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महामारी ने, 2030 तक सार्वभौमिक बिजली सुलभता की दिशा में प्रगति को किया है बाधित

भारत में, ग्रामीण स्कूलों में बिजली नहीं होने के कारण, बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिये सोलर लैम्प मुहैया कराए जा रहे हैं.
© UNICEF/Pranav Purushotham
भारत में, ग्रामीण स्कूलों में बिजली नहीं होने के कारण, बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिये सोलर लैम्प मुहैया कराए जा रहे हैं.

महामारी ने, 2030 तक सार्वभौमिक बिजली सुलभता की दिशा में प्रगति को किया है बाधित

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी ने बिजली और भोजन पकाने के लिये प्रयोग होने वाले स्वच्छ ईंधनों व टैक्नॉलॉजी की सार्वभौमिक उपलब्धता की दिशा में प्रगति को धीमा किया है, और यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप, आगे और भी ज़्यादा झटके लग सकते हैं.

बुधवार को प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय दुनिया भर में क़रीब 73 करोड़ 30 लाख लोगों को बिजली मयस्सर नहीं है, और लगभग 2 अरब 40 करोड़ लोगों को अब भी, भोजन पकाने में ऐसे ईंधनों का प्रयोग करना पड़ता है जो उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये हानिकारक हैं.

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प्रगति की मौजूदा रफ़्तार के अनुसार, लगभग 67 करोड़ लोग, वर्ष 2030 तक बिजली से वंचित रहेंगे. ये संख्या 2021 के दौरान अनुमानित संख्या से एक करोड़ ज़्यादा है.

ये निष्कर्ष Tracking SDG 7: The Energy Progress Report, नामक रिपोर्ट के वर्ष 2022 के संस्करण में प्रस्तुत किये गए हैं जो टिकाऊ विकास लक्ष्य - 7 की प्राप्ति के वैश्विक प्रयासों की निगरानी करती है. इस लक्ष्य में, सर्वजन के लिये वर्ष 2030 तक आधुनिक ऊर्जा की सुलभ आपूर्ति सुनिश्चित करने की व्यवस्था है.

वित्त प्रबन्ध में बढ़ोत्तरी की दरकार

ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र और उसके साझीदार संगठनों ने तैयार की है जिन्हें SDG7 निगेहबान एजेंसियों के नाम से जाना जाता है. ये एजेंसियाँ देशों की सरकारों व नीति-निर्माताओं से कार्रवाई बढ़ाने का आग्रह करती हैं.

संयुक्त राष्ट्र के एक साझीदार संगठन – अन्तरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के महानिदेशक फ्रांसेस्को ला कैमेरा का कहना है कि नवीकरणीय ऊर्जा के लिये अन्तरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त का प्रबन्ध बढ़ाए जाने की ज़रूरत है, विशेष रूप में निर्धनतम और अत्यन्त निर्बल देशों में. हम इन बेहद ज़रूरतमन्दों की सहायता करने में नाकाम रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सुलभ और टिकाऊ ऊर्जा की सार्वभौमिक उपलब्धता प्राप्ति में केवल आठ वर्ष का समय बचा है, हमें अन्तरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त बढ़ाने के लिये बहुत तेज़ गति से प्रयास करने होंगे, ताकि इस समय जो लगभग 73 करोड़ 30 लाख लोग पीछे छूटे हुए हैं, वो स्वच्छ ऊर्जा उपलब्धता के लाभ उठा सकें.

निर्बल देश प्रभावित

कोविड-19 महामारी के दौरान तालाबन्दियों, आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, और वित्तीय संसाधनों को खाद्य व ईंधन क़ीमतें सुलभ बनाए रखने की तरफ़ मोड़ने के जैसे उपायों ने, टिकाऊ विकास लक्ष्य – 7 की प्राप्ति की प्रगति को प्रभावित किया है.

विश्व के बेहद निर्बल देश विशेष रूप से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं. एशिया व अफ़्रीका में लगभग 9 करोड़ लोगों को पहले बिजली हासिल थी, मगर अब वो अपनी बुनियादी ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति के लिये रक़म अदा करने की स्थिति में नहीं हैं.

यूक्रेन पर रूसी हमले ने स्थिति को और भी ज़्यादा जटिल बना दिया है क्योंकि इसके कारण वैश्विक तेल व गैस बाज़ारों में अनिश्चितता बढ़ी है और ऊर्जा मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़्रीका अब भी दुनिया भर में सबसे कम बिजली उपलब्धता का क्षेत्र बना हुआ है जहाँ 56 करोड़ 80 लाख लोग बिजली से वंचित हैं. 

प्रगति व झटके

वैसे तो दुनिया भर में क़रीब 7 करोड़ लोगों को, भोजन पकाने के लिये प्रयोग होने वाले ईंधनों व टैक्नॉलॉजी हासिल  हुए, मगर ये प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के साथ समान रफ़्तार रखने के लिये पर्याप्त नहीं है, विशेष रूप में सब सहारा अफ़्रीका क्षेत्र में.

रिपोर्ट में पाया गया है कि आर्थिक गतिविधि व आपूर्ति श्रृंखला में लगातार व्यवधान के बावजूद, अक्षय ऊर्जा केवल ऐसा ऊर्जा स्रोत था, जिसमें महामारी के दौरान भी वृद्धि हुई.

फिर भी बिजली के ज़रूरमन्द बहुत से देश अब भी पीछे छूटे हुए हैं, ये एक ऐसी स्थिति है जो, अन्तरराष्ट्रीय वित्त बहाव में दूसरे वर्ष भी कमी होने के कारण, और बदतर हुई है.

SDG7 में ऊर्जा कुशलता की दिशा में लक्ष्य भी शामिल हैं. 2010 से 2019 के दौरान, ऊर्जा सघनता में वैश्विक वार्षिक बेहतरी का औसत 1.9 प्रतिशत रहा, जोकि ज़रूरत वाले स्तरों से बहुत नीचे है.