारी ना केवल अपने आप में एक मानवाधिकार है, बल्कि यह उन अन्य अधिकारों का भी सहायक है और उन अन्य अधिकारों पर निर्भर है जो प्रभावशाली शासन प्रणाली के लिये ज़रूरी हैं – विकास और शान्ति.
और जब लोगों को ख़ुद को प्रभावित करने वाले निर्णयों को आकार देने की प्रक्रिया में भाग लेने से रोका जाता है तो, शासन प्रणाली के लिये गम्भीर परिणितियाँ हो सकती हैं.
और अन्ततः इसे तत्काल प्राथमिकता समझा जाना होगा.
मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि दुनिया इस समय शासन प्रणाली के मामले में एक चौराहे पर खड़ी है. महामारी ने असमानताएँ ना केवल उजागर कर दी हैं, बल्कि वहीं पर अपने लिये ईंधन भी देख लिया है. ये असमानताएँ विकास, जलवायु परिवर्तन और शान्ति व सुरक्षा के ख़राब शासन का परिणाम होती हैं.
उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार बदलाव की इन बुलन्द माँगों को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकती.