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बहुपक्षवाद का बोलबाला

संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2030 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर बैठक की तैयारी.
UN Photo/Manuel Elias
संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2030 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर बैठक की तैयारी.

बहुपक्षवाद का बोलबाला

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र के दूसरे दिन विभिन्न वक्ताओं ने व्यापार से लेकर जलवायु परिवर्तन तक और विकास से लेकर बीमारियों का मुक़ाबला करने के मुद्दों का जिक्र करने के साथ साथ Multilateralism यानी बहुपक्षवाद पर भी ख़ास ज़ोर दिया.

Multilateralism दरअसल एक ऐसी अवधारणा है जिसके तहत विभिन्न पक्षों को साथ लेकर चलने, उनकी राय को अहमियत देने और एक साथ मिलकर विभिन्न लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयास किए जाते हैं.

इसे सहकारिता या बहुपक्षवाद भी कहा जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशिष्ठ मंच से विभिन्न राजनैतिक दृष्टिकोण झलकने के साथ-साथ छोटी और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों, विभिन्न महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्राध्यक्षों और सरकार अध्यक्षों ने राजनैतिक और वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर Multilateralism यानी बहुलवाद पर आधारित एक वैश्विक व्यवस्था की ज़ोरदार हिमायत की.

इटली के प्रधानमंत्री जिज़प्पे कोन्ते का कहना था कि आज के बिखरे हुए, बहुध्रुवीय और लगातार बदलते वैश्विक परिवेश में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को और ज़्यादा असरदार Multilateralism की ज़रूरत है. साथ ही शान्ति, न्याय और समानता पर आधारित एक अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था के महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में एक ज़्यादा मज़बूत संयुक्त राष्ट्र की भी आवश्यकता है.

क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल डायज़ कैनेल ने ऐलान के अन्दाज़ में कहा – शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा और व्यवस्थागत समस्याओं का टिकाऊ समाधान निकालने के लिए Multilateralism पर अमल करना बहुत ज़रूरी है. इसके तहत अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों के सिद्धान्तों और नियमों को पूरी तरह से सम्मान देते हुए उन पर अमल करना भी आवश्यक है तभी एक बहु-ध्रुवीय, लोकतांत्रिक और समानता पर आधारित विश्व की संकल्पना को आगे बढ़ाया जा सकता है.

अनेक मामलों में तो ऐसा लगा कि बहुत से वक्ता अपने-अपने देशों का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे थे कि उनके देशों के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ दरपेश हैं और उनके देशों ने क्या उपलब्धियाँ हासिल की हैं. लेकिन बहुत से नेता अपने सम्बोधन के दौरान बहुत जल्द ही अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर Multilateralism की ज़रूरत के मुद्दे पर आ जाते थे.

नामीबिया के राष्ट्रपति डॉक्टर हेगे गीनगॉब ने कहा कि विश्व धीरे-धीरे ऐसा स्थान बन गया है जहाँ एकतरफ़ा कार्रवाइयों का चलन बढ़ रहा है जोकि बहुत चिन्ताजनक है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ये चलन लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धान्तों के विरुद्ध है जिनके आधार पर संयुक्त राष्ट्र की नींव रखी गई. साथ ही लोकतांत्रिक सिद्धान्त समावेशी और भागीदारे वाले टिकाऊ विकास के लिए अनिवार्य हैं. उन्होंने कहा कि इस कारण से ये बहुत ज़रूरी है कि Multilateralism को बिना और देरी किए तुरन्त अपनाना होगा.

घाना के राष्ट्रपति नाना अफूको अड्डो ने व्यापार के क्षेत्र में Multilateralism की महत्ता पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि इस क्षण जब हम इस महासभा में अपनी बात रख रहे हैं, तो विश्व की दो महाशक्तियों – अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है. इस व्यापार युद्ध के दुष्परिणाम उन देशों को भुगतने पड़ेंगे जिन्हें इस मामले में अपनी राय रखने का मौक़ा ही नहीं है, ऐसे देशों में छोटा सा देश घाना भी है. इस तरह की घटनाएँ ये साबित करती हैं कि इस दुनिया में सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं.

क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिन्दा ग्रेबर कीतारोविच ने भी Multilateralism की ज़रूरत में अपनी आवाज़ शामिल की. उनका कहना था कि Multilateralism इस समय बहुत दबाव का सामना कर रहा है. चूँकि इंसानियत से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण समस्याएँ कोई भी देश अकेला हल नहीं कर सकता इसलिए Multilateralism आज के दौर में बहुत ज़रूरी हो गया है.

क्रोएशियाई राष्ट्रपति कोलिन्दा ग्रेबर कीतारोविच संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र के दौरान विश्व नेताओं को सम्बोधित करते हुए.
UN Photo/Cia Pak
क्रोएशियाई राष्ट्रपति कोलिन्दा ग्रेबर कीतारोविच संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र के दौरान विश्व नेताओं को सम्बोधित करते हुए.

स्लोवाकिया के राष्ट्रपति आन्द्रे किसका ने कहा कि Multilateralism कोई बहुत आसान रास्ता भी नहीं लेकिन ये भी सच है कि दुनिया को आगे ले जाने का यही एक मात्र रास्ता बचा है. रोमानिया के राष्ट्रपति क्लाउस लोहान्नीस ने युवाओं, सिविल सोसायटी, पत्रकारों और कारोबारी लोगों तक ज़्यादा पहुँच बढ़ाने का आहवान करते हुए कहा कि Multilateralism और वैश्विक नेतृत्व के लिए इन सभी की बहुत ज़रूरत है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरे दिन सभी वक्ताओं ने Multilateralism का समर्थन या हिमायत ही की हो. पोलैंड के राष्ट्रपति आन्द्रेज दूदा ने चेतावनी के अन्दाज़ में कहा कि Multilateralism का हर समर्थक इसका सन्दर्भ देशों के बीच समानता के बारे में नहीं लेता. उनका कहना था कि कोई ये भी कह सकता है कि नकारात्मक Multilateralism भी तो मौजूद हो सकता है जहाँ सत्ता का इस्तेमाल अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए किया जाता है और दूसरे इन्सानों के भाग्य और भविष्य के बारे में उनकी भागीदारी के बिना ही फ़ैसला कर लिया जाता है.

“यूरोप और पोलैंड इस तरह के Multilateralism के शिकार होते रहे हैं, पूरी 18 और 19वीं सदी के दौरान और दूसरे विश्व युद्ध तक.”

पोलैंड के राष्ट्रपति ने देशों के बीच समानता पर आधारित सकारात्मक Multilateralism स्थापित करने का आहवान किया.

उन्होंने कमज़ोर देशों को अतिरिक्त अवसर दिए जाने की भी हिमायत की जिनमें वोट के अतिरिक्त अधिकार और महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाली संस्थाओं में ज़्यादा प्रतिनिधित्व शामिल हो.

पुर्तगाल के राष्ट्रपति मारसेलो रिबेला डी सूज़ा ने एक पक्षीय विश्व व्यवस्था के मौजूदा चलन की भर्त्सना करते हुए कहा कि हम एक पक्षीय व्यवस्था और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को वित्तीय योगदान देने से पीछे हटने के चलन की निन्दा करते हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसे देशों और लोगों में राजनैतिक संकीर्णता होती है जिसमें सदियों पुरानी ग़लतियाँ दोहराने का ख़तरा बना रहता है.

अफ्रीकी देशों सहित अनेक नेताओं ने Multilateralism के प्रति अपना संकल्प व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र को और ज़्यादा लोकतांत्रिक बनाए जाने का आहवान किया.

ख़ासतौर सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या 15 से बढ़ाने की माँग करते हुए अफ्रीकी और अन्य विकासशील देशों को और ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने की माँग की.

ग़ौरतलब है कि सुरक्षा परिषद में ही अन्तरराष्ट्रीय फ़ैसले लिए जाते हैं जो क़ानूनी तौर पर बाध्य होते हैं.