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स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में भारत निभा सकता है अहम भूमिका

भारत में एक महिला, सौर ऊर्जा से खाना पकाने का तरीक़ा बता रही है.
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भारत में एक महिला, सौर ऊर्जा से खाना पकाने का तरीक़ा बता रही है.

स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में भारत निभा सकता है अहम भूमिका

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा है कि भारत समेत सभी देशों को प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ख़त्म करके, स्वच्छ और आर्थिक रूप से सुदृढ़ सौर ऊर्जा में निवेश करना होगा.  महासचिव ने शुक्रवार को भारत के ऊर्जा शोध संस्थान (TERI) के 19वें दरबारी सेठ स्‍मारक व्‍याख्‍यान में ये बात कही है.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अपने भाषण में कहा, “आज जब हम कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के दोहरे संकट से जूझ रहे हैं तब इस प्रयास के लिये इससे अधिक महत्‍वपूर्ण क्षण नहीं हो सकता.

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विश्‍व-भर में इस महामारी ने व्‍यवस्‍था सम्बन्धी वो कमज़ोरियाँ और असमानताएँ उजागर कर दी हैं जो सतत विकास की बुनियाद के लिये ख़तरा पैदा करती हैं.”

जलवायु परिवर्तन के मद्दे की तात्कालिकता को समझाते हुए उन्होंने कहा, “विश्‍व का तेज़ी से बढ़ता तापमान और अधिक बाधाओं का संकेत दे रहा है और विश्‍व में बहुत गहरे एवं विनाशकारी असन्तुलनों को और अधिक उजागर कर रहा है.”

“आज के युवा जलवायु कार्यकर्ता यह बात समझते हैं. वे जलवायु न्‍याय का अर्थ समझते हैं. वे जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक दंश वो देश झेल रहे हैं, जो इसके लिये सबसे कम ज़िम्मेदार हैं."

"आज जब हम कोविड महामारी से उबरने के लिये प्रयासरत हैं तो हमें बेहतर कार्रवाई का संकल्‍प लेना होगा.”

उन्होंने कहा, “इसका सीधा सा अर्थ है कि हमारे आर्थिक, ऊर्जा और स्‍वास्‍थ्‍य तन्त्रों में आमूल परिवर्तन करना होगा जिससे जीवन की रक्षा हो, टिकाऊ व समावेशी अर्थव्‍यवस्‍थाएँ विकसित हो सकें और जलवायु परिवर्तन से उत्‍पन्‍न अस्तित्‍व के संकट से बचा जा सके.”

भारत की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की भूमिका पर कहा, “भारत के पास देश और विदेश को नेतृत्‍व प्रदान करने की सभी क्षमताएँ मौजूद हैं जिसकी परिकल्‍पना दरबारी सेठ ने की थी. इस दिशा में ग़रीबी उन्‍मूलन और सबके लिये ऊर्जा सुलभता मुख्‍य संचालक हैं और यह दोनों ही भारत की प्रधान प्राथमिकताएँ हैं. स्‍वच्‍छ ऊर्जा, विशेषकर, सौर ऊर्जा का उत्‍पादन और उपभोग बढ़ाना ही इन दोनों समस्‍याओं का समाधान है.”

उन्होंने कहा, “महामारी से उबरने के दौर में अक्षय ऊर्जा, स्‍वच्‍छ परिवहन और ऊर्जा के कुशलता से उपयोग में निवेश करने से दुनिया भर में 27 करोड़ लोगों को बिजली सुलभ कराई जा सकती है. यह संख्‍या इस समय बिजली की सुविधा से वंचित विश्‍व की कुल आबादी की एक-तिहाई है. यही निवेश अगले तीन वर्ष में प्रतिवर्ष 90 लाख रोज़गार प्रदान करने में मदद कर सकता है.”

