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भारत: जलवायु कार्रवाई के किशोर चैम्पियन

प्रेरणादायक बच्चों को सामने लाने के लिये, उनके काम को प्रोत्साहन देने के लिये और अन्य बच्चों व अभिभावकों को जलवायु कार्रवाई के लिये प्रेरित करने हेतु यह प्रतिस्पर्धा आयोजित की गई.
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प्रेरणादायक बच्चों को सामने लाने के लिये, उनके काम को प्रोत्साहन देने के लिये और अन्य बच्चों व अभिभावकों को जलवायु कार्रवाई के लिये प्रेरित करने हेतु यह प्रतिस्पर्धा आयोजित की गई.

भारत: जलवायु कार्रवाई के किशोर चैम्पियन

जलवायु और पर्यावरण

भारत में संयुक्त राष्ट्र सूचना केन्द्र (UNIC) ने मार्च 2022 में स्कूली बच्चों के बीच जलवायु कार्रवाई पर एक अभियान चलाया था. इस अभियान में कक्षा 6 से 12 तक के स्कूली छात्रों द्वारा की गई जलवायु कार्रवाई की प्रविष्टियाँ ली गईं, और उनमे से, अलग-अलग कक्षा श्रेणियों में शीर्ष स्थान पाने वाले छात्रों को पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा के छात्रों के बीच पुरस्कार पाने वाले अधि दैव का जन्म, राजस्थान में एक किसान परिवार में हुआ था. वहाँ, अधि पानी की कमी के कारण ग्रामीण समुदायों की समस्याओं की कहानियाँ सुनकर बड़े हुए थे. उन्हें 2019 में राजस्थान की महिलाओं के लिये पानी के चक्के उपलब्ध कराने के लिये धन जुटाने की मुहिम के दौरान इस समस्या की गम्भीरता का अन्दाज़ा हुआ. 

उन्हें अहसास हुआ कि वनस्पति की कमी से मरुस्थलीकरण, जलवायु परिवर्तन, मिट्टी के कटाव, फ़सल की कम उपज, पशुओं के लिये कम चारा, ग़रीबी, बेरोज़गारी, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि आदि में वृद्धि हुई है. वहीं, राज्य की 73 फीसदी सिंचाई, नलकूपों और कुओं पर निर्भर रहने से वनस्पति उपजना मुश्किल था.

छोटी सी उम्र में रेगिस्तान की कायापलट

इस रेगिस्तानी क्षेत्र में एक पेड़ उगाने के लिये, 3 साल की अवधि में लगभग 330 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. अधि ने बड़े पैमाने पर यात्रा करके विशेषज्ञों से बात की, स्थानीय लोगों से मुलाक़ात की, साहित्य पढ़ा और रेगिस्तानी इलाक़ों को हरा-भरा करने के लिये एक व्यवहार्य समाधान के बारे में सोचना शुरू किया. 

अधि बताते हैं, “मेरी खोज ने मुझे किसान सुन्दरम वर्मा की एक लीटर पानी की तकनीक तक पहुँचा दिया, जिसमें रेगिस्तानी क्षेत्र में किसी भी पेड़ को उगाने के लिये पूरे जीवनकाल में केवल एक लीटर पानी की आवश्यकता होती है. और फिर मैंने 2020 में राजस्थान के रेगिस्तानों को हरा-भरा करने के लिये 'उर्वरा-ग्रीनिंग मदर अर्थ' परियोजना शुरू की.”

वो बताते हैं, “हम सूखे क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिये, स्थानीय बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, किसानों व पंचायत के सदस्यों को जागरूक व प्रेरित करके स्थानीय ग्रामीण समुदायों को संगठित करते हैं. हमारा मानना है कि लोगों की भागीदारी, जल संरक्षण के तरीक़ों के प्रति ज़िम्मेदारी और जागरूकता की भावना से, सम्पत्ति का संरक्षण व विकास सुनिश्चित होता है.”

अधि अपनी परियोजना के असर के बारे में बताते हैं, “2021 में, हमने सीकर ज़िले के गाँवों के 6 स्कूलों में, 12 एकड़ रेगिस्तानी भूमि में एक लीटर पानी की तकनीक से 2,200 से अधिक पेड़ लगाए, जिसका साढ़े तीन हज़ार से अधिक बच्चों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा. स्वच्छ हवा और पीने के लिये पर्याप्त पानी समेत, सुरक्षित एवं सुलभ हरित खेल क्षेत्र, सभी बच्चों का मूल अधिकार है. हमारे काम से इन गाँवों के 20 हज़ार से अधिक ग्रामीणों के जीवन पर परोक्ष रूप से असर हुआ है. हमने, गाँव में छोड़े हुए 220 से अधिक मवेशियों के लिये छाया और हरा चारा क्षेत्र भी बनाया है. हमने अपने वृक्षारोपण के तरीक़े से 72 लाख 50 हज़ार लीटर से अधिक पानी बचाया है. हम अनुमान लगा रहे हैं कि इन पेड़ों के बड़े होने के बाद हर साल 52 लाख पाउण्ड ऑक्सीजन का उत्पादन होगा.”

जागरूकता के युवा मसीहा

नौंवी और दसवीं कक्षा की श्रेणी में पुरस्कार पाने वाली अनवी टुटेजा ने जलवायु परिवर्तन पर सोशल मीडिया में जागरूकता फैलाने के लिये ‘IMPACTFUL ACTIONS SPEAK UP!’ नामक एक वेबसाइट शुरू की.

