भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम के 'भेदभावपूर्ण होने की चिंता'
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने भारत के नए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 पर चिंता जताते हुए कहा है कि ये बुनियादी तौर पर भेदभावपूर्ण है. ग़ौरतलब है कि ये अधिनियम भारतीय संसद द्वारा हाल ही में पारित हुआ और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद क़ानून बना है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त के प्रवक्ता जेरेमी लॉरेंस ने शुक्रवार को जिनीवा में कहा, “संशोधित नागरिकता अधिनियम में तीन देशों – अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता दिए जाने की प्रक्रिया तेज़ करने का प्रावधान है. इनमें केवल ऐसे हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को ही ये नागरिकता देने की बात कही गई है जो भारत में साल 2014 से पहले आकर रह रहे हों.”
#India: We are concerned that the new #CitizenshipAmendmentAct is fundamentally discriminatory in nature. Goal of protecting persecuted groups is welcomed, but new law does not extend protection to Muslims, incl. minority sects: https://t.co/ziCNTWvxc2#FightRacism #CABProtests pic.twitter.com/apWbEqpDOZ
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“लेकिन इसी तरह की सुरक्षा मुसलमानों को नहीं दी गई है जो उन देशों में अल्पसंख्यक गुट हैं.”
प्रवक्ता जेरेमी लॉरेंस ने कहा कि संशोधित नागरिकता अधिनियम के ज़रिए उन संवैधानिक संकल्पों को कमज़ोर या नज़रअंदाज़ करने की कोशिश नज़र आती है जिनके ज़रिए क़ानून की नज़र में सभी को बराबरी हासिल है. इसके अलावा इस अधिनियम के ज़रिए सिविल व राजनैतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय कॉवीनेंट और नस्लीय भेदभाव को ख़त्म करने की अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत ज़िम्मेदारियों को भी नज़रअंदाज़ करने के प्रयास नज़र आते हैं.
याद रहे कि भारत इन संधियों पर हस्ताक्षर करने वाला एक प्रतिभागी देश है.
ये संधियाँ नस्ल, जाति और धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को निषिद्ध करती हैं.
हालाँकि प्रवक्ता ने ये भी कहा है कि भारत में नागरिकता संबंधी व्यापक क़ानून अब भी लागू हैं लेकिन ये नागरिकता संशोधन अधिनियम लोगों द्वारा नागरिकता हासिल करने की योग्यताओं और दावों पर भेदभादपूर्ण असर डालेगा.
मानवाधिकार उच्चायुक्त के प्रवक्ता जेरेमी लॉरेंस ने कहा कि प्रवासियों को अपने प्रवासन दर्जे के आधार पर किसी तरह के भेदभाव के बिना सम्मान और अपने मानवाधिकारों की संरक्षा व गारंटी का अधिकार हासिल है.
केवल 12 महीने पहले ही भारत ने सुरक्षित, नियमित और व्यवस्थित प्रवासन पर हुए ग्लोबल कॉम्पैक्ट का समर्थन किया था. इस ग्लोबल कॉम्पैक्ट में प्रवासियों की कमज़ोर और नाज़ुक स्थिति में ज़रूरतों के संबंध में देशों की ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि इसमें ये भी कहा गया है कि मनमाने तरीक़े से प्रवासियों को बंदी ना बनाया जाए, उन्हें सामूहिक रूप से अलग-थलग ना किया जाए और ये सुनिश्चित किया जाए कि प्रवासन संबंधी प्रशासनिक उपाय मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त करने के तरीक़ों पर आधारित हों.
प्रवक्ता का कहना है कि वैसे तो कहीं भी सताए हुए लोगों के समूह को संरक्षा प्रदान करने का लक्ष्य स्वागत योग्य है, लेकिन ऐसा इंतज़ाम एक राष्ट्रीय शरण व्यवस्था के ज़रिए किया जाना चाहिए जिसका आधार बराबरी के सिद्धांत और ग़ैर-भेदभावपूर्ण तरीकों पर टिका हो.
साथ ही ये व्यवस्था उन सभी लोगों व समूहों के लिए उपलब्ध होनी चाहिए जो किसी भी तरह सताए हुए हैं या उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, मगर उनकी नस्ल, जाति, राष्ट्रीय मूल या किसी भी अन्य आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता.
प्रवक्ता के अनुसार, “हम ये भी समझते हैं कि इस नए क़ानून की समीक्षा भारत के सुप्रीम कोर्ट में की जाएगी और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भारत की अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ज़िम्मदारियों की नज़र से भी इस क़ानून की सतर्कतापूर्वक समीक्षा करेगा.”
प्रवक्ता ने कहा, “इस बीच हम इन ख़बरों पर चिंतित हॆं कि भारत के असम और त्रिपुरा राज्यों में इस नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध प्रदर्शनों के दौरान दो लोगों की मौत हो गई है और कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.”
“हम सरकार का आहवान करते हैं कि लोगों के शांतिपूर्ण तरीक़े से सभाएं करने के अधिकारों का सम्मान किया जाए और प्रदर्शनों की स्थिति को संभालने के दौरान बल प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार ही किया जाए. सभी पक्षों को हिंसा का सहारा लेने से बिल्कुल बचना चाहिए.”
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