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अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, संकल्प निभाने में 'विफल रही है दुनिया'

वियतनाम में जातीय अल्पसंख्यक हमोंग समुदाय का एक परिवार.
© UNICEF/Truong Viet Hung
वियतनाम में जातीय अल्पसंख्यक हमोंग समुदाय का एक परिवार.

अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, संकल्प निभाने में 'विफल रही है दुनिया'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ध्यान दिलाया है कि अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा करने के लिये, तीन दशक पहले जो संकल्प लिये गए थे, दुनिया उन्हें पूरा करने से बहुत दूर है. यूएन प्रमुख ने बुधवार को अल्पसंख्यक अधिकारों पर आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, इस उपेक्षा से निपटने के लिये ठोस कार्रवाई का आग्रह किया है.  

यूएन प्रमुख ने राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों के अधिकारों पर घोषणा-पत्र के पारित होने की 30वीं वर्षगाँठ पर न्यूयॉर्क में बुधवार को एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया.  

यूएन महासभा के 77वें सत्र के दौरान सदस्य देशों ने इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ के तहत अब तक हुई प्रगति का आकलन किया. 

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महासचिव गुटेरेश ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, “कटु सत्य यही है कि विश्व, 30 वर्ष बाद भी पीछे छूट रहा है. बहुत पीछे.”

“हम कमियों का सामना नहीं कर रहे हैं. हम अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के मामले में पूरी तरह से अकर्मण्यता और उपेक्षा को देख रहे हैं.”

महिलाएँ सर्वाधिक प्रभावित

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों को जबरन सम्मिलन (assimilation), उत्पीड़न, पूर्वाग्रह, भेदभाव, रुढ़िबद्धता, घृणा और हिंसा का सामना करना पड़ा है.

साथ ही, उन्हें उनके राजनैतिक व नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया है, उनकी संस्कृतियों व भाषाओं को दबाया गया है, और धार्मिक प्रथाओं पर भी रोक लगाई गई है. 

इसके अलावा, विश्व भर में तीन-चौथाई से अधिक देशविहीन लोग अल्पसंख्यक समुदायों से हैं.

कोविड-19 महामारी ने गहराई तक समाए बहिष्करण व भेदभाव के रुझानों को उजागर किया, जिससे ये समुदाय विषमतापूर्ण ढंग से प्रभावित हुए हैं.  

“अल्पसंख्यक समूहों की महिलाओं के लिये हालात विशेष रूप से ख़राब हुए हैं. उन्हें लिंग-आधारित हिंसा बढ़ने का सामना करना पड़ा, बड़ी संख्या में रोज़गार ख़त्म हो गए और उन्हें वित्तीय स्फूर्ति पैकेजों का लाभ भी सबसे कम मिला.”

इसके मद्देनज़र, यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को जल्द से जल्द अपने संकल्पों को पूरा करना होगा.

कार्रवाई की पुकार

“हमें राजनैतिक नेतृत्व और प्रतिबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता है. मैं हर एक सदस्य देश से अल्पसंख्यकों और उनकी पहचान की रक्षा करने के लिये ठोस क़दम उठाने का आग्रह करता हूँ.” 

इस क्रम में, यूएन प्रमुख ने मानवाधिकारों के लिये कार्रवाई की पुकार का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने फ़रवरी 2020 में जारी किया था. 

यह सभी सरकारों के लिये एक ऐसा ब्लूप्रिंट बताया गया है जिससे लम्बे समय से चले आ रहे भेदभाव से निपटा जा सकता है. 

इस बीच, पिछले वर्ष सितम्बर में प्रकाशित ‘हमारा साझा एजेंडा’ रिपोर्ट में नए सिरे से सामाजिक अनुबन्ध का आहवान किया गया है, जिसमें मानवाधिकारों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए.

यूएन महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि अल्पसंख्यकों की हर कार्रवाई व निर्णय में सक्रिय व समान भागीदारी सुनिश्चित की जानी होगी, और उनकी हिस्सेदारी केवल उनके ही हित में नहीं है.

“हम सभी इसका लाभ उठाते हैं. जो देश अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, वो अधिक शान्तिपूर्ण होते हैं. जो अर्थव्यवस्थाएँ, अल्पसंख्यकों की पूर्ण भागीदारी को बढ़ावा देती हैं, वे अधिक समृद्ध होती हैं.”

“वे समाज जो विविधता व समावेशन को अपनाते हैं, वे अधिक गुंजायमान होते हैं. और एक दुनिया जिसमें सभी के अधिकारों का सम्मान किया जाए, वो अधिक स्थिर व अधिक न्यायोचित होती है.”

महत्वपूर्ण घोषणापत्र

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि यह अवसर, कार्रवाई के लिये एक उत्प्रेरक होना चाहिये. उन्होंने देशों से एकजुट होकर, हर स्थान पर अल्पसंख्यकों के लिये घोषणा-पत्र को वास्तविक धरातल पर उतारने का आग्रह किया.

1992 में पारित हुआ यह घोषणापत्र, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र ऐसा साधन है, जोकि पूर्ण रूप से अल्पसंख्यकों के लिये समर्पित है. 

इसमें तीन बुनियादी सत्य प्रतिष्ठापित हैं. अल्पसंख्यक अधिकार, मानवाधिकार हैं. अल्पसंख्यकों की रक्षा, यूएन के मिशन के तहत बेहद अहम है. अल्पसंख्यक अधिकारों को बढ़ावा, राजनैतिक व सामाजिक स्थिरता को सुनिश्चित करने और देशों के भीतर व देशों के बीच, हिंसक टकराव रोकने के नज़रिये से महत्वपूर्ण है.

विविधता में शक्ति

यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिये अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने अपने सम्बोधन में देशों से अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा किये जाने का आग्रह किया. 

उन्होंने कहा कि इस घोषणापत्र की महत्वाकांक्षा एक ऐसे विश्व का सृजन करना था, जहाँ अल्पसंख्यक, मुक्त भाव से अपने धर्म का पालन कर सकें. मुक्त रूप से परम्पराओं में शामिल हो सकें. मुक्त होकर अपनी मूल भाषा में बात कर सकें. एक ऐसी दुनिया जहाँ विविधता को एक बोझ के रूप में नहीं, शक्ति के रूप में देखा जाए. 

महासभा प्रमुख ने कहा कि उनकी कोशिश किसी पर उंगली उठाने की नहीं है, बल्कि उस साझा ज़मीन को मज़बूत करने की है, जिस पर पहले ही सहमति बन चुकी है.