रोहिंज्या शरणार्थियों की एक 'पूरी पीढ़ी की आशाएं दांव पर'

म्यांमार से भागकर बांग्लादेश आने वाले रोहिंज्या शरणार्थी दैनिक जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं जिस वजह से एक पूरी पीढ़ी में हताशा घर कर रही है और आशाएं धूमिल हो रही हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर ने कहा है कि इस पीढ़ी की उम्मीदों पर खरा उतरने के काम में विफल होने का जोखिम कोई विकल्प नहीं है.
वर्ष 2017 में म्यांमार से जान बचाने के प्रयासों में सात लाख से ज़्यादा रोहिंज्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश में शरण ली थी और इस पलायन को दो साल पूरे हो रहे हैं.
इस अवसर पर यूनीसेफ़ की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें शिक्षा और कौशल विकसित करने के प्रयासों में तत्काल निवेश पर बल दिया गया है.
“बांग्लादेश में रह रहे रोहिंज्या समुदाय के युवाओं और बच्चों के लिए सिर्फ़ जान बचाना काफ़ी नहीं है. यह बेहद आवश्यक है कि उन्हें गुणवत्तापूर्ण ढंग से सिखाया जाए और ऐसे कौशल विकसित किए जाएँ जो उनके दीर्घकालीन भविष्य के लिए अहम हैं.”
For the Rohingya children and youth now in Bangladesh, mere survival is not enough. It is absolutely critical that they are provided with the quality learning and skills development that they need to guarantee their long-term future. https://t.co/m3BJVo58aQ
unicefchief
यूनीसेफ़ प्रमुख हेनरिएटा फ़ोर का कहना है कि सिखाने और प्रशिक्षण देने के लिए सामग्री उपलब्ध कराना एक बड़ा काम है और यह सभी साझेदारों के समर्थन से ही संभव हो सकता है. लेकिन एक पूरी पीढ़ी के बच्चों और किशोरों की आशाएं दांव पर लगी हैं और इस काम में विफल नहीं हुआ जा सकता..
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि सीखने के अवसरों के अभाव में रोहिंज्या युवा नशीली दवाओं और तस्करों के चंगुल में फंस जाते हैं जो हताश लोगों को बांग्लादेश से बाहर ले जाने की पेशकश करते हैं.
महिलाओं और लड़कियों को रात में उत्पीड़न और शोषण का सामना करना पड़ता है. इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए यूएन एजेंसी का लक्ष्य युवक-युवतियों को शिक्षा प्रदान करना है ताकि वे कई जोखिमों से बच सकें – इनमें लड़कियों की कम उम्र में शादी जैसी समस्या भी है.
बांग्लादेश में कुटुपालोंग शिविर में छह लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं. इसके अलावा हज़ारों लोगों ने म्यांमार के कॉक्सेस बाज़ार में कई शिविरों में शरण ली हुई है.
संयुक्त राष्ट्र मानवीय राहत एजेंसियों ने अक्सर ध्यान दिलाया है कि रोहिंज्या समुदाय के लोग बेहद जोखिम भरे हालात में रहने के लिए मजबूर हैं.
मॉनसून की बारिश से बॉंस और तिरपाल से बनाए गए अस्थाई शिविरों के ढहने का ख़तरा बना रहता है जिसके घातक नतीजे हो सकते हैं.
यूनीसेफ़ के मुताबिक़ वर्ष 2019 में 21 अप्रैल और 10 जुलाई के बीच मॉनसून की वजह से शरणार्थी शिविर में छह बच्चों सहित 10 लोगों की मौत हुई और 42 घायल हुए.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार रोहिंज़्या शरणार्थियों के लिए म्यांमार लौटने के अनुकूल हालात अब भी नहीं बन पाए हैं.
कॉक्सेस बाज़ार शिविरों में ज़रूरतमंदों के लिए बुनियादी सार्वजनिक सेवाएँ बांग्लादेश सरकार के नेतृत्व में उपलब्ध कराई जाती हैं जिनमें स्वास्थ्य, पोषक भोजन, पानी, साफ़-सफ़ाई शामिल हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे शरणार्थी संकट लंबा खिंच रहा है, बच्चे और युवा सिर्फ़ बुनियादी ज़रूरतों के पूरा होने से आगे क़दम बढ़ाना चाह रहे हैं.
वे गुणवत्तापरक शिक्षा चाहते हैं जिससे उनके लिए आशावान भविष्य का रास्ता तैयार हो सके.
एजेंसी के मुताबिक़ चार से 14 साल के क़रीब दो लाख 80 हज़ार बच्चों को अब शिक्षा के लिए मदद मिल रही है.
इनमें एक लाख 92 हज़ार बच्चे 2,167 शिक्षा केंद्रों में जाते हैं लेकिन 25 हज़ार बच्चों को अब भी ऐसे ऐसे कार्यक्रम उपलब्ध नहीं हैं.
यूनीसेफ़ ने चिंता जताई है कि 15 से 18 वर्ष की उम्र के लगभग सभी बच्चे किसी भी शिक्षा केंद्र का हिस्सा नहीं हैं.
यूनीसेफ़ और अन्य एजेंसियों ने बांग्लादेश और म्यांमार की सरकारों से रोहिंज्या समुदाय के बच्चों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा संसाधनों का उपयोग करते हुए ज़्यादा बेहतर ढंग से शिक्षा प्रदान करने की अपील की है.