वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

नागरिकता

विश्व भर में महिलाओं व लड़कियों को लिंग-आधारित हिंसा का सामना करना पड़ता है.
© IOM 2021/Lauriane Wolfe

राष्ट्रीयता क़ानूनों में महिलाओं के साथ भेदभाव, लैंगिक समानता के लिए चुनौती

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने क्षोभ प्रकट किया है कि विश्व के लगभग 50 देशों में अब भी ऐसे राष्ट्रीयता क़ानून मौजूद हैं, जिनके तहत महिलाओं व लड़कियों के साथ लैंगिक आधार पर भेदभाव किया जाता है. इसके मद्देनज़र, उन्होंने ऐसे क़ानूनों के प्रावधानों में संशोधन किए जाने पर बल दिया है.

ताजिकिस्तान में अपने नए पहचान पत्रों के साथ एक परिवार के सदस्य. ये लोग पहले राष्ट्रविहीन थे.
© UNHCR/Didor Saidulloyev

नागरिकता के बिना जीवन, राष्ट्रविहीनों के मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन  

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने विश्व भर में 43 लाख राष्ट्रविहीन लोगों के जीवन में बेहतरी लाने के लिये मज़बूत राजनैतिक इच्छाशक्ति और ठोस उपायों की पुकार लगाई है.

फ्रांस के उत्तरी हिस्से में स्थित एक प्रवासी शिविर में एक लड़का.
UNICEF/Geai

ब्रिटेन: 'राष्ट्रीयता और सीमाएँ विधेयक' से 'अधिकार उल्लंघन के गम्भीर जोखिम'

संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा कि ब्रिटेन में सांसद, जिस नए “राष्ट्रीयता व सीमाएँ विधेयक” (Nationality and Borders Bill) पर संसद में चर्चा कर रहे हैं उससे भेदभाव और मानवाधिकारों के गम्भीर उल्लंघन का ख़तरा बढ़ेगा, और ये विधेयक दरअसल अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत देश की ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन भी करता है.

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार के बालूखली शिविर में अपने बच्चे के साथ एक महिला.
UN Women/Allison Joyce

राष्ट्रविहीनता के अन्त के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति पर ज़ोर

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने विश्व नेताओं से वर्ष 2024 तक राष्ट्रविहीनता के उन्मूलन के लिये निडर और तत्पर प्रयासों की पुकार लगाई है. हाल के वर्षों में राष्ट्रविहीन लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिये उल्लेखनीय प्रयास किये गये हैं लेकिन कोरोनावायरस संकट काल में उनके लिये चुनौतियाँ और भी गहरी हुई हैं.  

नागरिकता संशोधन अधिनियम के ज़रिए 1955 के मूल नागरिकता क़ानूुन में संशोधन करके विदेशियों के नागरिकता हासिल करने की शर्तों में बदलाव किया गया है.
World Bank/Simone D. McCourtie

भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम के 'भेदभावपूर्ण होने की चिंता'

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने भारत के नए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 पर चिंता जताते हुए कहा है कि ये बुनियादी तौर पर भेदभावपूर्ण है. ग़ौरतलब है कि ये अधिनियम भारतीय संसद द्वारा हाल ही में पारित हुआ और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद क़ानून बना है.

अहमद शहीद धर्म और आस्था की स्वतंत्रता मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैं.
UN Photo/Jean-Marc Ferré

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में बदलावों पर गंभीर चिंता

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत के असम राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में लगातार किए जा रहे बदलावों और लाखों लोगों पर इनसे होने वाले भारी नुक़सान की संभावनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. प्रभावित होने वाले ज़्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदायों से हैं. इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे नफ़रत भरे माहौल पर भी गंभीर चिंता जताई है.