कामकाजी दुनिया को ज़्यादा हरित व सुदृढ़ बनाने का ब्लूप्रिन्ट

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया भर में रोज़गारों, आजीविका के साधनों और कामगारों, उनके परिवारों और व्यवसायों के कल्याण पर असर लगातार जारी है. संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को एक नया नीति-पत्र जारी किया है जिसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर कोरोनावायरस सँकट के भयावह दुष्परिणामों को दर्शाते हुए हरित, समावेशी और सुदृढ़ पुनर्बहाली की नींव तैयार रखने की कार्ययोजना पेश की गई है.
विश्व में सवा अरब से ज़्यादा कामगार अर्थव्यवस्था के उच्च-जोखिम वाले सैक्टरों, जैसे भोजन, निवास, थोक एवँ फुटकर और विनिर्माण क्षेत्रों में काम करते हैं.
Massive unemployment & loss of income from #COVID19 are further eroding social cohesion & destabilizing countries & regions.It is time for a coordinated effort to create decent work for all as the foundation of a green, inclusive and resilient recovery.https://t.co/kMOcWqX62q pic.twitter.com/gxHg99kHdO
antonioguterres
हर पाँच मे से एक युवा का रोज़गार ख़त्म हो गया है और जिनके पास रोज़गार है उनके कामकाजी घण्टों में 23 फ़ीसदी की कटौती हुई है.
मई महीने के मध्य तक विश्व के 94 फ़ीसदी कामगार ऐसे देशों में रह रहे थे जहाँ कार्यस्थल बन्द कर दिए गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने सन्देश में कहा, “कोविड-19 महामारी के कारण कामकाज की दुनिया पूरी तरह उलट गई है. हर कर्मचारी, हर व्यवसाय और दुनिया का हर कोना इससे प्रभावित हुआ है. करोड़ों लोगों का रोज़गार ख़त्म हो गया है.”
‘World of Work and COVID-19’ रिपोर्ट बताती है कि निर्बल समूहों पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ा है, विशेषतः अनौपचारिक क्षेत्र में कामगारों, युवाओं, महिलाओं, विकलाँगों, और प्रवासियों व शरणार्थियों पर.
रिपोर्ट के मुताबिक युवाओं पर इस सँकट का सबसे गहरा और विनाशकारी असर पड़ा है और तालाबन्दी से प्रभावित एक ऐसी पीढ़ी (Lockdown Generation) तैयार होने की आशंका बढ़ गई है जिसके पास पहले की तुलना में कम हुनर और वेतन होगा.
इसके अलावा इस सँकट से देशों के बीच और देशों के भीतर विषमताएँ और व्यापक होने का जोखिम भी बढ़ गया है.
“महिलाएँ इससे ख़ासतौर पर ज़्यादा प्रभावित हुई हैं जो कुछ बेहद बुरी तरह प्रभावित सैक्टरों में कार्यरत थीं. साथ ही उन्हें बिना किसी वेतन के देखभाल के काम में भी जुटना पड़ता है और इसके बढ़ने से उन पर बोझ ज़्यादा हो गया है.”
“युवा, विकलाँग और कई अन्य लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.”
बहुत बड़ी सँख्या में कामगार अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं लेकिन उनके लिए सामाजिक संरक्षा और पर्याप्त वित्तीय मदद के अभाव में हालात और ख़राब होने की आशंका है. विकासशील और नाज़ुक हालात से गुज़र रही अर्थव्यवस्थाओं पर इसका गहरा असर होगा.
रिपोर्ट के अनुसार सँकट के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से पुराने ढाँचे पर खड़ा करना (Reset to the past) कोई विकल्प नहीं है.
इसमें ऐसी पुनर्बहाली की पैरवी की गई है जिसमें सामाजिक संरक्षा, अवैतनिक देखभाल, श्रम अधिकार संरक्षण और नए टैक्नॉलॉजी के साथ पेश आने वाले जोखिमों जैसी कमज़ोरियों से भी निपटा जाए.
“यह समय एक समन्वित वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रयास का है ताकि हरित, समावेशी और सुदृढ़ पुनर्बहाली की नींव पर सभी के लिए अच्छे व उपयुक्त रोज़गार का सृजन हो.”
इस पृष्ठभूमि में ताज़ा नीति-पत्र में तीन चरणों वाली जवाबी कार्रवाई का ख़ाका पेश किया गया है जिसमें अल्प-काल में व्यवसायों को खुला रखने और रोज़गारों की उपलब्धता बनाए रखने की सिफ़ारिश की गई है.
इसके तहत ज़रूरी हस्तक्षेप मौजूदा ढाँचों पर ही किए जाएँ और टिकाऊ व हरित विकास की दिशा में गतिविधियाँ बढ़ाई जाएँ.
कर्मचारियों के स्वास्थ्य से समझौता किए बग़ैर और वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में ढिलाई बरते बिना, दूसरे चरण में मध्यम-काल पर ध्यान केन्द्रित करना है और अर्थव्यवस्थाओं और कामकाज को व्यवस्थित ढँग से फिर शुरू करने को प्रोत्साहन देना है.
“स्वास्थ्य की रक्षा करने का अर्थ उद्यमों और आर्थिक गतिविधियों पर ताला लटकाना नहीं होता.”
अन्तिम चरण में दीर्घकाल पर विचार किया जाएगा जिसमें ऐसे रोज़गार सृजित करने के प्रयास किए जाएँगे जिनसे हरित व सुदृढ़ पुनर्बहाली और भविष्य में समावेशी कामकाज को सम्भव बनाने में मदद मिलती हो. ऐसी व्यवस्था जिसमें सामाजिक संरक्षा और कार्यबल को औपचारिक क्षेत्र में लाने के लिए निवेश किया जाए.
कोविड-19 महामारी से पहले भी कामकाजी दुनिया पर कई प्रकार की चुनौतियाँ मँडरा रही थीं, जैसे नई टैक्नॉलॉजी, जनसाँख्यिकी बदलावों, जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण.
लेकिन कोविड-19 इनसे पनप रही असहजता को और ज़्यादा पैना कर रही है, और बेरोज़गारी, निर्धनता बढ़ने, सामाजिक ताने-बाने के टूटने और राजनैतिक व आर्थिक अस्थिरता का सबब बन रही है.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि कामकाज की दुनिया में यह सँकट असन्तोष और व्यग्रता की उस आग को और हवा दे रहा है जो पहले से धधक रही थी.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि दुनिया अब कोविड से पहले के दिनों में नहीं लौट सकती लेकिन नई दिशा में आगे बढ़ते समय उसे और बेहतर बनाया जा सकता है.