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म्याँमार: आगामी चुनाव समावेशी व लोकतान्त्रिक रास्ता अपनाने का एक अवसर

म्याँमार के राख़ीन प्रान्त के सित्तवे क़स्बे में एक मुस्लिम वॉर्ड आँग मिन्गलार के कुछ निवासीगण.
OCHA/P.Peron
म्याँमार के राख़ीन प्रान्त के सित्तवे क़स्बे में एक मुस्लिम वॉर्ड आँग मिन्गलार के कुछ निवासीगण.

म्याँमार: आगामी चुनाव समावेशी व लोकतान्त्रिक रास्ता अपनाने का एक अवसर

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि म्याँमार की सरकार को नवम्बर में होने वाले राष्ट्रीय चुनावों को एक ऐसे अवसर के रूप में इस्तेमाल करना चाहिये जिससे एक पूर्ण समावेशी लोकतान्त्रिक मार्ग प्रशस्त हो, और जातीय अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे तकलीफ़देह बर्ताव और उनके मानवाधिकार उल्लंघन के मूलभूत कारणों का हल निकाला जा सके.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय में दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी जेम्स रॉडहैवर ने कहा है कि म्याँमार के उत्तरी हिस्से में रहने वाले लगभग सात लाख रोहिंज्या लोगों को जब हिंसा से बचकर सुरक्षा की तलाश में बांग्लादेश भागना पड़ा था.

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उसके तीन साल बाद, “म्याँमार के भीतर हालात और बदतर हो गए हैं और रोहिंज्या लोगों की वापसी के लिये अनुकूल हालात बनाने के वास्ते कुछ ख़ास प्रयास नहीं किये गए हैं.”

इस बीच म्याँमार के सुरक्षा बलों और अराकान आर्मी के बीच नया संघर्ष छिड़ गया है जिसके कारण मध्य व उत्तरी राख़ीन प्रान्त में आमजन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिनमें अल्पसंख्यक रोहिंज्या समुदाय के लोग भी हैं.

वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी ने एक प्रैस विज्ञप्ति में कहा है, “ये बहुत अहम है कि नवम्बर में होने वाला मतदान इस तरह से समावेशी, स्वतन्त्र, और निष्पक्ष हो कि म्याँमार अपने सभी लोगों की इस चुनाव में पूर्ण और समान भागीदारी का सम्मान करे, और ऐसा ही सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में हो.”

चुनाव में सार्थक भागीदारी सुनिश्चित हो

प्रैस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नवम्बर में होने वाला मतदान रोहिंज्या समुदाय के लोगों के राजनैतिक अधिकार बहाल करने का एक अवसर मुहैया कराता है.

रोहिंज्या समुदाय के लोग वर्ष 2010 तक सभी मतदानों में हिस्सा लेते रहे थे. अलबत्ता, उन्हें 2015 के मतदान से बाहर कर दिया गया था.

ऐसी भी ख़बर है कि कम से कम चार रोहिंज्या राजनैतिक नेताओं ने आने वाले मतदान के लिये अपनी उम्मीदवारी की इच्छा जताई था लेकिन उनकी अर्ज़ियाँ नामंज़ूर कर दी गई हैं. 

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इस तरह लोगों को मतदान की प्रक्रिया से बाहर रखने से रोहिंज्या समुदाय के लोगों को उनके बुनियादी अधिकारों का लाभ उठाने पर रोक लग जाती है.

वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी जेम्स रॉडहैवर का कहना है, “म्याँमार सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये तुरन्त क़दम उठाने होंगे जिनके ज़रिये रोहिंज्या लोग आगामी चुनाव में सार्थक शिरकत कर सकें, उम्मीदवारों और मतदाताओं, दोनों ही रूपों में.”

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने म्याँमार के अधिकारियों का आहवान करते हुए ये भी कहा है कि विस्थापित रोहिंज्या लोगों की वापसी और उनके विस्थापन के लिये ज़िम्मेदार मूलभूत कारणों का हल तलाश करने के लिये सच्ची प्रतिबद्धता दिखाई जाए.

इनमें 1982 के नागरिकता क़ानून में संशोधन करके रोहिंज्या लोगों की नागरिकता बहाल की जाए और उनके ख़िलाफ़ हुए अपराधों की जवाबदेही तय की जाए.

एक जटिल शरणार्थी संकट

जटिल रोहिंज्या शरणार्थी संकट अगस्त 2017 में उस समय शुरू हुआ था जब म्याँमार के उत्तरी हिस्से के एक दूरगामी इलाक़े में कुछ पुलिस चौकियों पर हमले हुए थे.

उन हमलों के लिये कथित तौर पर रोहिंज्या समुदाय से सम्बन्धित कुछ सशस्त्र गुटों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.

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उन हमलों के बाद रोहिंज्या अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ व्यवस्थित और सुनियोजित हमले हुए थे, और पीड़ितों में मुख्य रूप से अल्पसंख्यक मुस्लिम थे.

मानवाधिकार संगठन और संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी उस दमनकारी कार्रवाई को नस्लीय ख़ात्मा क़रार दे चुके हैं.

उस दमनकारी कार्रवाई के बाद के सप्ताहों के दौरान 7 लाख से भी ज़्यादा रोहिंज्या लोग अपने घर छोड़कर सुरक्षा की तलाश में बांग्लादेश पहुँच गए थे जिनमें मुख्य रूप से बच्चे, महिलाएँ और वृद्धजन थे. उनमें से ज़्यादातर के पास पहने हुए कपड़ों के अलावा कोई ख़ास सामान नहीं था.

उस व्यापक जन विस्थापन से पहले भी लगभग दो लाख रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश में शरण लिये हुए थे जो म्याँमार से विस्थापित हुए थे.