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सरकारी शिक्षा ख़र्च में 'शर्मनाक विषमताओं" को दूर करने की पुकार

चाड की बोल नामक बस्ती में एक स्कूल से बाहर निकलती किशोरियाँ
UN Photo/Eskinder Debebe
चाड की बोल नामक बस्ती में एक स्कूल से बाहर निकलती किशोरियाँ

सरकारी शिक्षा ख़र्च में 'शर्मनाक विषमताओं" को दूर करने की पुकार

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि ग़रीब परिवारों की एक तिहाई किशोरी लड़कियों को कभी स्कूली शिक्षा की सुविधा हासिल नहीं हुई और शिक्षा पर ख़र्च धनी परिवारों की तरफ़ भारी रूप में झुका हुआ है.

यूनीसेफ़ की ये ताज़ा रिपोर्ट सोमवार को स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के मौक़े पर प्रकाशित की गई है जिसमें देशों के मंत्री स्तर के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं.

यूनीसेफ़ ने विश्व नेताओं से शिक्षा पर धन ख़र्च में इन शर्मनाक विषमताओं को दूर करने के लिए तुरंत ठोस उपाय करने का आग्रह किया है.

यूनीसेफ़ की इस ताज़ा रिपोर्ट को नाम दिया गया है - “Addressing the learning crisis: an urgent need to better finance education for the poorest children”.

रिपोर्ट कहती है कि ग़रीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा हासिल करने से वंचित रखने के कारण  ग़रीबी और ज़्यादा बढ़ती है और शिक्षा की कमी के वैश्विक संकट में इस पहलू का बहुत बड़ा हिस्सा है.

ग़रीब परिवारों के ये बच्चे शिक्षा हासिल करने में जिन बाधाओं का सामना करते हैं, उनमें लैंगिक भेदभाव, विकलांगता, नस्लीय मूल और कमज़ोर ढाँचागत समस्याएँ शामिल होते हैं.

कंबोडिया के क्रेस गाँव में 11 वर्षीय एक लड़की लाउल बोफ़ा अपने स्कूल से पैदल रास्ता लेते हुए.
© UNICEF/Antoine Raab
कंबोडिया के क्रेस गाँव में 11 वर्षीय एक लड़की लाउल बोफ़ा अपने स्कूल से पैदल रास्ता लेते हुए.

जो बच्चे स्कूल में शिक्षा हासिल करने की सुविधा हासिल कर भी पाते हैं तो भी उन्हें वहाँ एक कक्षा में बहुत ज़्यादा बच्चे होने की समस्या का सामना करना पड़ता है.

बहुत से अध्यापक पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होते हैं, शैक्षणिक सामग्री की कमी होती है और स्कूलों में अन्य ढाँचागत व्यवस्था भी कमज़ोर होती हैं.

यूनीसेफ़ के अनुसार इन सब कारणों से बच्चों के स्कूलों में दाख़िला लेने, उनके प्रतिदिन स्कूल में उपस्थित रहने और शिक्षा हासिल करने की क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

ग़रीबी का दलदल

यूनीसेफ़ की महानिदेशक हेनरिएटा फ़ोर ने ये रिपोर्ट जारी होने के मौक़े पर कहा, “हर जगह सभी देश विश्व के निर्धनतम बच्चों की ज़रूरतों और उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं, और ऐसा करके वो देश अंततः ख़ुद को भी नाकाम साबित कर रहे हैं.”

“जब तक शिक्षा क्षेत्र पर किया जाने वाला सार्वजनिक धन अमीर परिवारों के बच्चों की तरफ़ ज़्यादा झुका हुआ रहेगा, तब तक निर्धनतम लोगों के ग़रीबी के दलदल से निकलने की उम्मीद बहुत कम रहेगी.”

हम बहुत गंभीर मोड़ पर खड़े हैं. हम अगर बच्चों की शिक्षा पर समझदारी से और समानता के साथ धन ख़र्च करेंगे तो बच्चों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए हमारे पास सर्वश्रेष्ठ अवसर मौजूद होगा.

रिपोर्ट कहती है कि निर्धनतम बच्चों के लिए उपलब्ध संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा का संकट और ज़्यादा गंभीर हो रहा है क्योंकि स्कूल अपने छात्रों को गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहते हैं.

विश्व बैंक के अनुसार निम्न और मध्य आय वाले देशों में रहने वाले आधे से ज़्यादा बच्चे प्राईमरी स्कूल की शिक्षा समाप्त होने के बाद एक साधारण कहानी भी सही तरीक़े से पढ़ या समझ नहीं सकते.

शिक्षा क्षेत्र में होने वाले धन ख़र्च के मामले में अफ्रीका में दस देशों में सबसे ज़्यादा विषमताएँ हैं: गिनी और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि विश्व में सबसे ज़्यादा दर में शामिल है.

धनी परिवारों के बच्चे सार्वजनिक शिक्षा पर ख़र्च होने वाले धन से ग़रीब बच्चों के मुक़ाबले गिनी में नौ गुना और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में छह गुना ज़्यादा फ़ायदे में रहते हैं.

यूनीसेफ़ की इस रिपोर्ट के लिए 52 देशों में मौजूद डेटा का अध्ययन किया गया.

अध्ययन में शामिल सिर्फ़ पाँच देशों में ये पाया गया कि वहाँ ग़रीब और धनी परिवारों के बच्चों को समान रूप से शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है. ये देश हैं – बारबडोस, डेनमार्क, आयरलैंड, नॉर्वे और स्वीडन.

रिपोर्ट में सभी देशों से इन पाँच देशों का रास्ता अपनाते हुए प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी धन ख़र्च को प्राथमिकता देने का आग्रह किया गया है.

रिपोर्ट में ये भी आग्रह किया गया है कि इस योजना के तहत हर बच्चे को प्राईमरी शिक्षा से पहले कम से कम एक वर्ष की सार्वभौमिक शिक्षा मुहैया कराई जाए.

यूनीसेफ़ की प्रमुख हेनरिएटा फ़ोर ने कहा, “हम बहुत गंभीर मोड़ पर खड़े हैं. हम अगर बच्चों की शिक्षा पर समझदारी से और समानता के साथ धन ख़र्च करेंगे तो बच्चों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए हमारे पास सर्वश्रेष्ठ अवसर मौजूद होगा.”

“ऐसा करके हम बच्चों को ऐसे हुनर देकर सशक्त बना सकते हैं जिनके बल पर वो प्रगति के अवसरों का फ़ायदा उठा सकें और ख़ुद के लिए नए अवसर भी पैदा कर सकें.”