अक्षय ऊर्जा उत्पादन में धन निवेश करना बुद्धिमानी
कोविड-19 महामारी से जीवाष्म ईंधन उद्योग जगत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट दिखाती है कि ऐसे माहौल में ग़ैर-परम्परागत या अक्षय (नवीनीकरणीय) ऊर्जा पहले से कहीं ज़्यादा किफ़ायती साबित ह रही है. इससे तमाम देशों में आर्थिक पुनर्बहाली के लिए बनाई जाने वाली राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों में स्वच्छ ऊर्जा को प्राथमिकता पर रखने का एक अवसर भी मिला है. ऐसे होने से दुनिया पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के ज़्यादा नज़दीक होगी.
अक्षय ऊर्जा निवेश में वैश्विक रुझान 2020 नामक ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, फ्रेंकफ़र्त-यूएनईपी सहयोग केन्द्र, और ऊर्जा क्षेत्र में धन निवेश करने वाली कम्पनी ब्लूमबर्ग-एनईएफ़ ने मिलकर तैयार की है.
New report shows that renewable energy⚡️ is more cost-effective than ever – providing an opportunity to prioritize clean energy in #COVID19 economic recovery packages & bring the world closer to meeting the #ParisAgreement goals.#GSR2020 https://t.co/vH65pxRWlP
UNEP
इन तीनों एजेंसियों के प्रमुखों ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि चूँकि देशों की सरकारें कोरोनावायरस के कारण लागू की गई तालाबन्दियों के असर से उबरने के लिए अपनी अर्थव्यवस्थाओं में विशाल राशियाँ झोंकर रहे हैं.
ऐसे में अगर ये धन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में लगाया जाए तो उससे पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा ऊर्जा उत्पादित होगी; और देशों को ज़्यादा प्रबल जलवायु कार्रवाई के लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी.
आँकड़ों का खेल
रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि वर्ष 2019 में पन बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी के अवावा, नवीकरणीय ऊर्जा में भी रिकॉर्ड 184 गीगाबाइट का इज़ाफ़ा हुआ.
ये वृद्धि 2018 की तुलना में 12 प्रतिशत ज़्यादा थी, मगर 2019 में धन निवेश केवल 1 प्रतिशत ज़्यादा था.
इस बीच टैक्नॉलॉजी में बेहतरी और गला-काट प्रतिस्पर्धा के गणित ने पिछले एक दशक केदौरान वायु और सौर ऊर्जा उत्पादन की लागत में कमी लाने में मदद की है.
इसके परिणास्वरूप नए सौर ऊर्जा संयन्त्रों से उत्पन्न होने वाली बिजली की लागत में, 2019 की दूसरी छमाही में 83 प्रतिशत की कमी आई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निसन्देह ये बहुत उत्साहजनक प्रगति है, मगर “अभी बहुत कुछ करने के लिए भी अवसर मौजूद हैं.”
भविष्य पर नज़र
देशों और विशाल कम्पनियों ने अगले दशक के दौरान 826 गीगाबाइट ऊर्जा जल स्रोतों के इतर नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है जिसे 2030 तक हासिल किया जाना है. इस ऊर्जा उत्पान पर लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का ख़र्च आने की सम्भावना है.
लेकिन पेरिस समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य हासिल करने के लिए जितने धन निवेश की ज़रूरत है, ये रक़म उससे कहीं बहुत कम है.
साथ ही पिछले दशक के दौरान हासिल की गई उपलब्धियों के मद्देनज़र भी कम है, जिस दौरान 1200 गीगाबाइट बिजली उत्पादन की नई क्षमता हासिल की गई और उस पर 2.7 ट्रिलियन डॉलर की लागत आई थी.
रिपोर्ट तैयार करने वाली तीनों एजेंसियों के प्रमुखों का कहना है कि महत्वाकांक्षा की कमी को आर्थिक पुनर्बहाली पैकेजों में सुधारा जा सकता है, और ऐसा पिछले दशक के दौरान ख़र्च किए गए धन के बराबर ही धन आने वाले दशक के दौरान भी निवेश किया जाए. उसी रक़म में पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन होगा.
सर्वश्रेष्ठ बीमा पॉलिसी
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के कारण जीवाष्म ईंधन सैक्टर में जो मन्दी आई है, और स्वच्छ ऊर्जा की मज़बूती के कारणों ने ये स्पष्ट कर दिया है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में धन लगाना अक़्लमन्दी है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की प्रमुख इन्गेर एण्डर्सन का कहना है, “देशों की सरकारों से कोविड-19 से उबरने के लिए लाए जा रहे आर्थिक पुनर्बहाली पैकेजों का धन टिकाऊ अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करने की माँग करने वाली आवाज़ें ज़ोर पकड़ रही हैं.”
और रिपोर्ट के निष्कर्षों में ध्यान दिलाया गया है कि अगर भविष्य की बात की जाए तो नवीकरणीय ऊर्जा बहुत स्मार्ट और कम लागत वाले में से एक है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा, “अगर देशों की सरकारें कोयले जैसे जीवाष्म ईंधन से चलने वाले उद्योगों को राहत या सब्सिडी देने के बजाय नवीकरणीय ऊर्जी की घटती लागत का फ़ायदा उठाने के लिए इसे कोविड-19 से उबरने के लिए आर्थिक पुनर्बहाली पैकेज में प्राथमिकता पर रखें, तो वो स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और एक स्वस्थ प्राकृतिक दुनिया की दिशा में एक बड़ी बढ़त दर्ज कर सकेंगे – जोकि दरअसल वैश्विक महामारियों के ख़िलाफ़ सर्वश्रेष्ठ बीमा पॉलिसी है.”