अक्षय ऊर्जा के व्यावसायिक फ़ायदे बताते हुए महासचिव ने कहा, “अक्षय ऊर्जा में निवेश करने से प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्‍म ईंधन में किये गए निवेश की तुलना में रोज़गार के तीन गुना अवसर उत्‍पन्‍न होते हैं.” 

अमेरिका के हवाई प्रान्त में सौर ऊर्जा के एक प्लाण्ट.
ILO Photo/Kevin Cassidy
अमेरिका के हवाई प्रान्त में सौर ऊर्जा के एक प्लाण्ट.

उन्होंने कहा, “आज जब कोविड-19 महामारी के कारण अनेक लोगों के लिये वापस ग़रीबी के गर्त में धकेले जाने का ख़तरा उत्‍पन्‍न हो रहा है तो इस तरह रोज़गार के अवसर उत्‍पन्‍न करने का मौका गँवाया नहीं जा सकता.”

महासचिव ने इस क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा, “2015 से भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्‍या 5 गुना बढ़ी है. वर्ष 2019 में पहली बार सौर ऊर्जा पर ख़र्च की मात्रा कोयले से उत्‍पन्‍न ऊर्जा पर ख़र्च से अधिक रही. भारत ने बिजली सर्वसुलभ कराने की दिशा में भी उल्‍लेखनीय प्रगति की है.”

लेकिन उन्होंने कहा कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. “बिजली की सुलभता दर 95 प्रतिशत होने के बावजूद आज भी 6 करोड़ 40 लाख भारतीय लोगों को बिजली नसीब नहीं हैं. अभी बहुत कुछ करना और अवसरों का लाभ उठाना बाक़ी है.”

जीवाश्म ईंधन को अनुदान बन्द होना आवश्यक

उन्होंने ये भी कहा कि हालाँकि स्‍वच्‍छ ऊर्जा और ऊर्जा सुलभता की खाई को पाटना समझदारी का कारोबार है और ये दोनों ही वृद्धि और सम्‍पन्‍नता के द्वार हैं.

“लेकिन इसके बावजूद भारत में जीवाश्‍म ईंधन पर दी जाने वाले अनुदान की मात्रा स्‍वच्‍छ ऊर्जा को मिल रहे अनुदान की तुलना में क़रीब 7 गुना अधिक है. विश्‍व भर में अनेक देशों में जीवाश्‍म ईंधन के लिये समर्थन जारी रहना बहुत अधिक चिन्ताजनक है."

"मैंने भारत सहित जी-20 के सभी देशों से आग्रह किया है कि कोविड-19 महामारी से उबरते समय वे स्‍वच्‍छ और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा में निवेश करें. इसका सीधा सा अर्थ है कि जीवाश्‍म ईंधन पर अनुदान समाप्‍त किया जाए, कार्बन प्रदूषण पर शुल्‍क लगाया जाए और 2020 के बाद किसी नए कोयला बिजली घर को मंज़ूरी न दी जाए,” 

अन्य देशों के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “कोविड-19 से निपटने के लिये अपनी घरेलू उत्‍प्रेरक एवं निवेश योजनाओं में कोरिया गणराज्‍य, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों तथा यूरोपीय संघ ने अपनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं को कार्बन उत्‍सर्जन मुक्‍त करने की दिशा में प्रयास तेज़ किये हैं.

ये देश जीवाश्‍म ईंधन की बजाय स्‍वच्‍छ और कुशल ऊर्जा स्रोत अपना रहे हैं और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे ऊर्जा भंण्डारण ने हाल ही में अपनी जीवाश्‍म ईंधन अनुदान नीति में बदलाव किये हैं."

लेकिन उन्होंने ये सकारात्मक क़दम उठाए जाने के साथ-साथ अनेक स्थानों से मिल रहे प्रतिकूल संकेतों के प्रति चिन्ता भी जताई.

उन्होंने कहा, “जी-20 देशों में तैयार पुनर्बहाली योजनाओं के अध्‍ययन से मालूम होता है कि स्‍वच्‍छ ऊर्जा की तुलना में दोगुनी धनराशि जीवाश्‍म ईंधन पर ख़र्च की जा रही है.

