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नेपाल में मानसून की बारिश के लिए तैयार पहाड़ी ढलानों पर बने खेत.

नेपाल: पर्वतीय ढलानों पर, मॉनसून सम्बन्धी जोखिमों से निपटने की तैयारी

UNEP/Artan Jama
नेपाल में मानसून की बारिश के लिए तैयार पहाड़ी ढलानों पर बने खेत.

नेपाल: पर्वतीय ढलानों पर, मॉनसून सम्बन्धी जोखिमों से निपटने की तैयारी

जलवायु और पर्यावरण

नेपाल में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) की एक परियोजना के तहत, पहाड़ी इलाक़ों के किसानों को पारम्परिक सीढ़ीदार खेती (terrace farming) करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिससे भूस्खलन के बढ़ते ख़तरे से निपटने में मदद मिल रही है, कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो रही है और पर्वतीय इलाक़ों के जंगलों का विकास हो रहा है.

जून से सितम्बर तक चलने वाला मॉनसून का मौसम, नेपाल के लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया है. जलवायु संकट के कारण वार्षिक बारिश का असर बदतर होता जा रहा है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही है. 

ये ऐसी आपदाएँ हैं, जो चकरा देने वाली इन पहाड़ी ढलानों वाले देश में ख़ासतौर पर विनाशकारी साबित हो सकती हैं.

हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत चोटियों से लेकर काठमांडू की भीड़-भाड़ वाली सड़कों तक, नेपालियों के जीवन में विडम्बनाओं की कमी नहीं है; जिस जीवनदायी मॉनसून ने उनकी संस्कृति को आकार दिया है, वहीं आज उनके डर का कारण बन गया है.

नेपाल में घनमाया थामी (बीच में हाथ बाँधे हुए) जैसे किसान, जलवायु परिवर्तन का ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं.
UNEP/Artan Jama

पाँच बच्चों की माँ, धनमाया थामी, बारिश से उत्पन्न ख़तरों से अच्छी तरह परिचित हैं. 2020 के मॉनसून के दौरान, लापिलांग ज़िले में स्थित उनके गाँव में भूस्खलन हुआ, जिससे उनका घर और आजीविका का स्रोत कुछ ही क्षणों में मिट्टी में समा गए.

उन्होंने बताया कि, “जब भूस्खलन हुआ, तो हमें नहीं मालूम था कि मदद या सुरक्षा के लिए कहाँ जाना है, सभी लोग रो रहे थे, चीख़-पुकार कर रहे थे. सब कुछ ढह गया और हम बेघर हो गए. हमारे पास पहनने के लिए कुछ भी कपड़े नहीं थे. हम तो बच गए, लेकिन हमारी मुर्ग़ियाँ और बकरियाँ ख़त्म हो गईं.”

यह भूस्खलन नेपाल में हर साल होने वाले अनगिनत भूस्खलनों में से एक था. इन घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है क्योंकि जलवायु संकट के परिणाम - तापमान वृद्धि और वर्षा के उतार-चढ़ाव से, नेपाल के पहाड़ अस्थिर हो रहे हैं.

2020 के भूस्खलन के मद्देनजर, नेपाल के वन और पर्यावरण मंत्रालय ने पहाड़ियों को सीढ़ीदार सतहों  या कृषि छतों में बदलना शुरू कर दिया. सीढ़ीदार खेती यानि Terrace farming की यह प्रथा काफ़ी पुरानी है, जिसमें पहाड़ों की प्राकृतिक ढलान को तोड़कर, मेढ़ बनाकर समतल किया जाता है.

इससे भारी बारिश के दौरान पानी का बहाव धीमा करके, मिट्टी का कटान रोकने में मदद मिलती है. 

तीव्र ढलान वाले खेतों को समतल मेढ़ों में तब्दील करने से, नमी और पोषक तत्व बरक़रार रहते हैं, जिससे पानी नीचे की ओर बहने के बजाय, मिट्टी द्वारा सोख लिया जाता है, जिससे फ़सल की पैदावार बढ़ती है और शुष्क मौसम में सहनसक्षमता हासिल होती है.

वनों का संरक्षण

दोलखा क्षेत्र में, विशेष रूप से निर्मित तालाब में एकत्रित जल के कारण किसान, शुष्क मौसम में भी भोजन उगाने में सक्षम हो गए हैं.
UNEP/Marcus Nield

दोलखा (जहाँ लापिलांग गाँव स्थित है), अछहम, और सल्यान क्षेत्रों में यह परियोजना, वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा वित्त पोषित है और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा कार्यान्वित की जा रही है. लेकिन यह परियोजना केवल सीढ़ीदार मेढ़ों के निर्माण तक ही सामित नहीं है.

इसके तहत, स्थानीय समुदायों को अपने पहाड़ी खेतों के ऊपर मौजूद जंगलों की रक्षा करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है. पारिस्थितिक इंजीनियरिंग की एक बेहतरीन मिसाल के रूप में, पेड़ों की परस्पर जुड़ी हुई जड़ प्रणाली एक जाल की तरह काम करती है, जोकि भारी बारिश के दौरान मिट्टी को ढलान से नीचे ख़िसकने से रोकता है. 

