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भारत: झारखंड में, महिला वन संरक्षकों का साहस, जंगल माफ़िया से टक्कर

जमुना टुडु, महिलाओं की सेना बनाकर, जंगल माफ़िया से लोहा ले रही हैं.
UNDP India
जमुना टुडु, महिलाओं की सेना बनाकर, जंगल माफ़िया से लोहा ले रही हैं.

भारत: झारखंड में, महिला वन संरक्षकों का साहस, जंगल माफ़िया से टक्कर

जलवायु और पर्यावरण

भारत के झारखंड प्रदेश में कुछ महिलाएँ अपनी एकजुटता के बूते पर, जंगल माफ़िया को टक्कर दे रही है, और स्थानीय वनों के संरक्षण प्रयासों में लगी हैं. यूएनडीपी की ‘इंस्पायरिंग इंडिया’ पत्रिका में उनकी आपबीती को एक प्रेरणा के स्रोत के रूप में पेश किया गया है.

जमुना टुडू झारखंड में, पिछले 25 सालों से जंगल माफ़िया से लोहा ले रही हैं. 42 वर्षीय जमुना ने 10 हज़ार महिलाओं की एक सेना बनाई है, जो बाँस की छड़ें, भाले और धनुष-बाण रखते हैं, और जंगलों में गश्त करती हैं. स्थानीय लोग, प्यार से उन्हें ‘लेडी टार्ज़न’ बुलाते हैं.

2019 में, भारत सरकार ने उन्हें अभूतपूर्व कार्यों के लिए, देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया.

“बचपन में हम अपने पिता के खेत में मदद करने के लिए जाते थे. पौधों को बढ़ते हुए देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता था और जानवरों के साथ खेलना पसन्द था. प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग थी.”

उनका कहना है कि वो जब विवाह के बाद ओडिशा से 100 किलोमीटर दूर झारखंड के मुतुरखम आईं, तो बड़े पैमाने पर वनों की कटाई देखकर हैरान रह गईं. शादी के अगले दिन उनके ससुराल वाले उन्हें घर के पीछे का जंगल दिखाने ले गए.

उन्होंने ख़ुद को पेड़ों के ठूंठों से घिरा हुआ पाया. तभी उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस बारे में वो कुछ करके रहेंगी.

फिर जमना टुडू और चार अन्य महिलाओं ने, अवैध रूप से साल व सागौन के पेड़ों की कटाई करने वाले लकड़ी माफ़िया का सामना करने की ठान ली.

आरम्भिक झिझक

वो बताती हैं, “अनेक ग्रामीणों ने मेरी चिन्ता को लेकर हामी भरी, लेकिन बहुत कम लोग ही हमारा समर्थन करने के लिए आगे आए. या तो माफ़िया, या महिलाओं पर लगे सामाजिक बन्धनों के डर से.”

फिर पाँचों महिलाओं ने मिलकर 1998 में वन सुरक्षा समिति (फॉरेस्ट प्रोटेक्शन काउंसिल) बनाई.

वे निगरानी रखने के लिए जंगल में जाकर, जंगल माफ़िया को खुली चुनौती देने लगे. जवाब में माफ़िया ने शारीरिक हिंसा और मौत की धमकियों का सहारा लिया, लेकिन माफ़िया, महिलाओं के जज़्बे को रोक नहीं पाए.

जमुना टुडु, गाँव के लोगों को वृक्षारोपण के लिए भी प्रेरित करती हैं.
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जमुना टुडू कहती हैं, "धीरे-धीरे समुदाय के अन्य सदस्य भी आगे आने लगे." तब से आज तक, उन्होंने ऐसी 400 से अधिक वन सुरक्षा परिषदों के गठन व उन्हें पुख़्ता करने में मदद की है.

ये महिलाएँ, गश्त लगाने के अलावा, क्षरण हुए वन क्षेत्रों को बहाल करने के लिए, रात में भी वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं. परिषदें, महिलाओं को दमनकारी सामाजिक रूढ़िवादिता से मुक्त कराने का भी एक साधन बन गई हैं.

जमुना टुडू का मानना ​​है, "अगर महिलाएँ जाग उठेंगी तो पूरा गाँव जागरूक हो जाएगा."

वो महिलाओं को, मुतुरखम में लड़की पैदा होने पर 18 और महिलाओं की शादी होने पर 10 पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करती हैं.

अपने पिता से सीखा प्रकृति प्रेम और सम्मान ही वो भाव है, जो उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.

वह कहती हैं, “आज भी मैं जंगल जाने का समय निकाल लेती हूँ… मेरा मानना ​​है कि चूँकि प्रकृति से हम सभी को किसी न किसी रूप में लाभ होता है, इसलिए हम सबकी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम अपनी क्षमतानुसार कार्रवाई करें."