चरमपंथियों के परिवारों को देशविहीन नहीं छोड़ा जा सकता - मिशेल बाचेलेट
चरमपंथी संगठन आइसिल यानी दाएश के जिन संदिग्ध हज़ारों विदेशी लड़ाकों को सीरिया और इराक़ में बंदीगृहों में रखा गया है, उनके साथ मानवीय बर्ताव किए जाने और उनके मूल देशों को सौंपे जाने का आग्रह किया गया है. संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशेलेट ने सोमवार को मानवाधिकार परिषद का 41वाँ वार्षिक सत्र शुरू होने के अवसर पर ये आहवान किया.
जिनीवा में शुरू हुए इस सत्र में सदस्य देशों को संबोधित करते हुए मिशेल बाचेलेट ने बताया कि कुछ महीने पहले तथाकथित ख़िलाफ़त का पतन होने के बाद लगभग 55 हज़ार पुरुष, महिलाएँ और बच्चों को बंदी बनाया गया है.
“बंदी बनाए गए इन लोगों में अधिकतर सीरियाई व इराक़ी मूल के हैं लेकिन उनमें बहुत से कथित लड़ाके लगभग 50 देशों के नागरिक भी हैं.”
मिशेल बाचेलेट का कहना था कि दाएश के संदिग्ध लड़ाकों के परिवारों को लगभग 11 हज़ार सदस्यों को पूर्वोत्तर सीरिया के अल होल शिविर में अमानवीय हालात में रखा गया है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ के आँकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीरिया में विदेशी लड़ाकों के लगभग 29 हज़ार बच्चे मौजूद हैं, जिनमें से लगभग दो तिहाई मूल रूप से इराक़ से आए थे.
उनमें से बहुत से तो 12 वर्ष से भी कम उम्र के हैं.
कहीं बदला लेने का चलन शुरू ना हो जाए
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि मध्य पूर्व में हाल के वर्षों में लड़ाई के दौरान विदेशी परिवारों में हज़ारों बच्चे पैदा हुए हैं. उन्होंने तमाम देशों से अपील की कि उन बच्चों को राष्ट्रीयता से वंचित ना करें नहीं तो भारी तकलीफ़ों और शायद बदला लेने की भावना गहरी बैठ जाने का सिलसिला भी शुरू हो जाने की आशंका है.
इराक़ में 150 से ज़्यादा पुरुषों और महिलाओं को आतंकवाद निरोधक क़ानूनों के तहत मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है. ये सज़ा सुनाने के लिए चली क़ानूनी प्रक्रिया में समुचित मानक नहीं अपनाए गए.
मिशेल बाचेलेट ने ज़ोर देकर कहा कि इन विदेशी लड़ाकों और उनके परिवारों के मूल देशों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके साथ होने वाला हर तरह का बर्ताव अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों के अनुरूप हो.
बच्चों की सुरक्षा ज़रूरी
मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट का कहना था कि विशेषरूप से बच्चों को भारी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा है और उनके मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है.
उन्होंने 47 सदस्यों वाली मानवाधिकार परिषद के सामने कहा कि इनमें वो बच्चे भी शामिल हैं जिन्हें दाएश ने भर्ती किया हो और उन्हें हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए विशाक्त विचारों से भर दिया हो.
UN Human Rights Chief @mbachelet cites #ISIL families; digital threats; criminalisation of compassion; #Idlib, #HongKong, #Mexico, #Myanmar, #Sudan, #Philippines and more, in global update to the UN Human Rights Council. Full speech: https://t.co/Fk73GJuAla #HRC41 @UN_HRC pic.twitter.com/N9jXXwbS24
UNHumanRights
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “मुख्य ज़ोर इन बच्चों के पुनर्वास, सुरक्षा और उनके भविष्य की बेहतरी पर होना चाहिए.”
मानवाधिकार कार्यालय ने 2018 में संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद निरोधक उपाय लागू करने वाली टास्क फ़ोर्स के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें अनुमान लगाया गया था कि कथित तौर पर 110 देशों से लगभग 40 हज़ार लड़ाके अक्तूबर 2017 तक दाएश के साथ शामिल हो गए थे.
उनमें से लगभग 5 हज़ार 600 के स्वदेश लौट जाने की संभावना है.
मिसेल बाचेलेट ने कहा कि उन विदेशी लड़ाकों के परिवारजनों को बंदी बनाकर रखा गया है, हालाँकि उन पर मुक़दमा नहीं चलाया जा रहा है.
इनमें से बहुत से परिवारजनों का उनके पूर्व समुदायों ने बहिष्कार कर दिया है जिस वजह से उनके साथ बदले की कार्रवाई भी होने की आशंका है.
बच्चों की शिक्षा व सम्मान छिना
इन लड़ाकों के मूल देशों ने ये चिंता जताई है कि अगर उन्हें वापिस दाख़िल होने दिया जाता है तो उनके ज़रिए आतंकवादी गतिविधियों का ख़तरा है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि उन देशों की इन चिंताओं को समझा जा सकता है मगर इन पूर्व लड़ाकों को अगर इस योजना के तहत उनकी मूल राष्ट्रीयता से वंचित किया जाता है कि वो कभी भी अपने मूल देशों में दाख़िल ना हो सकें, तो ये कभी भी एक स्वीकार्य विकल्प नहीं हो सकता.
ख़ासतौर से अगर बच्चों के साथ ऐसा किया जाए तो ये बहुत अन्यायपूर्ण और अमानवीय होगा क्योंकि बच्चे पहले ही ग़ैर-ज़िम्मेदार क्रूरता के हाथों बहुत तकलीफ़ें उठा चुके हैं.
उनका कहना था कि नागरिकता विहीन बच्चों को समुचित शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के अवसर नहीं मिलते और एक इंसान के रूप में उनसे सम्मान भी छिन जाता है.
अन्य देशों पर भी नज़र
लगभग तीन सप्ताह तक चलने वाले इस सत्र में मानवाधिकार परिषद ऐसी लगभग 100 रिपोर्टों का आकलन करेगी जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने तैयार किया और सौंपा है.
काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, म्याँमार और सूडान में भी मानवाधिकारों की स्थिति पर व्यापक चर्चा होगी.
साथ ही मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट अपनी हाल की वेनेज़ुएला यात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी शुक्रवार, 5 जुलाई को पेश करेंगी.
इनके अलावा अनेक देशों में मानवाधिकार से जुड़े अनेक मुद्दे भी इस सत्र में उठाए जाएंगे.
इनमें शामिल होंगे – कामकाज के स्थानों पर महिलाओं के अधिकारों के लिए अनुकूल माहौल, वृद्धावस्था, जलवायु परिवर्तन, किन्हीं लोगों पर निगरानी रखना और निगरानी के लिए प्राइवेट बाज़ार, मानसिक स्वास्थ्य व राजनैतिक, सिविल, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अन्य ज़रूरी विषय.