ऊपरी इलाक़ों के जंगल भी काफ़ी मात्रा में पानी सोख़ लेते हैं, जिससे मिट्टी में पानी की मात्रा कम हो जाती है, वरना पानी से ज़मीन संतृप्त व भारी होने से भूस्खलन की सम्भावना बढ़ जाती है.

2019 में हुए एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया कि जंगलों की कटाई से भूस्खलनों की संख्या दोगुनी हो गई, और भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में दो से 13 गुना वृद्धि हुई. 

इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि वन संरक्षण की रणनीति बेहद महत्वपूर्ण है, ख़ासतौर पर इसलिए भी, क्योंकि विश्व स्तर पर हर पाँच सेकेंड में एक फ़ुटबॉल पिच के बराबर भूमि, मिट्टी के कटाव से नष्ट हो जाती है.

स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्रों में कार्बन उत्सर्जन अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता होती है. लेकिन जलवायु प्रभावों के विरुद्ध सामुदायिक सहनसक्षमता बढ़ाने के इस अतिरिक्त 'उपाय' – यानि पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन को अक्सर नज़रअन्दाज कर दिया जाता है.

परियोजना का असर

इस नर्सरी में, नेपाल की खिसकती पहाड़ियों को स्थिर करने के लिए यूनेप समर्थित परियोजना के लिए पौध तैयार की गई.
UNEP/Marcus Nield

नेपाल में यूनेप समर्थित परियोजना के ज़रिए, लगभग एक हज़ार 300 हैक्टेयर जंगल व प्रकृतिक चारागाह बहाल किए जा रहे हैं, जिसके ज़रिये  56 हज़ार से अधिक लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन के जोखिम में कमी लाने में सफलता मिली है.

नेपाल सरकार, देश में जलवायु अनुकूलन के लिए एक योजना विकसित करने हेतु, यूनेप के साथ साझेदारी कर रही है, जिसके तहत दोलखा से सीखे गए अहम सबक़ और स्थानीय पारम्परिक ज्ञान को एकीकृत किया जाएगा. 

विशेषज्ञों का कहना है कि इन राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं का उद्देश्य है, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने पर केवल जवाबी कार्रवाई करने से आगे बढ़कर, जलवायु अनुकूलन के लिए व्यापक और सक्रिय योजना बनाना.

यूनेप की जलवायु परिवर्तन अनुकूलन इकाई की प्रमुख, जैसिका ट्रोनी कहती हैं, '“हम केवल जलवायु संकट पर प्रतिक्रिया स्वरूप क़दम नहीं उठा रहे हैं; हम प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाली बहुआयामी, पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित रणनीति अपनाकर, इससे सक्रियता के साथ निपटने के क़दम उठा रहे हैं."

"नेपाल सरकार के साथ हमारी परियोजना से स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केवल उत्सर्जन घटाना काफ़ी नहीं है. इसका लक्ष्य, हमारे समाज को पहले से हो रहे बदलावों के प्रति अधिक सहनसक्षम बनाना और आने वाले बदलावों का अनुमान लगाना है. अब हमें जलवायु परिवर्तन के साथ रहने के लिए सदैव तैयार रहना होगा.''

अतिरिक्त आमदनी

 2020 के भूस्खलन से हुई क्षति का असर, नेपाल के लापिलांग ज़िले काे एक गाँव पर अभी तक देखा जा सकता है.
UNEP/Artan Jama

जंगलों की रक्षा के अलावा, किसानों को पहाड़ी ढलानों के सीढ़ीदार खेतों के किनार पेड़ और स्थानीय घास की प्रजातियाँ लगाकर, मिट्टी को एक साथ बांधने का प्रशिक्षण भी दिया गया. इस रणनीति से न केवल सुरक्षा बढ़ी, बल्कि उत्पादकता में भी वृद्धि हुई. खेतों की मेढ़ें और सन्तरे व आढ़ू जैसे फलों के पेड़ों से आमदनी का एक अतिरिक्त स्रोत भी पैदा हुआ.

धनमाया थामी ने बताया, "पहाड़ी खेतों की सीढ़ीदार मेढ़ों में सुधार और जैव-इंजीनियरिंग कार्यों ने, मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाए रखने और ऊपरी मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करके हमारी कृषि उत्पादकता में वृद्धि की है."

लापिलांग में थामी के घर से केवल एक घंटे की दूरी पर, परियोजना के तहत एक तालाब का निर्माण भी किया जा रहा है, जिसमें पहाड़ से नीचे बहता वर्षा जल इकट्ठा होगा. 

यह प्रणाली, झीलों और नदियों की प्राकृतिक जल निकासी पर आधारित है. अतिरिक्त पानी तालाब में एकत्रित होने से, बाढ़ की सम्भावना घटेगी और आसपास रहने वाले किसान इस पानी का उपयोग, शुष्क मौसम में फ़सल उगाने के लिए कर सकते हैं.

यह उस व्यापक प्रणाली का हिस्सा है, जिसमें पहाड़ी समुदायों की सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए, ऊपरी जंगल और सीढ़ीदार खेत शामिल हैं. 

जैसिका ट्रोनी कहती हैं, "पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें पर्यावरण और उसके भीतर लोगों के लिए, एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाता है."

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ था.