रोहिंज्या शरणार्थी, 3 साल बाद, पहले से कहीं ज़्यादा असहाय
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों का कहना है कि तीन साल पहले म्याँमार में रहने वाले रोहिंज्या लोगों को उनके घरों से बाहर निकाल दिया गया था जिसके बाद उन्हें सीमा पार बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी थी. रोहिंज्या शरणार्थी संकट के तीन वर्ष गुज़र जाने के बाद भी बेघर रोहिंज्या महिलाएँ, पुरुष और बच्चे पहले से कहीं ज़्यादा असहाय हालात में हैं.
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) का कहना है कि लगभग सभी शरणार्थी जीवित रहने के लिये खाद्य सहायता पर निर्भर हैं.
As #Rohingya children from Myanmar enter their fourth year as refugees in #Bangladesh, efforts must be redoubled to secure a return that is voluntary, safe, dignified and sustainable. Read more here: https://t.co/939y8OTYuo pic.twitter.com/EgfcabTwvh
UNICEFROSA
यूएन खाद्य एजेंसी की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ बिर्स ने मंगलवार को मीडिया वार्ता में कहा, “विश्व खाद्य कार्यक्रम की सहायता के दायरे से बाहर वाले शिविरों में खाद्यान्न की उपलब्धता कम हो रही है और चीज़ों के दाम भी बढ़ रहे हैं.”
प्रवक्ता ने बताया कि कोविड-19 महामारी को रोकने के प्रयासों के तहत लागू हुई तालाबन्दी की वजह से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है जिसके कारण ताज़ा खाद्य पदार्थों की उपलब्धता भी प्रभावित हुई है.
कोविड-19 महामारी के कारण विश्व खाद्य कार्यक्रम का ई-वाउचर कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ है जिसके तहत 88 प्रतिशत शरणार्थियों को खाद्य सहायता मुहैया कराई जाती है.
इस कार्यक्रम के तहत सभी शरणार्थियों तक वर्ष 2020 की पहली छमाही में ही खाद्य सहायता पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन कोविड-19 के कारण अब ये लक्ष्य साल के आख़िर तक हासिल करने के प्रयास किये जा रहे हैं.
प्रवक्ता ने बताया कि उन अस्थाई खाद्य सामग्री वितरण केन्द्रों पर कोविड-19 का ख़तरे कम करने के उपाय किये गए हैं जहाँ से लगभग 12 प्रतिशत शरणार्थियों को चावल, दालें और तेल वितरित किया जाता है.
प्रवक्ता ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता प्रयास जारी रखने का आग्रह किया है, क्योंकि इन सहायता प्रयासों के बिना हालात और भी ज़्यादा तेज़ी से ख़राब हो सकते हैं.
प्रवक्ता एलिज़ाबेथ बिर्स ने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय समुदाय रोहिंज्या समुदाय की मदद करने के प्रयासों से मुँह नहीं मोड़ना चाहिये.”
विनाशकारी हो सकती है कोविड-19 महामारी
ऐसी आशंकाएँ व्यक्ति की गई हैं कि बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्सा में स्थित कॉक्सेज़ बाज़ार में बेक़ाबू कोविड-19 महामारी फैलने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. ध्यान रहे कि ये शरणार्थी शिविर दुनिया में सबसे बड़ा और भीड़ वाला है.
केवल 13 किलोमीटर वर्ग किलोमीटर इलाक़े में कई लाख लोग रह रहे हैं और ऐसे में कोविड-19 से बचने के लिये एक प्रभावी उपाय - सामाजिक दूरी बनाए रखना लगभग असम्भव नज़र आने वाला लक्ष्य है.
कोविड-19 के अलावा लगातार होती बारिश और ख़तरनाक मौसन ने भी चुनौतियों में इज़ाफ़ा किया है. मानवीय सहायता ख़बरों के अनुसार, वर्ष 2020 के दौरान मॉनसून की भारी बारिश के कारण एक लाख से भी ज़्यादा शरणार्थी प्रभावित हुए हैं, इस बारिश ने बहुत से आवासीय ठिकाने तबाह कर दिये और फ़सलों को भी बारिश का पानी बहा ले गया.
