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2024: ‘महाचुनावी वर्ष’, लोकतंत्र के लिए अहम पड़ाव बनने की सम्भावना

2024 में 60 से अधिक देशों में चुनाव आयोजित होंगे, जिसमें आधी से अधिक वैश्विक आबादी हिस्सा लेगी.
UN Photo/Marco Dormino
2024 में 60 से अधिक देशों में चुनाव आयोजित होंगे, जिसमें आधी से अधिक वैश्विक आबादी हिस्सा लेगी.

2024: ‘महाचुनावी वर्ष’, लोकतंत्र के लिए अहम पड़ाव बनने की सम्भावना

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने उम्मीद जताई है कि इस वर्ष, दुनिया के कई देशों में आयोजित होने जा रहे चुनाव, नफ़रत से दूर रहेंगे और लोगों की आकाँक्षाओं का सम्मान किया जाएगा, मगर ऐसे चेतावनी भरे संकेत भी मिल रहे हैं कि चाड, हंगरी, रूस और सेनेगल समेत कुछ अन्य देशों में शायद ऐसा ना हो.

मानवाधिकार मामलों पर यूएन के प्रमुख अधिकारी ने, मानवाधिकार परिषद के 55वें सत्र में, विश्व के अनेक हिस्सों में मानवाधिकारों के लिए उपजी चिन्ताओं व चुनौतियों की तरफ़ ध्यान आकृष्ट किया.

उन्होंने कहा कि इस वर्ष विश्व के 60 से अधिक देशों में चुनाव होंगे और इस नज़रिये से 2024, एक महा चुनावी वर्ष है. यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि हर चुनाव, भले ही व आदर्श साबित ना हो, यह औपचारिक रूप से लोकतंत्र के लिए सार्वभौमिक आकाँक्षा का सूचक है. 

वोल्कर टर्क ने आशा जताई कि ये चुनाव नफ़रत से मुक्त होंगे और लोगों की इच्छाओं का सम्मान करेंगे, मगर ऐसे चेतावनी भरे संकेत भी हैं कि अनेक देशों में शायद ऐसा ना हो. इस क्रम में उन्होंने चाड, हंगरी, रूस और सेनेगल का उल्लेख किया.

चुनाव व सिफ़ारिशें

भारत

वोल्कर टर्क ने कहा कि भारत में 96 करोड़ लोग चुनावी मतदाता हैं और आगामी संसदीय चुनाव का स्तर, अपने आप में अनूठा होगा.

उन्होंने देश की धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक परम्पराओं और उसकी महान विविधता की सराहना की, मगर साथ ही सचेत भी किया कि नागरिक समाज पर पाबन्दियाँ बढ़ती जा रही हैं, जोकि चिन्ता की वजह है.

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मानवाधिकार उच्चायुक्त के अनुसार, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आलोचक के रूप में देखे जाने वाले लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, और अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिमों के साथ भेदभाव व नफ़रत भरी बोली व सन्देश को बढ़ावा मिल रहा है. 

वोल्कर टर्क ने ज़ोर देकर कहा कि यह ज़रूरी है कि निर्वाचन प्रक्रिया से पहले के सन्दर्भ में, सभी के लिए खुली जगह को सुनिश्चित किया जाना अहम है, जिसमें हर किसी की अर्थपूर्ण भागेदारी का सम्मान किया जाए.

साथ ही, उन्होंने पिछले महीने चुनाव प्रचार के लिए चन्दे के मुद्दे पर भारत के उच्चतम न्यायालय निर्णय का स्वागत किया है, जिसने, उनके अनुसार सूचना व पारदर्शिता के अधिकार को बरक़रार रखा है.

अमेरिका

मानवाधिकार मामलों के प्रमुख ने कहा कि अमेरिका में निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं, हालांकि 2020 में राष्ट्रपति चुनावों के बाद से अब तक वोट धांधली की चिन्ताओं के बीच 18 राज्यों में डाक मतों (postal votes) पर रोक लगाई गई थी. इसे बढ़ाकर 22 तक ले जाया गया है.

उन्होंने कहा कि समान अधिकारों और हर नागरिक के वोट के मूल्य पर बल दिया जाना आवश्यक है, विशेष रूप से गहन राजनैतिक ध्रुवीकरण के सन्दर्भ में. अमेरिका में इस वर्ष 5 नवम्बर को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं.

रूसी महासंघ

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि रूसी महासंघ ने राष्ट्रपति चुनाव से पहले, असहमति के स्वरों के दमन को तेज़ कर दिया है. 

