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भारत: उत्थान की बदौलत, बच्चों के बेहतर भविष्य की राह

सुवर्णा (बाएँ) का कहना है कि हालाँकि वह एक सफ़ाई साथी के रूप में अपने काम से ख़ुश है, लेकिन नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे भी यही काम करें.
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सुवर्णा (बाएँ) का कहना है कि हालाँकि वह एक सफ़ाई साथी के रूप में अपने काम से ख़ुश है, लेकिन नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे भी यही काम करें.

भारत: उत्थान की बदौलत, बच्चों के बेहतर भविष्य की राह

महिलाएँ

भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यूएनडीपी की 'उत्थान’ परियोजना, एक शहरी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है, जिसे कोविड के दौरान सफ़ाई साथियों के लिए आरम्भ किया गया था. इस साधारण सी परियोजना ने सुवर्णा रवि मगरे की ज़िन्दगी ही बदल दी.

तीन बच्चों की माँ, सुवर्णा, 20 सालों से सफ़ाई साथी के रूप में काम कर रही हैं. 

38 वर्षीय सुवर्णा रवि मगरे को एक सफ़ाई साथी से, उत्थान परियोजना के बारे में पता चला, “मैं बैंक खाता खोलने के लिए सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं में नामांकन करना चाहती थी. मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन मुझे लगता था कि सही तरीक़े से बचत करने पर मुझे कठिन समय में मदद मिलेगी.”

उन्होंने बताया, "मैं शिक्षित नहीं थी, न ही मैं किसी कौशल या प्रशिक्षण में निपुण थी. परिवार की वित्तीय समस्याओं के कारण, सफ़ाई साथी के रूप में काम करने वाली मेरी सास ने मुझे भी इस काम के गुर सिखाए."

सुवर्णा अपने दिन की शुरुआत में, विभिन्न अपशिष्ट संग्रहण स्थलों पर जाती हैं, और कूड़ा इकट्ठा करने के बाद, अन्य सफ़ाई साथियों के सथ मिलकर, सूखा और गीला कूड़ा अलग-अलग करते हैं. लेकिन उनका कहना है कि महामारी के बाद, हालात पहले जैसे नहीं रहे हैं.

वर्षों से, घरों के कूड़े के ख़राब प्रबन्धन तरीक़ों में सुधार हुआ, और नगर निगमों द्वारा व्यवहार परिवर्तन अभियानों के कारण जागरूकता बढ़ी. 

वह ख़ुद को काफ़ी मुश्किल स्थिति में पाती हैं, और उन्होंने परिवार के भरण-पोषण के लिए सफ़ाई का अतिरिक्त काम भी शुरू किया है. 

सुवर्णा के दिन की शुरुआत, विभिन्न कचरा स्थलों पर कचरा संग्रहण से होती है.
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“मेरे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं. साथ ही मेरे पति का काम भी अस्थाई है, इसलिए मैं अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अतिरिक्त काम कर रही हूँ.”

वह बैंक में खाता खोलने के लिए, उत्थान कार्यकर्ता रेखा के साथ बैंक पहुँचीं, “मैं कुछ पैसे बचाना शुरू करना चाहती हूँ, क्योंकि जो काम हम करते हैं, वो हमेश तो नहीं चल पाएगा. इसलिए मैं पेंशन योजना के लिए आवेदन करना चाहती हूँ, जिससे बुढ़ापे में आरामदायक जीवन जी सकूँ.”

सुवर्णा के पास ई-श्रम और स्वास्थ्य कार्ड हैं और वो ख़ुद को भाग्यशाली मानती हैं. "मैं ख़ुश हूँ कि मेरे पास इन सामाजिक योजनाओं में आवेदन के लिए ज्ञान और सहायता है.”

“मैं किसी दुर्घटना की स्थिति में, कुछ हद तक तो आर्थिक रूप से सुरक्षित रहूंगी. हम जो काम करते हैं, उसमें चोटें लगना आम हैं, इसलिए स्वास्थ्य कार्ड, ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ होने पर हमारे काम आएगा.”

हालाँकि वह अपने काम को लेकर बहुत उत्साहित रहती हैं, लेकिन यह नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे भी यही काम करें. “मैं अशिक्षित थी और मेरे पास अवसर कम थे. मैंने बहुत मेहनत से काम करके, अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने की कोशिश की है.“

“मैं नहीं चाहती कि वो भी मेरी तरह संघर्ष करें. मैं चाहती हूँ कि वो शिक्षा पाकर सम्मानजनक रोज़गार लें.”