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म्याँमार में, यूएन की सेवाएँ जारी रखने की प्रतिबद्धता

म्याँमार में जारी संकट से, लाखों लोग देश के भीतर और बाहर विस्थापित हुए हैं.
© UNOCHA/Siegfried Modola
म्याँमार में जारी संकट से, लाखों लोग देश के भीतर और बाहर विस्थापित हुए हैं.

म्याँमार में, यूएन की सेवाएँ जारी रखने की प्रतिबद्धता

शान्ति और सुरक्षा

म्याँमार में सेना द्वारा फ़रवरी 2021 में सत्ता पर क़ब्जा किए जाने के बाद भड़का तनाव और संकट, पूरे देश में लोगों को बहुत गहराई से प्रभावित कर रहा है और यह संकट क्षेत्र में भी फैल जाने का जोखिम है. संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने, गुरूवार को सुरक्षा परिषद में यह बात कही है. 

संयुक्त राष्ट्र के राजनैतिक व शान्ति निर्माण मामलों के साथ-साथ शान्ति अभियानों के सहायक महासचिव ख़ालेद ख़ैरी ने सुरक्षा परिषद में कहा कि पूरे देश में लड़ाई के फैलाव ने समुदायों को बुनियादी चीज़ों और ज़रूरी सेवाओं तक पहुँच से वंचित कर दिया है. इस संकट का लोगों के मानवाधिकारों और बुनियादी आज़ादियों पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ा है.

यह पहला मौक़ा है जब म्याँमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख़्तापलट करके सत्ता पर क़ब्ज़ा किए जाने के बाद, देश की स्थिति पर, सुरक्षा परिषद की पहली मुक्त बैठक हुई है. अलबत्ता सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने दिसम्बर 2022 में, म्याँमार संकट पर एक प्रस्ताव पारित किया था.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, म्याँमार के राष्ट्रपति विन माइन्त और स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची की रिहाई की बार-बार पुकार लगाई है. ग़ौरतलब है कि इन दोनों हस्तियों और अन्य लोगों को फ़रवरी 2021 से ही हिरासत में रखा गया है.

रोहिंज्या समुदाय के लिए चिन्ता

सहायक महासचिव ख़ालिद ख़ैरी ने कहा कि म्याँमार के सशस्त्र बलों द्वारा अन्धाधुन्ध हवाई बमबारी और विभिन्न पक्षों द्वारा गोलाबारी किए जाने की ख़बरों के बीच, हताहत होने वाले आम लोगों की संख्या बढ़ रही है.

ख़ालेद ख़ैरी ने राख़ीन प्रान्त की स्थिति के बारे में भी जानकारी मुहैया कराई, जोकि बौद्ध देश म्याँमार में सबसे निर्धन क्षेत्र है और इसी प्रान्त में अधिकतर रोहिंज्या आबादी रहती है. इनमें अधिकतर लोग मुसलमान हैं और उन्हें म्याँमार की नागरिकता हासिल नहीं है.

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2017 में रोहिंज्या लोगों पर सरकारी बलों द्वारा व्यापक दमन के बाद, दस लाख से अधिक रोहिंज्या लोग, पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण लेने के लिए पहुँचे थे.

ख़ालेद ख़ैरी ने कहा कि राख़ीन प्रान्त में, म्याँमार की सेना और एक पृथकतावादी गुट अराकान आर्मी के बीच लड़ाई, हिंसा के एक नए स्तर पर पहुँच गई है जिसने, पहले से ही मौजूद नाज़ुक परिस्थितियों को और भी जटिल बना दिया है.

मूल समस्याओं को हल करें

सहायक महासचिव ख़ालिद ख़ैरी ने कहा, “मौजूदा संकट से बाहर निकलने का एक टिकाऊ रास्ता बनाने के लिए, रोहिंज्या संकट की जड़ में बैठे कारणों को हल करना अनिवार्य होगा. ऐसा करने में नाकामी और दंडमुक्ति का माहौल जारी रहने से, म्याँमार में हिंसा के कुचक्र को केवल ईंधन मिलेगा.”

उन्होंने रोहिंज्या शरणार्थियों की बढ़ती संख्या की तरफ़ ध्यान दिलाया, जो अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी में ख़तरनाक नौका यात्राओं पर निकलकर, या तो आपनी जान जोखिम डाल रहे हैं या लापता हो रहे हैं. 

ख़ालेद ख़ैरी ने कहा कि मौजूदा संकट के समाधान में ऐसे हालात बहाल किया जाना ज़रूरी है जिनमें म्याँमार के लोगों को अपना मानवाधिकारों का प्रयोग, मुक्त रूप में और शान्तिपूर्ण तरीक़े से करने का मौक़ा मिले. साथ ही सेना द्वारा की जा रही हिंसा को बन्द किया जाना और राजनैतिक दमन को भी रोका जाना एक महत्वपूर्ण क़दम होगा.

संयुक्त राष्ट्र की सेवा

सहायक महासचिव ख़ालेद ख़ैरी ने, म्याँमार के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, देश में मौजूद रहकर लोगों की मदद करते रहने के लिए, संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता दोहराई.

उन्होंने और अधिक अन्तरराष्ट्रीय एकता व समर्थन की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय संगठन – ASEAN व अन्य क्षेत्रीय हितधारकों के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा.

संयुक्त राष्ट्र के आपदा राहत समन्वय कार्यालय – OCHA की एक वरिष्ठ पदाधिकारी लिज़ डाउटेन ने सुरक्षा परिषद को बताया कि म्याँमार में लगभग 28 लाख लोग अब विस्थापित हैं, जिनमें 90 प्रतिशत लोग, सैना द्वारा तख़्तापलट के बाद विस्थापित हुए हैं.

उन्होंने कहा कि लोग, हर दिन अपने जीवन के लिए जोखिम के साए में जी रहे हैं, और दैनिक जीवन के लिए ज़रूरी चीज़ें और सेवाओं तक पहुँच, बहुत निम्न स्तर पर पहुँच गई है. 

लाखों लोग हैं भोजन से वंचित

म्याँमार में लगभग एक करोड़ 29 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जोकि देश की लगभग एक चौथाई आबादी है. बुनियादी दवाएँ ख़त्म हो रही हैं और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है.

शिक्षा संचालन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. स्कूल जाने की उम्र वाले लगभग एक तिहाई बच्चे, कक्षाओं से बाहर हैं.

यह संकट महिलाओं और लड़कियों को अधिक प्रभावित कर रहा है और इनमें से लगभग 97 लाख महिलाओं व लड़कियों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है.