अनेक उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका गया है और हज़ारों नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों व सोशल मीडिया यूज़र्स को प्रशासनिक व आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा है.

ये आरोप रूस की सशस्त्र सेनाओं के विरुद्ध कथित रूप से झूठी जानकारी फैलाने से जुड़े हुए हैं. उच्चायुक्त टर्क के अनुसार, हाल के महीनों में हालात बद से बदतर हुए हैं और सांस्कृतिक क्षेत्र की हस्तियों को भी निशाना बनाया गया है.

पाकिस्तान

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि पाकिस्तान में फ़रवरी (2024) हुए चुनाव में व्यापक स्तर पर भागेदारी दर्शाती है कि पाकिस्तान के लोग, लोकतंत्र का मूल्य समझते हैं, और नागरिक शासन में हस्तक्षेप का अन्त होते देखना चाहते हैं.

मानवाधिकार उच्चायुक्त के अनुसार, अभिव्यक्ति की आज़ादी, राय व्यक्त करने, शान्तिपूर्ण सभा में शामिल होने के अधिकार, लोकतंत्र को मज़बूत करने की बुनियाद में हैं, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक व विकास चुनौतियों से निपटा जा सकता है.

पाकिस्तान में 8 फ़रवरी को संसदीय चुनाव के लिए मतदान हुआ था. विवादों में घिरे इन चुनाव में, किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, मगर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के समर्थक व स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़े उम्मीदवारों को, कुल मिलाकर सबसे अधिक सीट हासिल हुईं.

इसके बाद, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) ने एक साथ मिलकर, अगली गठबंधन सरकार बनाई है.

उन्होंने नई सरकार से आग्रह किया है कि राजनैतिक विरोधियों, पत्रकारों, अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों समेत लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने की घटनाओं पर विराम लगाया जाना होगा. ऐसी घटनाओं में हिरासत में लिए गए लोगों के बारे में हफ़्तों, महीनों और कुछ मामलों में कई सालों तक यह जानकारी भी नहीं मिल पाती है कि उन्हें कहाँ रखा गया है.

बांग्लादेश

वोल्कर टर्क ने कहा कि बांग्लादेश में विपक्षी दलों के हज़ारों नेता और कार्यकर्ता अब भी हिरासत में हैं और अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक हिरासत में, कई लोगों की जान जा चुकी है.

इस वर्ष जनवरी महीने में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की पार्टी आवामी लीग और सहयोगी दलों ने संसदीय चुनावों में लगातार चौथी बार जीत हासिल की थी.

मगर, देश के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने इन चुनावों का बहिष्कार किया था, और उसके नेताओं व समर्थकों को बड़े पैमाने पर गिरफ़्तार किए जाने की ख़बरें थी.

उन्होंने कहा कि वह किसी भी प्रकार की राजनैतिक हिंसा का विरोध करने के साथ-साथ, ऐसे सभी मामलों की त्वरित समीक्षा किए जाने, बन्दियों को रिहा करने और राजनैतिक संवाद व मेलमिलाप को प्रोत्साहन देने का आग्रह करते हैं. 

वोल्कर टर्क ने मानवाधिकार पैरोकारों, पत्रकारों और नागरिक समाज नेताओं का उत्पीड़न करने के लिए न्याय प्रणाली का इस्तेमाल किए जाने के आरोपों पर चिन्ता जताई.

उन्होंने लोगों के जबरन लापता होने, न्यायेतर हत्याएँ किए जाने के आरोपों की अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप जाँच कराए जाने की अपील की है.

अफ़ग़ानिस्तान

मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों का व्यवस्थागत ढंग से उल्लंघन जारी रहने की भर्त्सना की है, विशेष रूप से महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों के हनन मामलों की. 

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि महिलाओं व लड़कियों को सार्वजनिक जीवन के हर पहलू से दूर रखा जा रहा है: माध्यमिक व विश्वविद्यालय शिक्षा, रोज़गार व आने-जाने के अधिकार को छीन करके.

इसके मद्देनज़र, यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी होगी.

उनके अनुसार, सभी अफ़ग़ान नागरिकों की स्वतंत्रताओं व मीडिया की आज़ादी पर अंकुश लगाया गया है और अनेक महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व पत्रकारों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है.

देश में “सरेआम मौत की सज़ा देने” की घटनाओं का फिर से शुरू होना ‘भयावह’ है. 

उन्होंने पड़ोसी देशों से अफ़ग़ान नागरिकों को देश निकाला दिए जाने की घटनाओं पर चिन्ता जताई, विशेष रूप से उत्पीड़न, यातना का जोखिम झेलने वाले लोगों को.