कुछ देशों में तो घरेलू कोयला उत्‍पादन दोगुना करने और कोयले की नीलामी खोलने के प्रयास हो रहे हैं. इस नीति को अपनाने से आर्थिक संकुचन बढ़ेगा और स्‍वास्‍थ्‍य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.”

ट्यूनीशिया में एक वायु बिजली फ़ार्म अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करता है जिससे कोयले के प्रयोग से निर्मित होने वाली बिजली पर देश की निर्भराका कम होती है.
World Bank/Dana Smillie
ट्यूनीशिया में एक वायु बिजली फ़ार्म अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करता है जिससे कोयले के प्रयोग से निर्मित होने वाली बिजली पर देश की निर्भराका कम होती है.

उऩ्होंने कहा, “हमारे पास इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि जीवाश्‍म ईंधन प्रदूषण और कोयले से होने वाला उत्‍सर्जन मानव स्‍वास्‍थ्‍य को भारी क्षति पहुँचाता है जिसके कारण स्‍वास्‍थ्‍य सेवा तन्त्र की लागत बहुत बढ़ जाती है.”

“खुले स्‍थानों पर वायु प्रदूषण, बहुत हद तक, अत्‍यधिक उत्‍सर्जक ऊर्जा एवं परिवहन स्रोतों से फैलता है जिसके कारण दमा, निमोनिया, और कैंसर जैसी फेफड़ों को नुक़सान पहुँचाने वाली बीमारियाँ होती हैं.”

उन्होंने बताया, “इस वर्ष अमेरिका में शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि जिन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्‍तर ऊँचा है वहाँ के निवासियों को कोविड-19 से मृत्‍यु का ख़तरा अधिक है. यदि जीवश्‍म ईंधन उत्‍सर्जन से छुटकारा पा लिया जाए तो औसत आयु कुल मिलाकर 20 महीने से अधिक बढ़ सकती है. यानि दुनियाभर में प्रतिवर्ष 55 लाख लोगों की मौतें टाली जा सकती हैं.”

महासचिव ने चेतावनी देते हुए कहा, “जीवाश्‍म ईंधन में निवेश किये जाने का अर्थ है अधिक मौतें, अधिक रोग और स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की बढ़ती लागत.” 

अक्षय ऊर्जा में निवेश फ़ायदेमन्द

अक्षय ऊर्जा में निवेश का अर्थशास्त्र समझाते हुए महासचिव ने कहा, "अक्षय ऊर्जा की लागत इतनी घट गई है कि दुनिया में मौजूद 39 प्रतिशत कोयला बिजलीघर चलाते रहने के बजाय, अक्षय ऊर्जा की नई उत्‍पादन क्षमता स्‍थापित करना अधिक सस्‍ता हो गया है.”

“2022 तक प्रतिस्‍पर्धा से टक्कर लेने के मामले में अक्षम कोयला बिजली घरों का यह अन्तर तेज़ी से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगा. 2022 तक, भारत में 50 प्रतिशत कोयला ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा से टक्‍कर नहीं ले सकेगी और 2025 तक यह अनुपात 85 प्रतिशत हो जाएगा.”

इन रुझानों को देखकर ही विश्‍व के बड़े निवेशक कोयले में निवेश करने का रास्ता छोड़ते जा रहे हैं. 

महासचिव ने कहा, “कोयले का कारोबार अब धुआँ होता जा रहा है. भारत के अक्षय ऊर्जा संसाधनों के लाभ साफ़ दिखाई दे रहे हैं. उनकी लागत कम है, बाज़ार के उतार-चढ़ाव से अछूते हैं और जीवाश्‍म ईंधन बिजली घरों की तुलना में रोज़गार क्षमता तीन गुना अधिक है. अक्षय ऊर्जा में साथ ही हमारे दम घोंटू शहरों की हवा को स्‍वच्‍छ करने की क्षमता भी है.”

