यूएन श्रम एजेंसी: कोविड-19 से वैश्विक आय और उत्पादकता को भारी नुक़सान

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का एक नया अनुमान दर्शाता है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण रोज़गार के अवसरों, कामकाजी घण्टों और आय पर भारी असर हुआ है. वर्ष 2020 में दुनिया भर में कामकाजी घण्टों में 8.8 फ़ीसदी का नुक़सान हुआ जोकि 25 करोड़ से ज़्यादा पूर्णकालिक रोज़गारों के बराबर है. यूएन एजेंसी के नए आकलन के मुताबिक वर्ष 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट की तुलना में यह आँकड़ा लगभग चार गुणा अधिक है.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के नए अपडेट ‘ILO Monitor: COVID-19 and the world of work’ के मुताबिक इस नुक़सान से वैश्विक आय में 8.3 प्रतिशत की गिरावट आई है, जोकि वैश्विक सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का 3.7 ट्रिलियन डॉलर या 4.4 फ़ीसदी है.
Our new report assesses the damage of the #COVID19 crisis and the numbers are grim. 8.8% of global working hours were lost last year, roughly 255 million full-time jobs - that's four times more than were lost during the 2008-2009 financial crisis. Report: https://t.co/0p2z7ejG8V pic.twitter.com/yHgGmU9Rmx
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रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2021 के लिये क़ायम अनिश्चितता के बावजूद वर्ष की दूसरी छमाही में अधिकाँश देशों में अपेक्षाकृत मज़बूत पुनर्बहाली का अनुमान है.
यह सम्भावना जताई गई है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिये टीकाकरण कार्यक्रमों का असर तब तक नज़र आने लगेगा.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, “हम जो पुनर्बहाली के संकेत देख पा रहे हैं, वे उत्साहजनक हैं, लेकिन नाज़ुक और बहुत अनिश्चिततापूर्ण हैं.”
“हमें याद रखना होगा कि कोई भी देश या समूह अकेले नहीं उबर सकता है.”
उन्होंने कहा कि विसंगतिपूर्ण, असमान और अस्थाई पुनर्बहाली के बजाए मानवता-आधारित पुनर्बहाली पर ध्यान केन्द्रित किया जाना होगा जिसमें बेहतर पुनर्निर्माण, रोज़गार, आय और सामाजिक संरक्षा को प्राथमिकता दी जाये.
आईएलओ मॉनीटर ने वर्ष 2021 में पुनर्बहाली के लिये तीन परिदृश्यों को सामने रखा है:
आधार-रेखा (Baseline) – कामकाजी घण्टों में तीन फ़ीसदी नुक़सान का अनुमान, वर्ष 2019 की चौथी तिमाही की तुलना में, जोकि 9 करोड़ पूर्णकालिक रोज़गारों के बराबर है.
निराशाजनक – टीकाकरण की धीमी रफ़्तार के कारण कामकाजी घण्टों में 4.6 प्रतिशत की गिरावट
आशावादी – कामकाजी घण्टों में 1.3 फ़ीसदी की कमी, जोकि महामारी पर क़ाबू किये जाने और उपभोक्ता व व्यवसायों में विश्वास पर निर्भर है.
आईएलओ मॉनीटर दर्शाता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं और युवा कामगारों को महामारी के दुष्प्रभावों को ज़्यादा झेलना पड़ा है.
“वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिये पाँच फ़ीसदी रोज़गार के अवसरों का नुक़सान हुआ है, जबकि पुरुषों के लिये यह 3.9 प्रतिशत है.”
युवा कामगारों की आजीविका के साधन खो गये हैं, वे श्रम कार्यबल से बाहर हो गये हैं या फिर उनके श्रमबल का हिस्सा बनने में देरी हो रही है.
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि वयस्कों की तुलना में युवाओं (15-24 वर्ष) के रोज़गारों पर ज़्यादा असर पड़ा है जिससे एक पीढ़ी के लिये अवसरों के खो जाने की आशंका बढ़ रही है.
आवास और भोजन सेवाओं पर सबसे बुरा असर हुआ है, जहाँ रोज़गार में 20 फ़ीसदी की गिरावट आई है. सके बाद फ़ुटकर व्यापार और विनिर्माण सैक्टर प्रभावित हुआ है.
इसके विपरीत, सूचना, संचार, वित्त और बीमा सैक्टरों में वर्ष 2020 की दूसरी और तीसरी तिमाही में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.