वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

इसराइल-हमास समझौता होगा महामारी का मुक़ाबला करने में मददगार

यूएन एजेंसी द्वारा संचालित एक स्वास्थ्य केंद्र से कर्मचारी वृद्ध फ़लस्तीनी महिला को दवाई देते हुए.
UNRWA/Khalil Adwan
यूएन एजेंसी द्वारा संचालित एक स्वास्थ्य केंद्र से कर्मचारी वृद्ध फ़लस्तीनी महिला को दवाई देते हुए.

इसराइल-हमास समझौता होगा महामारी का मुक़ाबला करने में मददगार

शान्ति और सुरक्षा

मध्य पूर्व क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठतम अधिकारी निकोलय म्लैदेनॉफ़ ने फ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ाज़ा के भीतर और आसपास के इलाक़ों में कोविड-19 महामारी के बावजूद हाल के समय में बढ़े तनाव को कम करने के लिये हुए समझौते का स्वागत किया है.

मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिये संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक निकोलय म्लैदेनॉफ़ ने हमास और इसराइल के बीच हुए समझौते का स्वागत किया जो सोमवार को वजूद में आया.

इसका मक़सद पिछले कुछ सप्ताहों से सीमा से हो रही बमबारी को ख़त्म करना है.

Tweet URL

निकोलय म्लैदनॉफ़ ने मंगलवार को एक ट्विटर सन्देश में कहा, “विस्फोटक उपकरण व छोटी मिसाइलें दागे जाने को ख़त्म करके, बिजली बहाल कर दी जाएगी तो संयुक्त राष्ट्र कोविड-19 संकट का सामना करने के उपाय जारी रखने में सक्षम हो सकता है. सभी पक्षों को शान्तिपूर्ण समझदारी दिखानी होगी.”

स्थायी तालाबन्दी

इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों के लिये संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल लिन्क ने भी हमास और इसराइल के बीच हुए समझौते का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही ग़ाज़ा में हाल के सप्ताहों के दौरान सशस्त्र हिंसा में हुई बढ़ोत्तरी पर चिन्ता भी जताई है.

ध्यान रहे कि ग़ाज़ा की आबादी लगभग 20 लाख है और वहाँ हमास की सरकार है.

माइकल लिन्क ने कहा, “ग़ाज़ा को एक मानवीय फुसफुसाहट में तब्दील कर दिया गया है. फ़लस्तीनी सशस्त्र गुटों द्वारा रॉकेट और विस्फोटक सामग्री से लदे गुब्बारे इसराइली सीमा की तरफ़ दागना, और इसराइल द्वारा मिसाइल हमलों के ज़रिये अत्यधिक बल प्रयोग करने के पीछे दरअसल, उस स्थिति से उत्पन्न भीषण हालात हैं जिनमें इसराइल ने 13 वर्षों से ग़ाज़ा की चौतरफ़ा नाकेबन्दी कर रखी है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल लिन्क ने इसराइल द्वारा ग़ाज़ा की लम्बी अवधि से चली आ रही नाकेबन्दी के परिणामस्वरूप उत्पन्न स्थिति और कठिनाइयों की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा कि स्वास्थ्य व्यवस्था बैठ रही है, बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई है और अपर्याप्त व अविश्वनीय बिजली आपूर्ति होती है.

उन्होंने कहा, “ग़ाज़ा एक ऐसी जगह बनने के कगार पर पहुँच गया है जहाँ रहना मुमकिन नहीं है. दुनिया भर में ऐसी कोई अन्य जगह नहीं है जहाँ इस तरह की स्थायी नाकेबन्दी हुई हो, जिसके तहत लोग यात्रा और व्यापार नहीं कर सकें."

ये भी पढ़ें: मध्य पूर्व के लिये विनाशकारी है - फ़लस्तीनी इलाक़ों को छीनने की इसराइली योजना

"और ये नियन्त्रण एक ऐसी क़ाबिज़ ताक़त ने किया है जो अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के साथ-साथ अपनी मानवीय ज़िम्मेदारियाँ पूरी नहीं करती है.”

उन्होंने कहा कि सम्मान व नैतिकता के अन्तरराष्ट्रीय मानकों के तहत तकलीफ़ में घिरे इनसानों के साथ इस तरह की सख़्तियाँ बरतने की इजाज़त नहीं है.

महामारी का मुक़ाबला 

इस बीच समुदायों में कोविड-19 महामारी के बढ़ते संक्रमण के मामले चिन्ता का विषय हैं.

माइकल लिन्क ने कहा, “नाकेबन्दी का दंश झेल रहे ग़ाज़ा में महामारी के सन्दर्भ में एक अच्छी बात तो ये रही है कि वहाँ अभी तक संक्रमण दाख़िल नहीं हो पाया है.”

हालाँकि मानवाधिकार विशेषज्ञ ने आगाह करते हुए कहा कि अगर महामारी ने ग़ाज़ा में भी अपनी जड़ जमा ली तो उसके बेहद गम्भीर परिणाम हो सकते हैं.

माइकल लिन्क ने कहा, “वैसे तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय महामारी का मुक़ाबला करने के लिये चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति कर रहा है, मगर ग़ाज़ा में स्वास्थ्य देखभाल का बुनियादी ढाँचा सक्षम नहीं है."

"ख़ासतौर से महामारी का व्यापक फैलाव रोकने के लिये अस्पतालों की क्षमता और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या, टैस्ट किट, और साँस लेने में मदद करने वाले उपकरणों की भारी कमी है.”

नाकेबन्दी ख़त्म हो

माइकल लिन्क की नज़र में इसराइल और हमास के बीच हुआ समझौता “ग़ाज़ा में मानवाधिकार व्यापक रूप में सुनिश्चित करने की दिशा में पहला क़दम कहा जा सकता है, ये केवल कोई अस्थायी क़दम नहीं हो सकता जिसके अगले चरण में फिर से अदावत का सिलसिला शुरू हो जाए.”

उन्होंने कहा कि नाकेबन्दी की सख़्त ज़रूरत है, नाकि केवल अस्थायी मरहम पट्टी भर करने की. साथ ही ऐसे साधन व औज़ार भी उपलब्ध कराए जाने की ज़रूरत है जिनसे आर्थिक विकास हो सके और फ़लस्तीनियों को आत्मनिर्णय का अधिकार मिल सके.

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि टिकाऊ शान्ति व ग़ाज़ा में बहुत ज़रूरी पुनर्निर्माण तभी सम्भव है जब वहाँ रहने वाले लोगों के बुनियादी अधिकारों का पूर्ण सम्मान किया जाए.

यूएन विशेष रैपोर्टेयर

संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर और स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ किसी विशेष देश में मानवाधिकार सम्बन्धी किसी ख़ास स्थिति या मुद्दे की निगरानी करते हैं. इनकी नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा होती है और ये संयुक्त राष्ट्र के नियमित कर्मचारी नहीं होते हैं, ना ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.