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भारत सहित कुछ देशों की स्थिति के बारे में मानवाधिकार कमेटी के निष्कर्ष

मानवाधिकार परिषद का एक दृश्य. (फ़ाइल)
UN Photo/Jean-Marc Ferré
मानवाधिकार परिषद का एक दृश्य. (फ़ाइल)

भारत सहित कुछ देशों की स्थिति के बारे में मानवाधिकार कमेटी के निष्कर्ष

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार कमेटी ने, अपने सत्र में सात देशों में मानवाधिकार स्थिति के बारे में अपने निष्कर्ष जारी किए हैं. इन देशों के नाम हैं – भारत, मालदीव, क्रोएशिया, हौंडूरास, माल्टा, सूरीनाम, और सीरिया अरब गणराज्य.

इन निष्कर्षों में इन देशों में अन्तरराष्ट्रीय सिविल और राजनैतिक अधिकार कवीनेंट के बारे में, इस समिति की मुख्य चिन्ताएँ और इसे लागू करने के लिए सिफ़ारिशें शामिल की गई हैं. साथ ही कुछ सकारात्मक पहलू भी शामिल किए गए हैं.

भारत

कमेटी ने देश में भेदभाव को दूर करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों की सराहना की है, मगर साथ ही अल्पसंख्यक समूहों के विरुद्ध भेदभाव और हिंसा के बारे में चिन्ता भी व्यक्त की है. इनमें  मुस्लिम, ईसाई और सिख जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक समूह, अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति और LGBTI लोग शामिल हैं.

कमेटी ने भारत सरकार से भेदभाव की रोकथाम करने वाले व्यापक क़ानून लागू करने, आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने, और  विविधता के लिए सम्मान को बढ़ावा देने के लिए, नौकरशाहों, पुलिस व क़ानून लागू करने वाली अन्य एजेंसियों, न्यायपालिका और सामुदायिक नेताओं को प्रशिक्षण दिए जाने का आहवान किया है.

कमेटी ने चिन्ता व्यक्त की है कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियमों और आतंकवाद-विरोधी क़ानून के कुछ प्रावधान, सिविल व राजनैतिक कवीनेंट के अनुरूप नहीं हैं.

समिति ने तथाकथित “अशान्त क्षेत्रों” में, कई दशकों से, आतंकवाद विरोधी क़ानून लागू किए जाने पर भी चिन्ता व्यक्त की है, जिनमें मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और असम प्रमुख हैं. समिति के अनुसार इसकी वजह से, बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिसमें अत्यधिक बल प्रयोग शामिल है और उसका परिणाम ग़ैरक़ानूनी मौतों, लम्बे समय तक लोगों को मनमानी हिरासत में रखे जाने, यौन हिंसा, जबरन विस्थापन और उत्पीड़न के रूप में हुआ है.

कमेटी ने भारत सरकार से इस अन्तरराष्ट्रीय सिविल व राजनैतिक अधिकार कवीनैंट के तहत उसकी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि तथाकथित अशान्त क्षेत्रों में आतंकवाद विरोधी क़ानून और अन्य सुरक्षा उपाय अस्थाई व आनुपातिक हों, केवल अनिवार्य स्थिति में ही लागू किए जाएँ, और उन्हें न्यायिक समीक्षा के दायरे में रखा जाए.

कमेटी ने, भारत सरकार से, अशान्त इलाक़ों में मानवाधिकार हनन के सम्बन्ध में सत्य स्थापित किए जाने और ज़िम्मेदारी स्वीकार किए जाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए, एक प्रणाली स्थापित करने का भी आग्रह किया है.

मालदीव

यूएन मानवाधिकार कमेटी ने इस्लाम से इतर किसी धर्म के लिए प्रार्थना स्थल बनाए जाने और प्रचार सामग्री रखने को निषिद्ध बनाने वाले मौजूदा धार्मिक एकता अधिनियम के बारे में ध्यान दिलाया है कि इन पाबन्दियों का, आप्रवासियं के अधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है.

कमेटी ने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए, मानवाधिकार पैरोकारों को निशाना बनाने के लिए, धार्मिक एकता अधिनियम का इस्तेमाल किए जाने पर भी चिन्ता व्यक्त की है.

समिति ने मालदीव से हर किसी व्यक्ति को अपनी पसन्द का धर्म अपनाने के अधिकार की गारंटी देने और अपने क़ानूनों में इस तरह से बदलाव करने के लिए कहा है जिससे ग़ैर-मुस्लिम, अपने धर्म का पालन कर सकें, जिसमें सार्वजनिक प्रार्थना स्थलों का प्रयोग भी शामिल है, चाहे मालदीव के नागरिक हों या विदेशी जन.

क्रोएशिया

कमेटी ने हेट स्पीच की मौजूदगी और युद्ध अपराधों से सम्बन्धित ऐतिहासिक बदलावों के बारे में चिन्ता व्यक्त की है, जो राजनेताओं और उच्च-स्तरीय अधिकारियों द्वारा किए जा रहे हैं. कमेटी ने इस बारे में भी चिन्ता व्यक्त की है कि आपराधिक हेट स्पीच और नफ़रत से प्रेरित हिंसा के अपराधों के लिए हल्के प्रावधानों के तहत मुक़दमा चलाया जाता है जिसके कारण, ज़िम्मेदार तत्वों को पर्याप्त दंड नहीं मिलता. कमेटी ने देश से हेट स्पीच पर क़ाबू पाने के प्रयासों को और अधिक मज़बूत किए जाने का आग्रह किया है.

हौंडूरास

कमेटी ने देश में अपराध और हत्याओं का मुक़ाबला करने के लिए चलाए जा रहे अनेक अभियानों का ज़िक्र किया है, मगर सात ही चिन्ता भी व्यक्त की है कि ये मामले देश में अब भी बहुत बड़ी संख्या में हो रहे हैं. समिति ने देश में निरन्तर जारी हिंसा, ग़ैर-क़ानूनी ढंग से हो रही मौतों, और लोगों को जबरन लापता कर दिए जाने के मामलों पर भी चिन्ता जताई है.

इन सात देशों के बारे में, कमेटी के निष्कर्ष, यहाँ देखे जा सकते हैं.