जलवायु परिवर्तन से निपटना ज़रूरी

भारत अपने विशाल आकार और विविध पारिस्थितिकी के कारण जलवायु परिवर्तन के अनेक, भीषण प्रहार झेल रहा है. बाढ़ और सूखे का प्रकोप अधिक जल्‍दी-जल्‍दी और गम्भीर हो रहा है जिसके कारण आहार तन्त्र, स्‍थानीय अर्थव्‍यवस्‍थाओं एवं मानव स्‍वास्‍थ्‍य को भीषण क्षति पहुँच रही है.

भारत में हाल में आई बाढ़ ने लाखों लोगों के जीवन में तबाही मचा दी है. जलवायु परिवर्तन सबसे कमज़ोर वर्गों पर सबसे कठोर वार करता है जिसके कारण भारत जैसे देशों में लाखों लोगों को ग़रीबी से मुक्ति दिलाने में हुई उल्‍लेखनीय प्रगति ख़तरे में पड़ जाती है.

महासचिव ने चेतावनी के अन्दाज़ में कहा, “जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी समिति ने पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्‍य पर जो विशेष रिपोर्ट तैयार की है उससे मालूम होता है कि अगर तापमान की यह सीमा लांघी गई तो जलवायु संकट की आँच भारत को और ज़्यादा सताएगी."

"देश में ग्रीष्‍मलहर, बाढ़ और सूखे का प्रकोप और ज़्यादा भीषण होगा, जल संकट बढ़ेगा और अनाज उत्‍पादन घटेगा जिनके कारण सतत विकास लक्ष्‍यों की दिशा में हुई प्रगति को क्षति पहुँचेगी.”

तात्‍कालिक चुनौती स्‍पष्‍ट करते हुए उन्होंने कहा, “तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये ज़रूरी है कि 2030 तक वैश्विक उत्‍सर्जन आधा किया जाए और 2050 से पहले विश्‍व कार्बन उत्‍सर्जन मुक्‍त हो जाए.”

ज़ाम्बियाके लुसाका इलाक़े में एक विशाल स्टोर की छत पर लगे सौर ऊर्जा पैनलों की जाँच-परख करते हुए. सौर ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का एक टिकाऊ विकल्प बनता जा रहा है.
UNDP/Karin Schermbrucker
ज़ाम्बियाके लुसाका इलाक़े में एक विशाल स्टोर की छत पर लगे सौर ऊर्जा पैनलों की जाँच-परख करते हुए. सौर ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का एक टिकाऊ विकल्प बनता जा रहा है.

उन्होंने कहा, “आज विश्‍व एक नाज़ुक दोराहे पर खड़ा है, जहाँ सरकारें कोविड-19 महामारी से उबरने के लिये खरबों डॉलर जुटाने में लगी हैं, ऐसे में उनके फ़ैसलों का जलवायु पर असर दशकों तक रहेगा. इस समय चुने गए विकल्‍प या तो जलवायु कार्रवाई को आगे की दिशा में ले जाएँगे या हमे वर्षों पीछे धकेल देंगे, और विज्ञान कहता है कि हम पीछे जाने का जोखिम मोल नहीं ले सकते.”

छह अहम क़दम

महासचिव ने सभी देशों की सरकारों से महामारी के प्रभावों से अधिक बेहतर ढंग से उबरने के लिये जलवायु अनुकूल छह क़दम उठाने का आग्रह किया -
1)    पर्यावरण अनुकूल रोज़गार में निवेश करें.
2)    प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को संकट से उबारने में मदद न करें.
3)    जीवाश्‍म ईंधन अनुदान समाप्‍त करें.
4)    सभी वित्‍तीय और नीतिगत निर्णयों में जलवायु जोखिमों को शामिल रखें.
5)    साथ मिलकर काम करें.
6)    सबसे महत्‍वपूर्ण क़दम यह है कि किसी को पीछे न छोड़ें.

उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत भी सभी देशों की तरह एक दोराहे पर खड़ा है, किन्तु अपनी आबादी को सम्‍पन्‍नता का लाभ देने में उल्‍लेखनीय चुनौतियों के बावजूद भारत ने कई तरह की स्‍वच्‍छ तकनीकें और टिकाऊ ऊर्जावान भविष्‍य को अपनाने का रास्ता चुना है.

उन्होंने ‘एक सूर्य, एक विश्‍व, एक ग्रिड’ के रूप में अन्तरराष्‍ट्रीय सौर गठबन्धन को आगे बढ़ाने के भारत के फैसले का स्‍वागत किया, और ‘विश्‍व सौर बैंक’ की स्‍थापना की भारत की योजना की सराहना करते हुए कहा कि आने वाले दशक में सौर परियोजनाएँ दस खरब अमेरिकी डॉलर का निवेश जुटाएँगीं.

उन्होंने कहा, “भारत में सौर ऊर्जा की 37 गीगावॉट स्‍थापित क्षमता मौजूद है. मैं भारत सरकार के उस निर्णय से प्रेरित महसूस करता हूँ जिसमें उन्होंने अक्षय ऊर्जा क्षमता को 2015 के 175 गीगावॉट के प्रारम्भिक लक्ष्‍य से बढ़ाकर 2030 तक 500 गीगावॉट की स्थापना कर दिया है."

"मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह क़दम केस डी डेपो एट प्‍लेसमेंट ड्यू क्‍यूबेक (Caisse de depot et placement du quebec) या अबू धाबी निवेश प्राधिकरण जैसे सम्प्रभु सम्पदा कोष और पेन्शन कोष जैसे अधिक से अधिक अन्तरराष्‍ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करने में सहायक होगा.”

भारत के विदेश मन्त्री डॉक्टर एस जयशंकर ने ऊर्जा शोध संस्थान (टैरी) के 19वें दरबारी सेठ स्मारक व्याख्यान के दौरान दिये भाषण में आत्मनिर्भरता और स्थानीय ज्ञान की अहमियत पर ज़ोर दिया.
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भारत के विदेश मन्त्री डॉक्टर एस जयशंकर ने ऊर्जा शोध संस्थान (टैरी) के 19वें दरबारी सेठ स्मारक व्याख्यान के दौरान दिये भाषण में आत्मनिर्भरता और स्थानीय ज्ञान की अहमियत पर ज़ोर दिया.

घर-घर में सैर ऊर्जा लाने के तरीक़े ढूँढें

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने बिजली और स्‍वच्‍छ रसोई ईंधन सुलभ कराने के नए-नए तरीक़े खोजने का आहवान करते हुए कहा, “मैं भारत और उसके सभी नवोन्‍वेषकों, उद्यमियों और कारोबारी प्रमुखों से आग्रह करता हूँ कि वे घर की रसोई में सौर ऊर्जा से चूल्‍हा जलाने के उपाय की वैश्विक खोज में अग्रणी भूमिका निभाएँ. भारत सतत विकास लक्ष्‍य 7 हासिल करने के प्रयास में कारोबार का बड़ा केन्द्र बन सकता है.”

वर्ष 2019 में भारत ने जलवायु कार्रवाई शिखर सम्‍मलेन में स्‍वीडन के साथ मिलकर लीडरशिप ग्रुप फॉर इण्डस्‍ट्री ट्रांज़ीशन का शुभारम्भ किया था.

सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के प्रमुख सम्‍बद्ध पक्षों की इस भागीदारी का संकल्‍प है कि इस शताब्‍दी के मध्‍य तक उन क्षेत्रों में पूरी तरह शून्‍य उत्‍सर्जन का लक्ष्‍य हासिल किया जाए जो सामूहिक रूप से 30 प्रतिशत वैश्विक उत्‍सर्जन के लिये ज़िम्‍मेदार हैं.

