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कोविड-19: विश्व में कामकाजी घंटों और रोज़गार में भारी नुक़सान की आशंका

 न्यूयॉर्क में माउंट साइनाइ अस्पताल में स्टाफ़ कोरोनावायरस के परीक्षण का इंतज़ार करते हुए.
UN Photo/Evan Schneider
न्यूयॉर्क में माउंट साइनाइ अस्पताल में स्टाफ़ कोरोनावायरस के परीक्षण का इंतज़ार करते हुए.

कोविड-19: विश्व में कामकाजी घंटों और रोज़गार में भारी नुक़सान की आशंका

आर्थिक विकास

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 की चपेट में आने के कारण विश्व अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में दुनिया भर में कुल कामकाजी घंटों में 6.7 फ़ीसदी का नुक़सान होगा – यह आँकड़ा 19 करोड़ 50 लाख पूर्णकालिक कर्मचारियों के कामकाज के बराबर है. 

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपने अध्ययन ILO Monitor 2nd edition: COVID-19 and the world of work  में कोविड-19 को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा वैश्विक संकट क़रार दिया है.

इससे पहले इसका एक संस्करण 18 मार्च को प्रकाशित हो चुका है और ताज़ा संस्करण में महामारी के विभिन्न सैक्टरों और क्षेत्रों पर असर को समझने का प्रयास किया गया है. 

कामकाजी घंटों में सबसे ज़्यादा नुक़सान अरब देशों (8.1 फ़ीसदी या 50 लाख पूर्णकालिक कर्मचारी), योरोप ( 7.8 फ़ीसदी या एक करोड़ 12 लाख पूर्णकालिक कर्मचारी), और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में (7.2 फ़ीसदी, 12 करोड़ 50 लाख पूर्णकालिक कर्मचारी) में होने की आशंका है. 

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अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने बताया है कि विकसित व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में कर्मचारियों और व्यवसायों को विनाशकारी आपदा का सामना करना पड़ रहा है.

“हमें साथ मिलकर तेज़ी और निर्णायक ढंग से क़दम बढ़ाने होंगे. उचित और तत्काल किए गए उपायों से भी हालात संभालने और उनके ढहने के बीच का अंतर तय होगा.”

विभिन्न आय-वर्गों में व्यापक नुक़सान होने की आशंका जताई गई है लेकिन उच्च-मध्य आय वाले देशों में यह सबसे ज़्यादा दिखाई दे सकता है जो वर्ष 2008-09 के वित्तीय संकट के प्रभावों से भी अधिक है.

अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर

विश्व अर्थव्यवस्था के जिन सैक्टरों पर जोखिम ज़्यादा मंडरा रहा हैं उनमें अतिथि-सत्कार, भोजन सेवाएँ, विनिर्माण, खुदरा व्यापार, व्यवसाय और अन्य प्रशासनिक गतिविधियाँ शामिल हैं. 

वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में बढ़ोत्तरी इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले दिनों में हालात किस तरह करवट बदलते हैं और उनसे निपटने के लिए क्या नीतिगत उपाय अपनाए जाते हैं.

यूएन एजेंसी ने आशंका जताई है कि साल के अंत में ऑंकड़ा ढाई करोड़ बेरोज़गारों के मौजूदा अनुमान से कहीं ज़्यादा हो सकता है. 

विश्व में कार्यबल का आंकड़ा तीन अरब 30 करोड़ है और हर पांच में से चार व्यक्ति कामकाज के पूर्ण या आंशिक रूप से बंद होने से प्रभावित हुए हैं.  

नए अध्ययन के अनुसार एक अरब 25 करोड़ कर्मचारी ऐसे सैक्टरों में कार्यरत हैं जिनमें व्यापक और विनाशकारी ढंग से लोगों के रोज़गार छिन जाने, कामकाजी घंटों और वेतन में कमी आने की आशंका है. इनमें से अनेक कम वेतन वाले ऐसे रोज़गार हैं जहां कौशल की कम ज़रूरत है. 

अमेरिकी क्षेत्र में ऐसे सैक्टरों में जोखिम झेल रहे कर्मचारियों की संख्या 43 फ़ीसदी है जबकि अफ़्रीका में यह आंकड़ा 26 फ़ीसदी है. 

कुछ क्षेत्रों में, ख़ासकर अफ़्रीका में, असगंठित श्रमिकों की संख्या ज़्यादा है और सामाजिक संरक्षण का अभाव है, घनी आबादी होने और क्षमता कमज़ोर होने के कारण सरकारों के समक्ष एक बड़ी स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौती पेश हुई है. 

विश्व भर में दो अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं जिनमें से अधिकांश उभरती या विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हैं, उन पर जोखिम ज़्यादा है. 

अध्ययन में कहा गया है कि इस चुनौती से निपटने के लिए नीतिगत कार्रवाई को चार प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित होना होगा: 

- उद्यमों, रोज़गारों और आय को सहारा दिया जाए
- अर्थव्यवस्था व आजीविका के साधनों को स्फूर्ति मिले
- कार्यस्थलों पर कर्मचारियों का संरक्षण सुनिश्चित हो
- समाधान के लिए सरकारों, नियोक्ताओं व कर्मचारियों के बीच संवाद स्थापित हो