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इसराइल द्वारा ग़ाज़ावासियों की ‘अमानवीय’ हिरासत पर गम्भीर चिन्ताएँ

ख़ान यूनिस की ही तरह, ग़ाज़ा के अधिकतर इलाक़े, इसराइली गोलाबारी में बुरी तरह तबाह हो गए हैं.
© UNOCHA/Themba Linden
ख़ान यूनिस की ही तरह, ग़ाज़ा के अधिकतर इलाक़े, इसराइली गोलाबारी में बुरी तरह तबाह हो गए हैं.

इसराइल द्वारा ग़ाज़ावासियों की ‘अमानवीय’ हिरासत पर गम्भीर चिन्ताएँ

शान्ति और सुरक्षा

ग़ाज़ा में बीती रात भी इसराइली बमबारी जारी रहने की ख़बरें हैं. इस बीच संयुक्त राष्ट्र और उसके साझीदार संगठनों ने ग़ाज़ा में इसराइली अधिकारियों द्वारा तथाकथित सन्दिग्ध फ़लस्तीनी लड़ाकों को अमानवीय तरीक़े से हिरासत में रखे जाने पर गम्भीर चिन्ताएँ व्यक्त की हैं.

एजेंसियों का कहना है कि इनमें से कुछ फ़लस्तीनी बन्दियों के साथ इतना ख़राब बर्ताव किया गया है कि उन्हें लम्बे समय तक हथकड़ियों और बेड़ियों में रखे जाने के कारण, उनके अंग काटने पड़े हैं.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की, ग़ाज़ा की स्थिति पर मई 2024 की रिपोर्ट में चिकित्सा कर्मियों और अन्य गवाहों के बयान शामिल किए गए हैं जिनमें बताया गया है कि घायल बन्दियों को एक मैदानी अस्पताल पर, हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर, उनके बिस्तरों से दिनरात बांधकर रखा गया.

बन्धकों के बारे में डर

रिपोर्ट के लेखकों ने, इसके साथ ये भी बताया है कि हमास द्वारा 7 अक्टूबर को, हमास के नेतृत्व में इसराइल में किए गए आतंकी हमले में बन्धक बनाए गए 253 लोगों में से, 19 मई तक, 128 लोग अब भी ग़ाज़ा में हिरासत में हैं.

रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि इस तरह लोगों को बन्धक बनाया जाना” जिनीवा कन्वेंशन का उल्लंघन है और एक युद्ध अपराध है”.

35 से अधिक बन्धकों को मृत घोषित कर दिया गया है और जीवित बचे बन्धक भी बहुत ख़राब परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. रिहा किए गए बन्धकों की गवाहियों से मालूम होता है कि हिरासत में बन्धकों के साथ यौन दुर्व्यवहार भी किए जाने की ख़बरें हैं.

रेगिस्तानी शिविर

रिपोर्ट में बताया गया है कि फ़लस्तीनी बन्दियों को नली के ज़रिए भोजन दिया जा रहा है. वैश्विक संरक्षण क्लस्टर के अनुसार, इनमें बहुत से ऐसे मामले भी हुए जिनमें बन्दियों को लम्बे समय तक हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर रखे जाने के कारण, उनके अंग काटने पड़े.

इस क्लस्टर में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ और कुछ अन्य अन्तरराष्ट्रीय व ग़ैर-सरकारी संगठन शामिल हैं.

रिपोर्ट में फ़लस्तीनी बन्दियों के साथ कथित दुर्व्यवहार के बारे में इससे पहले यूएन मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषक्षों द्वारा व्यक्त की गई चिन्ताओं को भी रेखांकित किया गया है. इसराइली सेना ने इससे पहले इस तरह के आरोपों का खंडन किया था.

ऐसी सम्भावना है कि ग़ाज़ा के कम से कम 27 फ़लस्तीनी बन्धकों ने, इसराइल के नीगेव रेगिस्तान में स्थित एक इसराइली सैन्य अड्डे स्दे तीमन में, हिरासत के दौरान दम तोड़ दिया है. 

इनके अलावा ग़ाज़ा के कम से कम चार फ़लस्तीनी बन्धकों की, इसराइली जेलों में मौत हो गई क्योंकि उन्हें या तो बुरी तरह मारा-पीटा गया या उन्हें चिकित्सा सहायता नहीं मुहैया कराई गई.

आँखों पर पट्टी और हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ

रिपोर्ट में कहा गया है कि बन्दियों को चाहे इसराइली जेलों में रखा गया या सेन्य ठिकानों पर, उन्हें हिरासत के दौरान अत्यन्त बुरी परिस्थितियों में रखा गया है, जिनमें बहुत छोटे स्थानों पर बहुत अधिक बन्दी रखे जाने के साथ-साथ, कुछ बन्दियों को तो पिंजरे जैसे हालात में रखा गया. 

इस दौरान उनकी आँखों पर लगातार पट्टियाँ बांधकर रखी गईं और उन्हें हथकड़ियों व बेड़ियों में जकड़कर रखा गया. उन्हें शौचालय नहीं जाने दिया गया, बुनियादी चीज़ों से भी वंचित रखा गया और खाना-पानी भी केवल न्यूनतम मात्रा में दिया गया, जो केवल जीवित रहने के लिए पर्याप्त हो.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसराइली सेना द्वारा बड़े पैमाने पर बनाए गए बन्धकों में महिलाएँ और बच्चे भी हैं, यहाँ तक कि कुछ परिवारों को, अपने प्रियजन के पते-ठिकाने और उनकी ख़ैरियत के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

इसराइल इनमें से बहुत से बन्धकों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने में नाकाम रहा है. 14 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों को आमतौर पर वयस्कों के साथ बन्दी बनाकर रखा गया है. उनसे छोटी उम्र के बच्चों को महिलाओं और वृद्ध परिवार जन के साथ बन्दी बनाकर रखा गया है, आमतौर पर छोटे समय के लिए. 

सामूहिक गिरफ़्तारियाँ

रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है कि इसराइली सेना ने हाल में दावा किया था कि उसने ग़ाज़ा में ज़मीनी अभियान के दौरान 2,300 फ़लस्तीनियों को हिरासत में लिया था, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होने की सम्भावना है.

अप्रैल के अन्त तक, क़रीब 865 फ़लस्तीनी लोगों को, “अवैध लड़ाकों” के रूप में बन्दी बनाकर रखा गया था. इस श्रेणी को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में पहचान नहीं दी गई है.

अन्य अनगिनत गवाहियों से संकेत मिलता है कि बन्दियों को जबरन निर्वस्त्र रखा गया, उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया, बलात्कार की धमकियाँ दी गईं, और गम्भीर मार-पिटाई के ज़रिए उन्हें प्रताड़ित किया गया, कुत्तों से हमले कराए गए, निर्वस्त्र तलाशी ली गई, उनके साथ वॉटरबोर्डिंग की गई जिसमें चेहरे को कपड़े से ढककर ऊँचाई से पानी डाला जाता है और इसमें पीड़ित की साँस अटकने का डर होता है. साथ ही बन्दियों को भोजन, नींद, शौचालय पहुँच से दूर रखा गया और अन्य तरह के क्रूर तरीक़े अपनाए गए हैं.

रिहा किए गए बन्दियों और उन बन्दियों तक पहुँच वाले चिकित्सा कर्मियों की गवाहियों के अनुसार इस क्रूर बर्ताव का उद्देश्य, फ़लस्तीनी सशस्त्र समूहों के तथाकथित सदस्य होने के बारे में, जबरन इक़बालिया बयान यानि स्वीकारोक्ति हासिल करना है.