शिक्षण में बाधा
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ के अनुसार कोविड-19 के कारण रोहिंज्या शरणार्थी बच्चों की ज़िन्दगी भी गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है. शरणार्थी शिविर में शिक्षण केन्द्र मार्च के बाद से ही बन्द हैं, बांग्लादेश के अन्य हिस्सों में भी शिक्षण केन्द्र बन्द हैं. इस कारण लगभग तीन लाख बच्चे और किशोर सीखने के अवसरों से वंचित हैं.
दक्षिण एशिया के लिये यूनीसेफ़ की क्षेत्रीय निदेशक जीन गॉफ़ का कहना है, “रोहिंज्या शरणार्थी बच्चों को अपने बेहतर भविष्य के लिये अपना ज्ञान और कौशल विकसित करने के लिये अवसरों की ज़रूरत है. ये ज्ञान और कौशल उन्हें शान्ति व स्थिरता में योगदान करने का मौक़ा मुहैया कराएंगे.”
यूनीसेफ़ और उसके साझीदार संगठन बच्चों को उनके आवास स्थानों पर ही सिखाने के प्रयासों में मदद कर रहे हैं, इन प्रयासों में अभिभावकों और देखभाल करने वाले लोगों को भी शामिल किया जा रहा है. अलबत्ता अनेक तरह की चुनौतियाँ बरक़रार हैं, जिनमें एक ये भी है कि बहुत से अभिभावक लिख-पढ़ नहीं सकते.
असाधारण मज़बूती
असाधारण चुनौतीपूर्ण व कठिन परिस्थितियों के बावजूद, शरणार्थी आबादी कोविड-19 महामारी के ख़तरे का मुक़ाबला करने के प्रयासों में बढ़-चढ़कर योगदान कर रही है.
यूनीसेफ़ का कहना है कि कोरोनावायरस का फैलान रोकने के प्रयासों के तहत शरणार्थी शिविर में मानवीय सहायताकर्मियों की संख्या भी बहुत सीमित कर दी गई है.
इस कारण मानवीय सहायता संगठनों और यूएन एजेंसियों ने ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराने और कोविड-19 महामारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों में नए तरीक़े खोजे हैं.
इन प्रयासों में रोहिंज्या स्वेच्छाकर्मियों और बांग्लादेश के नागरिकों का सहयोग बहुत अहम रहा है.
मसलन, जुलाई में, यूनीसेफ़ और उसके साझीदार संगठनों ने विटामिन-ए की अतिरिक्त ख़ुराकों वाली गोलियाँ बाँटने के लिये दरवाज़े-दरवाज़े जाकर पहुँचाईं. रोहिंज्या स्वेच्छाकर्मियों ने छह महीन से लेकर 5 वर्ष तक की उम्र वाले लगभग एक लाख 54 हज़ार बच्चों तक पहुँचने में अहम मदद की.
उस अभियान में लक्ष्य की संख्या के लगभग 97 प्रतिशत बच्चों तक पहुँच बनाई गई जोकि एक अदभुत उपलब्धि है, ख़ासतौर से भारी मॉनसूनी बारिश और चुनौतीपूर्ण हालात को देखते हुए.
यूनीसेफ़ की क्षेत्रीय निदेशक जीन गॉफ़ का कहना है, “रोहिंज्या शरणार्थी बच्चों और उनके परिवारों ने बांग्लादेश में निर्वासन में रहने के दौरान असाधारण साहस व मज़बूती दिखाए हैं. अकल्पनीय कठिन परिस्थितियों के बावजूद... इन परिवारों ने हमें हर दिन सिखाया है कि मज़बूती, शक्ति और सहनशीलता क्या होते हैं.”