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भारत: मणिपुर में 'मानवाधिकार हनन मामलों' पर, यूएन विशेषज्ञों ने जताई चिन्ता

मणिपुर के दूर-दराज़ इलाक़ों में स्वास्थ्य सुविधाएँ लोगों के घर तक ले जाने की मुहिम चलाई जा रही है. (फ़ाइल फ़ोटो)
WHO India/Sanchita Sharma
मणिपुर के दूर-दराज़ इलाक़ों में स्वास्थ्य सुविधाएँ लोगों के घर तक ले जाने की मुहिम चलाई जा रही है. (फ़ाइल फ़ोटो)

भारत: मणिपुर में 'मानवाधिकार हनन मामलों' पर, यूएन विशेषज्ञों ने जताई चिन्ता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य, मणिपुर में यौन हिंसा, न्यायेतर हत्यों, जबरन विस्थापन, यातना और बुरे बर्ताव समेत मानवाधिकार उल्लंघन व दुर्व्यवहार के गम्भीर मामलों की ख़बरों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि सामुदायिक टकराव से उपजे हालात से निपटने के लिए सरकार द्वारा पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई.

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने सोमवार को भारत के मणिपुर राज्य में स्थिति पर अपना एक वक्तव्य जारी किया है. 

यूएन विशेषज्ञों के अनुसार, मई 2023 में मैतई हिन्दू और कुकी ईसाई, इन जातीय समुदायों के बीच सामुदायिक टकराव का नया दौर शुरू होने से गम्भीर स्थिति उपजी.

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इस वर्ष अगस्त महीने के मध्य तक, कम से कम 160 लोगों के मारे जाने की ख़बरें हैं, जिनमें से अधिकाँश कुकी जातीय समुदाय से हैं, और 300 से अधिक घायल हुए हैं.

विशेषज्ञों ने कहा कि कथित हिंसा में सामूहिक बलात्कार की घटनाएँ हुईं, महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़कों पर परेड कराई गई, गम्भीर पिटाई की वजह से मौतें हुईं, और उन्हें जीवित या मौत के बाद जला दिया गया. 

“हम सभी आयु वर्ग की सैकड़ों महिलाओं व लड़कियों और मुख्यत: कुकी जातीय अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली लिंग-आधारित हिंसा की रिपोर्टों और तस्वीरों से व्यथित हैं.”

साथ ही, न्यायेतर हत्याओं, घरों को ध्वस्त किए जाने, लोगों को जबरन विस्थापन के लिए मजबूर किए जाने, उन्हें यातना देने व उनके साथ बुरा बर्ताव किए जाने की भी रिपोर्टें हैं. 

यूएन विशेषज्ञों ने बताया कि हिंसक टकराव के कारण इन समुदायों से हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं, हज़ारों घरों व सैकड़ों चर्चों को जला दिया गया है, कृषि भूमि बर्बाद हो गई है, फ़सलों व आजीविका को नुक़सान पहुँचा है. 

‘अपर्याप्त कार्रवाई’

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि इन घटनाओं से उपजे हालात में, सरकार द्वारा मानवीय सहायता के लिए पर्याप्त स्तर पर क़दम नहीं उठाए गए.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने कहा कि यह विशेष रूप से चिन्ताजनक है कि हिंसा से पहले ऑफ़लाइन और ऑनलाइन माध्यमों पर नफ़रत भरे और भड़काऊ भाषण फैले, जिसमें कुकी जातीय अल्पसंख्यकों, विशेषकर महिलाओं, की जातीय व धार्मिक आस्था के कारण उनके विरुद्ध अंजाम दिए गए अत्चायारों को जायज़ ठहराया गया.

“हमें जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसक और दमनात्मक कृत्यों को जायज़ ठहराने के लिए आतंकवाद-रोधी उपायों का ग़लत इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्टों पर भी चिन्ता है.” 

यूएन विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मणिपुर में शारीरिक व यौन हिंसा और नफ़रत भरे भाषणों को रोकने और क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में भारत सरकार द्वारा सुस्ती के साथ, अपर्याप्त क़दम उठाए गए, जोकि गहरी चिन्ता का विषय है.

‘त्रासदीपूर्ण पड़ाव’

विशेषज्ञों ने कहा कि मणिपुर में हाल के समय में हुई घटनाएँ, भारत में धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यकों के लिए बद से बदतर होती जा रही स्थिति में एक और त्रासदीपूर्ण पड़ाव है.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने मणिपुर में वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के तथ्य-खोजी मिशन और राज्य में हालात पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ध्यान केन्द्रित किए जाने का स्वागत किया है, मगर यह स्पष्ट किया है कि इसे और पहले किया जा सकता था.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि सरकार और अन्य पक्षों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की निगरानी जारी रखी जानी होगी, जिसमें न्याय, जवाबदेही और मुआवज़े पर बल दिया गया है. 

“हम इन मामलों पर दस्तावेज़ी जानकारी जुटा रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के आपराधिकरण और उत्पीड़न की ख़बरों पर भी चिन्तित हैं.”

यूएन विशेषज्ञों ने सरकार से सभी प्रभावितों के लिए राहत प्रयासों में तेज़ी लाने, हिंसक कृत्यों की जाँच और दोषियों की जवाबदेही तय करने के लिए कार्रवाई का आग्रह किया है. इनमें वे सरकारी अधिकारी भी हैं, जिनकी नस्लीय व धार्मिक नफ़रत और हिंसा भड़काने में भूमिका होने की आशंका है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. 

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

इस वक्तव्य पर दस्तख़त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं.