सुरक्षा परिषद का आग्रह - स्कूलों पर हमले बन्द हों
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने माँग करते हुए कहा है कि दुनिया भर में लड़ाई-झगड़ों, संघर्षों वाले व अशान्त स्थानों पर स्कूलों, छात्रों और शिक्षकों पर हमले रोके जाने होंगे. ये माँग गुरूवार को जारी सुरक्षा परिषद के अध्यक्षीय वक्तव्य में उठाई गई है जो हमलों से शिक्षा की सुरक्षा के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े से मेल खाती है.
15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद ने ये अपील एक खुली बैठक के हिस्से के रूप में जारी की है जिसमें शिरकत करने वाले प्रतिनिधियों ने शैक्षणिक संस्थानों पर बढ़ते हमलों पर गहरी चिन्ता जताई.
“#Education is not a choice but a right."--SRSG GambaRead the full remarks by the Special Representative of the Secretary-General for #children and armed conflict at the Security Council Open Debate ➡️https://t.co/qwPgGJlb5J#ACTtoProtect #children#UN75 pic.twitter.com/6ODgDwMYT3
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यूएन महासचिव की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल वर्ष 2019 में ही शैक्षणिक संस्थानों पर लगभग 500 हमले किये गए.
35 देशों में कक्षाओं पर तबाही
दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में कम से कम 35 ऐसे देश हैं जहाँ लड़ाई-झगड़े व संघर्ष जारी हैं और उन देशों में क़रीब साढ़े सात करोड़ बच्चे रहते हैं.
सीरिया, इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़े, अफ़ग़ानिस्तान और सोमालिया ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्ष 2019 में स्कूलों पर सबसे ज़्यादा हमले हुए.
सशस्त्र संघर्ष और बच्चों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने गुरूवार को सुरक्षा परिषद को बताया कि स्कूलों पर हमले किया जाना युद्ध की एक ऐसी रणनीति नज़र आती है जो बढ़त पर है.
ख़ासतौर से सहेल क्षेत्र में जहाँ स्कूलों को केवल इसीलिये हमलों का निशाना बनाया गया क्योंकि वो स्कूल थे, और अगर उन स्कूलों में लड़कियाँ पढ़ती थीं तो और भी ज़्यादा हमलों का निशाना बनाया गया.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने हालात को और ज़्यादा ख़राब बना दिया है.
इन हालात में स्कूलों के बन्द होने और बिखरती अर्थव्यवस्थाओं के कारण ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं जिनमें बच्चों को बाल सैनिकों के रूप में इस्तेमाल करने, यौन शोषण व बाल विवाह के लिये बहलाना-फ़ुसलाना आसान हो जाता है.
वर्जीनिया गाम्बा का कहना था, “पाबन्दियों व तालाबन्दियों के कारण बच्चों के लिये ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता भी बहुत कम हो गई है."
"ख़ाली पड़े स्कूल संघर्षरत पक्षों के लिये शायद लूटमार करने या स्कूलों को सैन्य गतिविधियों के लिये इस्तेमाल करने का अच्छा बहाना हों.”
सख़्त क़ानून व नियम ज़रूरी
सुरक्षा परिषद का ये अध्यक्षीय वक्तव्य निजेर और बेल्जियम ने तैयार किया था, जिसमें सभी पक्षों से अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों का पालन करने का आहवान किया गया है. इनमें जिनीवा कन्वेन्शन, बाल अधिकारों पर कन्वेन्शन और सशस्त्र संघर्षों में जीने वाले बच्चों की स्थिति से सम्बन्धित स्वैच्छिक प्रोटोकॉल शामिल हैं.
वक्तव्य में ना केवल स्कूलों और अस्पतालों पर होने वाले हमलों की तीखी भर्त्सना की गई है, बल्कि बच्चों को बाल सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किये जाने, बच्चों का अपहरण और यौन शोषण किये जाने की भी गहरी निन्दा की गई है.
साथ ही ये भी माँग की गई है कि तमाम सम्बद्ध पक्ष इस तरह की गतिविधियाँ तुरन्त बन्द करें.
वक्तव्य में संघर्ष वाले क्षेत्रों में हमलों की धमकियों या हमले होने के कारण बन्द हुए स्कूलों की स्थिति पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की गई.
साथ ही सभी सम्बद्ध पक्षों से ऐसी गतिविधियों या कार्रवाइयों से दूर रहने को कहा गया है जिनके कारण बच्चों के लिये शिक्षा उपलब्धता पर असर पड़ता हो.
लड़कियाँ जानबूझकर निशाना
सुरक्षा परिषद ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गम्भीर चिन्ता जताते हुए कहा कि स्कूलों पर हमले किये जाने के पीछे असल मंशा लड़कियों और महिलायों को निशाना बनाना रहा हो.
वक्तव्य में स्कूलों, छात्रों और शिक्षकों पर हमलों के लिये ज़िम्मेदार पक्षों या लोगों की जवाबदेही निर्धारित करने की पुख़्ता व्यवस्था नहीं किये जाने की भी निन्दा की गई है.
साथ ही यूएन महासचिव से आग्रह भी किया गया है कि स्कूलों का सैन्य गतिविधियों के लिये इस्तेमाल किये जाने के मामलों पर नज़र रखी जाए, क्योंकि ऐसा करना अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर ने भी इस मौक़े पर सुरक्षा परिषद के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस सप्ताह अनेक देशों में स्कूल छात्रों के लिये अपने दरवाज़े खोलने की तैयारियाँ कर रहे हैं और ऐसा कोविड-19 महामारी के माहौल में हो रहा है.
"ऐसे में हमारे पास ये अवसर मौजूद है कि ऐसे स्थानों पर नज़र डालें जहाँ स्कूल में शिक्षा हासिल करने के लिये जाना भी ख़तरों से भरा हुआ है, यहाँ तक कि कभी-कभी तो जानलेवा भी साबित हो सकता है."
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मई 2020 में पारित एक प्रस्ताव के ज़रिये 9 सितम्बर को – शिक्षा को हमलों से बचाने के लिये अन्तरारष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की व्यवस्था की है.
ये मुद्दा महासभा के एजेण्डा पर वर्ष 2005 से ही रहा है और 2015 में शुरू किये गए सुरक्षित स्कूल घोषणा-पत्र में भी इस मुद्दे पर ख़ासा ज़ोर है.