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ब्रिटेन-रवांडा शरण क़ानून: हानिकारक प्रभाव और नतीजों की चेतावनी

ब्रिटेन का नया विधेयक क़ानून बना तो, देश में शरण मांगने वाले लोगों को रवांडा भेजा जाएगा, जहाँ से कुछ शरणार्थी तो शायद कभी भी वापिस ब्रिटेन नहीं आ सकेंगे.
© UNICEF/Giovanni Diffidenti
ब्रिटेन का नया विधेयक क़ानून बना तो, देश में शरण मांगने वाले लोगों को रवांडा भेजा जाएगा, जहाँ से कुछ शरणार्थी तो शायद कभी भी वापिस ब्रिटेन नहीं आ सकेंगे.

ब्रिटेन-रवांडा शरण क़ानून: हानिकारक प्रभाव और नतीजों की चेतावनी

मानवाधिकार

ब्रिटेन की संसद में रवांडा की सुरक्षा-यूके नामक विधेयक, मंगलवार को पारित होने के बाद, संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ पदाधिकारियों ने, वैश्विक स्तर पर साझेदारी की ज़िम्मेदारी, मानवाधिकारों और शरणार्थियों के संरक्षण पर, इस विधेयक के हानिकारक प्रभावों व नतीजों के बारे में फिर आगाह किया है.

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी मामलों के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी और यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने, ब्रिटेन सरकार से, शरण चाहने वाले लोगों को रवांडा भेजने की इस योजना पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है. 

इन दोनों वरिष्ठ पदाधिकारियों ने साथ ही, देश में पनाह मांगने वालों और आप्रवासियों के अनियमित आगमन का समाधान निकालने के लिए व्यावहारिक उपाय करने का भी आग्रह किया है, जो अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के लिए सम्मान पर आधारित हो.

ब्रिटेन के उच्चतम न्यायालय ने नवम्बर 2023 में ब्रिटेन में पनाह मांगने वाले लोगों को, रवांडा भेजने से, अन्तरराष्ट्रीय और ब्रितानी क़ानून का उल्लंघन होगा.

न्यायालय ने रवांडा में शरणार्थियों के व्यक्तिगत आवेदनों को निर्धारित करने के लिए समुचित व्यवस्था में कमज़ोरी को भी रेखांकित किया था.

न्यायालय के उस निर्णय के बाद परिवर्तित विधेयक, ब्रितानी संसद में पेश किया गया था, जिसे मंगलवार को उच्च सदन में भी पारित कर दिया गया. मगर ये विधेयक और रवांडा के साथ सन्धि, उन संरक्षण ख़ामियों को दूर करने पर कोई ध्यान नहीं देते हैं, जिन्हें उच्चतम न्यायालय ने चिन्हित किया है.

बल्कि इसके उलट, यह विधेयक जब ब्रिटेन के सम्राट की स्वीकृति के बाद क़ानून बन जाएगा तो यह, ब्रिटेन के न्यायालयों को, शरणार्थियों को देश से बाहर भेजने के निर्णयों की समीक्षा करने के मामले में बहुत सीमित कर देगा.

ऐसा होने पर, शरणार्थियों के लिए उच्च दर्जे का जोखिम पेश होने की स्थिति में भी, उनके पास अपील करने के बहुत सीमित विकल्प होंगे.

यूक्रेन में हिंसा से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव हुआ है.
© UNICEF/Alex Nicodim

ज़रूरतमन्दों की मदद करने की परम्परा

यूएन शरणार्थी मामलों के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने इस विधेयक के संसद में पारित होने पर कहा है, “ये नया क़ानून, ज़रूरतमन्द लोगों को पनाह मुहैया कराने की, ब्रिटेन की लम्बे समय से चली आ रही परम्परा से एक और क़दम की दूरी पर है, जोकि शरणार्थी सन्धि का उल्लंघन है.”

उन्होंने कहा, “शरणार्थियों को संरक्षण मुहैया कराने के लिए सभी देशों को अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की आवश्यकता है.”

“यह क़ानूनी प्रबन्धन, शरणार्थी संरक्षण के मामले में ज़िम्मेदारी टालने का प्रावधान करता है, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को कमज़ोर करता है और एक वैश्विक चलन का चिन्ताजनक रुझान शुरू करता है.”

फ़िलिपो ग्रैंडी ने कहा कि ब्रिटेन का, एक असरदार, स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा का गौरवशाली इतिहास रहा है. देश अब भी सही क़दम उठा सकता है और उन कारकों को हल करने के लिए क़दम उठा सकता है जिनके कारण, लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए विवश होना पड़ता है.

संयुक्त राष्ट्र के इन दोनों वरिष्ठ पदाधिकारियों ने, शरणार्थियों और प्रवासियों की अनियमित यात्राओं से सम्बन्धित चुनौतियों के बावजूद, इस पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है कि ब्रिटेन का यह नया विधेयक, लोगों के व्यक्तिगत हालात और संरक्षण जोखिमों पर सीमित ध्यान देगा.

ब्रिटेन के नए क़ानून के अनुसार, देश में शरण मांगने वाले लोगों को, उनकी अर्ज़ियों पर विचार किए जाने के दौरान रवांडा को भेजे जाने की व्यवस्था है.
© Unsplash/Sebastian Grochowicz

ख़तरनाक चलन

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा है कि यह विधेयक, शरणार्थियों के लिए ज़िम्मेदारी को टालकर, ब्रिटेन के न्यायालयों समीक्षा अधिकार को सीमित करके, ब्रिटेन में क़ानूनी सहायता प्राप्ति को सीमित करके और देश के भीतर और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षणों को सीमित करके, ब्रिटेन में क़ानून के शासन को गम्भीर रूप से सीमित करता है, और एक ख़तरनाक वैश्विक चलन शुरू करता है.

अगर यह विधेयक, ब्रिटेन के सम्राट की मंज़ूरी के बाद क़ानून बन जाता है तो यह शरणार्थियों, उनके परिवारों और बच्चों को, अपने शरण दावों की समीक्षा किए जाने की अवधि के लिए, आनन-फ़ानन में रवांडा भेजे जाने का रास्ता साफ़ कर देगा. ये शरणार्थी जन, शायद कभी भी ब्रिटेन वापिस नहीं लौट पाएंगे.

इस क़ानून के लागू होने पर, शरणार्थियों को रवांडा भेजे जाने के सरकारी निर्णयों के ख़िलाफ़, ब्रिटेन के न्यायालयों में अपील करने के विकल्पों को गम्भीर रूप से सीमित करेगा. 

यह क़ानून लागू होने पर, सरकारी निर्णय कर्ताओं और न्यायालयों को रवांडा को, शरणार्थियों को वहाँ भेजे जाने के मामले में, निर्णायक रूप में सुरक्षित मानना होगा, जब तक कि इसके विपरीत सबूत नहीं पेश कर दिए जाते हैं.