वो कहती हैं, “मेरा मानना है कि ‘बोलना’ सबसे प्रभावशाली क्रिया है क्योंकि यह अन्य सभी क्रियाओं को परस्पर बांधती है. मेरे ब्लॉग की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ‘Lead-by-Example section’ यानि उदारण के ज़रिये प्रेरित करने वाला हिस्सा है, जिसमें मैं ख़ुद के घर, समाज और स्कूल में किये गए अपने बदलावों और कार्यों को दिखाती हूँ ताकि वास्तव में परिवर्तन को आत्मसात करके, ठोस बदलाव लाया जा सके.”  

छोटे-छोटे क़दम

छठी से आठवीं कक्षा की श्रेणी में पुरस्कार पाने वाले, आदित्य भाटिया की नज़र एक दिन, विज्ञान की पाठ्यपुस्तक पढ़ते समय, एक निश्चित वाक्य पर ठहर गई. उसमें बताया गया था कि ऊर्जा उत्पादन के लिये प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता होती है और इसलिये, इसका जलवायु पर भयानक प्रभाव पड़ता है. इसमें यह भी बताया गया था कि किस तरह सीएफ़एल बल्बों के उपयोग से ऊर्जा की खपत को 35% तक कम किया जा सकता है. 

बस उन्होंने यह बात पकड़ ली और घर पर ऊर्जा बचाने के नए तरीक़ों की खोज में लग गए. तब उन्होंने जाना कि कैसे सरल लेकिन प्रभावी तरीकों से एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. उपयोग में न होने पर हमें लाइट और पंखे बन्द कर देने चाहिये, स्क्रीनटाइम सीमित करना न केवल आँखों के लिये फ़ायदेमन्द है, बल्कि यह हमें बिजली बचाने में भी मदद करता है. लाखों निष्क्रिय चार्जर सॉकेट में प्लग लगाकर छोड़ दिए जाते हैं, जिससे  हर दिन लाखों किलोवाट ऊर्जा बर्बाद होती है.

वो कहते हैं, “इन चार्जरों को प्लग से हटाकर ही एक लम्बा रास्ता तय कर सकते हैं.”

आदित्य ने अपने मातापिता से प्रोत्साहन पाकर, अपने परिवार में बदलाव लाने शुरू किये, “हम अपने घर में हर दिन आधे घण्टे के लिये सभी लाइटें और अन्य बिजली के उपकरण बन्द कर देते हैं. अब हमारे परिवार में हर कोई इन उपायों का पालन करता है.”

आदित्य ने अपने शिक्षक से बात करके, अपनी कक्षा के लिये भी एक प्रस्तुति भी तैयार की, जिससे उनके सहपाठी भी अपने घर पर हर सम्भव तरीक़े से ऊर्जा बचाने के लिये क़दम उठा सकें. वो कहते हैं, “मैं दूसरों को इसी तरह प्रेरित करता रहना चाहता हूँ, ताकि हर कोई ऊर्जा संरक्षण को समय की ज़रूरत समझकर अपना सके.”

प्रतियोगिता से प्रोत्साहन

इस प्रतिस्पर्धा के आयोजक, भारत के संयुक्त राष्ट्र सूचना केन्द्र (UNIC) की एक अधिकारी शचि चतुर्वेदी बताती हैं, “पर्यावरण और जलवायु कार्रवाई के विषयों पर हमारे युवा बहुत ही जागरूक और कर्मठ हैं. वो ठोस कार्रवाई करने में विश्वास रखते हैं. वे बदलाव के प्रतिनिधि हैं. ऐसे ही प्रेरणादायक बच्चों को सामने लाने के लिये, उनके काम को प्रोत्साहन देने के लिये और अन्य बच्चों व अभिभावकों को जलवायु कार्रवाई के लिये प्रेरित करने हेतु ही हमने यह प्रतिस्पर्धा आयोजित की."

"बच्चों के साथ उनके अभिभावकों और परिवार को इस प्रतिस्पर्धा में जोड़ा गया जिससे अपने आसपास होने वाले छोटे-छोटे प्रयासों के ज़रिये बच्चों, परिवारों और समुदायों के बीच, जलवायु कार्रवाई के प्रति जागरूकता और प्रतिबद्धता बढ़ाई जा सके.”

वहीं, इस अभियान में साझेदार रहे, FairGaze संस्था के संस्थापक - निदेशक, एम एल सुधीन ने बताया, “फेयरगेज़, स्कूलों और छात्रों के समग्र विकास के लिये, मीडिया और जुड़ाव का साधन प्रदान करता है."

"हमारा मानना है कि छात्र बदलाव के शक्तिशाली कारक होते हैं और उन्हें एसडीजी हासिल करने में तेज़ी लाने के लिये प्रभावशाली व टिकाऊ कार्रवाई करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये. हमारे एसडीजी अभियानों की सफलता हमें उम्मीद देती है कि दुनिया सुरक्षित हाथों में है. हमारे बच्चे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अपना योगदान देने में सक्षम और उत्सुक हैं. बस हमें उनके साथ जुड़ने के लिये कुछ प्रयासों की ज़रूरत है.”