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कोविड-19: भेदभाव के कारण अल्पसंख्यकों पर दहला देने वाला असर

कोविड-19 का नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यक समुदायों पर अन्य समुदायों की तुलना की तुलना में अनुपात से ज़्यादा असर पड़ रहा है.
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कोविड-19 का नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यक समुदायों पर अन्य समुदायों की तुलना की तुलना में अनुपात से ज़्यादा असर पड़ रहा है.

कोविड-19: भेदभाव के कारण अल्पसंख्यकों पर दहला देने वाला असर

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि इस बारे में तुरन्त ठोस क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है कि नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यकों पर वैश्विक स्वास्थ्य महामारी कोविड-19 के ग़ैर-आनुपातिक असर ना हो. मानवाधिकार उच्चायुक्त ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी ने कुछ देशों में चेता देने वाली असमानताएँ उजागर कर दी हैं:

ये उसी तरह की विषमताएँ हैं जिनके कारण अमेरिका में और ज़्यादा नस्लीय न्याय की माँग के साथ अनेक शहरों में और ऑनलाइन मंचों पर मौजूदा प्रदर्शन भड़क उठे हैं.

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उनका कहना है, “नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यकों पर कोविड-19 का दिल दहला देने वाले प्रभाव पर बातचीत को काफ़ी हो रही है, लेकिन अभी जो कुछ अस्पष्ट है, वो ये है कि इससे निपटने के लिए क्या-कुछ किया जा रहा.”

“देशों को तुरन्त ठोस क़दम उठाने होंगे, मसलन स्वास्थ्य की निगरानी और परीक्षणों को प्राथमिकता देनी होगी, ज़्यादा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया करानी होंगी, और इन समुदायों को लक्षित कारगर सूचना व जानकारी मुहैया करानी होगी.”

ग़ैर-आनुपातिक मृत्यु दर

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने कुछ उदाहरण भी दिए कि अमेरिकी द्वीप व योरोप के अनेक देशों में कोविड-19 का कितना असर और किस तरह हुआ है. 

मसलन, ब्राज़ील के साओ पाउलो प्रान्त में, गोरे लोगों की तुलना में काले और भूरी त्वचा वाले लोगों की कोविड-19 से मृत्यु होने की 62 प्रतिशत ज़्यादा सम्भावना है. इसी तरह फ्रान्स से सींन सेंट-डेनिस विभाग में भी उच्च मृत्यु दर दर्ज की गई है, वहाँ बहुत से अल्पसंख्यक लोगों की ज़्यादा संख्या है.

इस बीच अमेरिका से मिले आँकड़े दिखाते हैं कि वहाँ भी कोविड-19 के कारण अन्य नस्लीय समूहों की तुलना में अफ्रीकी-अमेरिकी समुदायों में ज़्यादा मौतें हुई हैं.

इसी तरह की स्थिति इंग्लैंड और वेल्स में भी देखी गई है जहाँ काले, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी लोगों की मौतें, गोरे लोगों की तुलना में लगभग दो गुनी हैं.

“अनेक अन्य स्थानों पर भी ऐसे ही आँकड़े देखे गए हैं, लेकिन हम पूरी तरह निश्चित नहीं हैं क्योंकि नस्ल और जातीयता के आधार पर आँकड़े एकत्र ही नहीं किए जा रहे हैं.” 

विषमताओं की जड़

मिशेल बाशेलेट का कहना था कि इन विषमताओं की जड़ में बहुत से कारक बैठे हुए हैं.

उनमें बहुत से समुदायों का हाशिए पर जीना और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच में उनके साथ भेदभाव होना भी प्रमुख हैं. आर्थिक असमानता, भीड़ भरे घर-परिवार, पर्यावरणीय जोखिम, स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता और देखभाल में पूर्वाग्रह भी अपनी भूमिका निभाते हैं.

उनका ये भी कहना है कि नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की ऐसे कामकाजों में ज़्यादा संख्या देखी गई है जहाँ ज़्यादा जोखिम होता है, मसलन परिवहन, स्वास्थ्य और स्वच्छता क्षेत्र.

महामारी द्वारा भंडाफोड़

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने सरकारों व प्रशासन से आग्रह किया कि वो इन विषमताओं के कारण होने वाले मौजूदा प्रभाव पर ही ध्यान ना दें बल्कि उनकी जड़ को भी पहचानें.

“ये वायरस देशों में व्याप्त ऐसी असमानताओं को सामने ला रहा है जिनकी अनदेखी की गई है. अमेरिका में जियॉर्ज फ्लॉयड की मौत से भड़के प्रदर्शन ना केवल काले लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस की हिंसा की तरफ़ ध्यान खींच रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार क्षेत्र में व्याप्त असमानताओं और गहराई से बैठे नस्लीय भेदभाव की तरफ़ भी ध्यान दिला रहे हैं.”

“अन्य अनेक देशों में भी कुछ इसी तरह की समस्याएँ देखी गई हैं, जहाँ अफ्रीकी मूल के लोगों व अन्य नस्लीय अल्पसंख्यक समुदायों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जाता है. ये बड़े दुख की बात है कि ये विषमताएँ सामने आने में कोविड-19 जैसी महामारी का इन्तज़ार करना पड़ा.

उन्होंने कहा कि जबकि ये पहले से ही उजागर होनी चाहिए थी क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच, भीड़ भरे मकान और परिवार और लम्बे समय से चला आ रहा भेदभाव हमारे समाजों को कम टिकाऊ, कम सुरक्षित और कम समृद्ध बनाता है.”

आँकड़ों से मिलेगी मदद

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट का कहना था कि तमाम देशों में समाजों को आगे बढ़ने के लिए वहाँ की सरकारों को समूहों पर केन्द्रित आँकड़े एकत्र करने होंगे, साथ ही महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में नस्लीय व अल्पसंख्यक समुदायों से भी विचार-विमर्श करना होगा. 

“नस्लीय, जातीयता और लैंगिक पहचान के आधार पर आँकड़े एकत्र करके और उनका विश्लेषण करने से असमानताओं और संस्थागत भेदभाव को पहचानने में मदद मिलेगी जिनके कारण ख़राब स्वास्थ्य परिणाम नज़र आते हैं, और उनमें कोवीड-19 जैसी महामारी भी शामिल है.”

मानवाधिकार प्रमुख का कहना था कि कोविड-19 महामारी को तब तक पूरी तरह नहीं हराया जा सकता जब तक कि देशों की सरकारें ये अपने समाजों में मौजूद गहराई से बैठी असमानताओं को स्वीकार नहीं करेंगी, जिन्हें इस महामारी ने सबके सामने ला दिया है.

उन्होंने ये भी कहा कि कोविड-19 का मुक़ाबला करने और उसके प्रभावों से उबरने के प्रयासों में आख़िरकार तब तक मदद नहीं मिलेगी जब तक कि हर व्यक्ति का जीवन व स्वास्थ्य का अधिकार सुनिश्चित व सुरक्षित नहीं किया जाता है, जिसमें किसी भी तरह का भेदभाव ना हो.