महासचिव ने कहा, “डालमिया सीमेंट और महिंद्रा जैसी कम्पनियाँ नव-अन्वेषण में अग्रणी हैं. किन्तु और अधिक कम्पनियों को इस प्रयास से जोड़ने की आवश्‍यकता है.”

उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत जलवायु परिवर्तन से संघर्ष में सच्‍चे अर्थों में वैश्‍विक महाशक्ति बन सकता है, बशर्ते, वह जीवाश्‍म ईंधन की जगह अक्षय ऊर्जा को अपनाने की गति तेज़ करे.

“मुझे यह जानकर प्रेरणा मिली कि भारत में महामारी के दौरान अक्षय ऊर्जा का अनुपात 17 से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया जबकि कोयले से उत्‍पन्‍न ऊर्जा का अनुपात 76 प्रतिशत से घटकर 66 प्रतिशत रह गया. यह उत्‍साहजनक रुझान जारी रखने की आवश्‍यकता है. अक्षय ऊर्जा का उत्‍पादन बढ़ाना होगा और कोयले का उपयोग धीरे-धीरे समाप्‍त करना होगा,”

एक उन्नत भविष्य की परिकल्पना करते हुए महासचिव ने कहा, “हमारी कहानी यही होनी चाहिये! 21वीं शताब्‍दी के लिये अधिक स्‍मार्ट, अधिक सशक्‍त, अधिक स्‍वच्‍छ अर्थव्‍यवस्‍थाओं की कहानी जिसमें अधिक रोज़गार, अधिक न्‍याय और अधिक सम्‍पन्‍नता का बोलबाला हो. यह ऐसी कहानी है जिसे उद्यमी और नवोन्‍मेषक भारत ही नहीं दुनियाभर में सुना रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “मैं सभी देशों, विशेषकर जी-20 देशों, से आग्रह करता रहूँगा कि वे 2050 से पहले कार्बन उत्‍सर्जन मुक्ति का संकल्‍प लें और कॉप-26 से बहुत पहले राष्‍ट्रीय स्‍तर पर निर्धारित अधिक आकांक्षी योगदान और दीर्घकालिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्‍तुत करें जो 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्‍य के अनुरूप हों.”

इसमें भारत से विशेष भूमिका निभाने का आग्रह करते हुए महासचिव ने कहा कि वो इस निर्णायक यात्रा को जारी रखने के लिये आवश्‍यक फैसले लें, निवेश करें और नीतियाँ अपनाएँ. “अब समय आ गया है कि स्वच्‍छ ऊर्जा और जलवायु कार्रवाई के लिये साहसिक नेतृत्‍व दिखाया जाए. मैं भारत से आग्रह करता हूँ कि वह उस आकांक्षी नेतृत्‍व की बागडोर संभाले जिसकी हमें आवश्‍यकता है.”

चुनौतियों से निपटने का समय

टैरी के महानिदेशक डॉक्टर अजय माथुर ने इस अवसर पर कहा,  “भारत सरकार के आर्थिक सुधार पैकेजों ने लोगों को बेहतर जीवन जीने में मदद करने के लिये आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन, स्थायी आजीविका में तेज़ी लाने की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान केन्द्रित किया है. यही हमारे आर्थिक सुधारों के केन्द्र में है.”

वहीं भारत के विदेश मन्त्री डॉक्टर एस जयशंकर ने आत्मनिर्भरता और स्थानीय ज्ञान की अहमियत पर ज़ोर दिया. साथ ही उन्होंने वर्तमान चुनौतियों के प्रति सचेत करते हुए कहा, “वास्तविक सहयोग और आवश्यक अविभाज्यता से ही असली वैश्वीकरण सम्भव है. आज सभी के सामने आतंकवाद, महामारी और जलवायु परिवर्तन वास्तविक चुनौतियाँ बनकर खड़ी हैं. यही वो मुद्दे हैं जो गम्भीरता से बहुपक्षवाद का परीक्षण करेंगे.”