म्याँमार: नागरिकों की जबरन वापसी पर रोक की पुकार
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने म्याँमार में मौजूदा हालात के मद्देनज़र, शरणार्थियों और प्रवासियों को जबरन वहाँ वापिस भेजे जाने पर स्वैच्छिक रोक लगाए जाने का आहवान किया है.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क की बुधवार को ये अपील, मलेशिया द्वारा 6 अक्टूबर को म्याँमार के 100 से ज़्यादा नागरिकों को जबरन वापिस स्वदेश भेज दिये जाने के सन्दर्भ में आई है.
UN Human Rights Chief @volker_turk calls for moratorium on any forced returns of refugees & migrants to #Myanmar, given dire human rights crisis.
Returning people to a country where they are at risk of serious harm is forbidden under international law.
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UNHumanRights
म्याँमार वापिस भेजे गए लोगों में दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिन्होंने यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के माध्यम से पनाह मांगी थी, जबकि अन्य लोग भी संरक्षण सम्बन्धी गम्भीर स्थिति में थे.
ग़ौरतलब है कि म्याँमार की सेना ने फ़रवरी 2021 में, तत्कालीन लोकतांत्रिक सरकार का तख़्तापलट करके, देश की सत्ता पर नियंत्रण कर लिया था. उसके बाद से ही देश में राजनैतिक, मानवाधिकार और मानवीय संकट की स्थिति बनी हुई है.
कार्यकर्ताओं को जोखिम
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा, “हिंसा और अस्थिरता के बढ़ते स्तरों के मद्देनज़र, और म्याँमार की अर्थव्यवस्था और संरक्षण प्रणालियों के विघटन के बीच, किसी भी नागरिक को म्याँमार वापिस भेजने के लिये, ये समय बिल्कुल भी सही नहीं है.”
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, फ़रवरी के तख़्तापलट के बाद से, कम से कम 70 हज़ार लोग म्याँमार छोड़कर बाहर चले गए हैं, और देश के भीतर भी दस लाख से अधिक लोग विस्थापित हैं.
इनके अतिरिक्त, 2017 में म्याँमार की सेना और सुरक्षा बलों की हिंसा और उत्पीड़न से बचने के लिये, सुरक्षा की ख़ातिर देश छोड़ने को विवश, लगभग दस लाख लोग, पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर जी रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल रोहिंज्या समुदाय के लोग हैं.
इनके अलावा म्याँमार के लाखों अन्य लोग भी, बेहतर आर्थिक अवसरों की ख़ातिर क्षेत्र के अन्य देशों में पहुँचे हुए हैं, जिनमें से बहुत से लोगों का दर्जा अनौपचारिक है.
बदला और दंड
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने मलेशिया व अन्य देशों से ये सुनिश्चित करने की पुकार लगाई कि किसी भी व्यक्ति को जबरन म्याँमार वापिस ना भेजा जाए.
उससे भी ज़्यादा म्याँमार के जिन नागरिकों को वापिस भेजने पर विचार किये जाए, उन्हें उपयुक्त प्रक्रियात्मक गारंटियाँ मुहैया कराई जाएँ, जिनमें उनकी स्थितियों का, अन्तरराष्ट्रीय निमयों और मानकों के साथ, व्यक्तिगत आकलन किया जाना भी शामिल है.
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के विरुद्ध
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने, देश में सैन्य तख़्तापलट के बाद से, स्वदेश वापिस लौटने वाले लोगों पर बदले व दंड की कार्रवाई के अनेक मामलों का रिकॉर्ड दर्ज किया है.
सेना, देश छोड़कर चले जाने वाले लोगों को सैन्य तख़्तापलट का विरोधी मानती है और वो बन्दीग्रहों में उत्पीड़न व मृत्युदंड के जोखिम का सामना कर रहे हैं.
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून, लोगों को किसी ऐसे देश में वापिस भेजे जाने को प्रतिबन्धित करता है जहाँ उनकी वापसी पर उन्हें गम्भीर हानि का वास्तविक ख़तरा हो, जिसमें प्रताड़ना, उत्पीड़न, दुर्व्यवहार और अन्य तरह के मानवाधिकार हनन शामिल हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क का कहना है, “ये बहुत आवश्यक है कि म्याँमार में मौजूदा स्थिति को देखते हुए, लोगों को तकलीफ़ों व ख़तरों में ना धकेला जाए, और म्याँमार में जब तक संकट बरक़रार है, तब तक उन्हें सुरक्षित क़ानूनी दर्जा मुहैया कराया जाए.”
क्षेत्रीय कार्रवाई की दरकार
म्याँमार के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत नोएलीन हेयज़र ने कहा है कि म्याँमार में हिंसा जारी रहने के कारण, और भी लोगों के देश छोड़कर भागने की अपेक्षा है.
ऐसे में वो दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन – (ASEAN) से शरणार्थियों और जबरन विस्थापित लोगों की सुरक्षा की ख़ातिर, एक क्षेत्रीय संरक्षण ढाँचा तैयार करने का आग्रह करेंगी.
उन्होंने मंगलवार को कहा कि म्याँमार के कुछ नागरिकों को हाल में जबरन स्वदेश वापिस भेजा जाना, आसियान की समन्वित कार्रवाई की तात्कालिकता को दर्शाता है, जबकि ऐसे लोगों में से कुछ को म्याँमार में पहुँचने के बाद ही गिरफ़्तार कर लिया गया.