हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में, जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबन्धन में ठोस सहयोग पर लक्षित नई पहल

दक्षिण एशिया के पाँच देशों - भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल - में स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालयों के शीर्ष अधिकारी, हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रतिक्रिया, आपात हालात के लिये तैयारी और आर्थिक व सामाजिक विकास पर क्षेत्रीय सहयोग मज़बूत करने के लिये, एकजुट होकर कार्रवाई कर रहे हैं.
#UNRCs from Bangladesh, Bhutan, India, Nepal & Pakistan have built a transboundary partnership to address environmental crises - climate change, biodiversity loss, glacial melting - & resulting loss of livelihood & well-being in Hindu Kush Himalayas. 👇🏽
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UNinIndia
11 दिसम्बर 2022 को अन्तरराष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर, संयुक्त राष्ट्र विकास प्रणाली में देशीय स्तर पर शीर्ष प्रतिनिधि- बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, सीमा-पार साझेदारी के तहत, संयुक्त गतिविधियों की एक श्रृंखला पर काम करने के लिये एकजुट हुए.
इस पहल का उद्देश्य है, वैश्विक तापमान वृद्धि से सम्बन्धित आम समस्याओं का मिलकर समाधान करना, जिसमें जैव विविधता की हानि, हिमनदों के पिघलने में तेज़ी, और जल की अनुमानित कमी शामिल है.
इस पहल से, हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र और इसकी पर्वत श्रृंखला में स्थित इन पाँचों देशों के अलावा, चीन, म्याँमार एवं अफ़ग़ानिस्तान में भी लोगों की आजीविका व कल्याण सकारात्मक रूप में प्रभावित होने की उम्मीद है.
इस क्षेत्र की आबादी 21 करोड़ है और इसे तीसरे ध्रुव के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें ध्रुवीय चोटी क्षेत्र से इतर, दुनिया में सबसे बड़े हिम आवरण, हिमनद के बाहर पर्माफ्रॉस्ट स्थित हैं.
वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य को पूरा कर लेने के बावजूद, नेपाल में स्थित एक अन्तर-सरकारी ज्ञान एवं शिक्षण केन्द्र, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) द्वारा किए गए एक आकलन के अनुसार, पहले से ही जलवायु परिवर्तन से गम्भीर रूप से प्रभावित हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र का तापमान, पूर्व-औद्योगिक स्तर के मुक़ाबले, वर्ष 2100 तक, पाँच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है.
एशिया-प्रशान्त के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास समन्वय कार्यालय के क्षेत्रीय निदेशक, डेविड मैकलाकलन-कार ने कहा, “यह पहल, संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों को समन्वित करेगी, क्योंकि यह जलवायु कार्रवाई, आपदा प्रतिक्रिया और आपातकालीन तैयारी से सम्बन्धित है. इसका उद्देश्य टिकाऊ विकास के दूसरे, 11वें और 13वें लक्ष्य की पैरोकारी करते हुए एसडीजी के लिये संयुक्त राष्ट्र की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में तेज़ी लाना है.”
“यह जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना कर रही दुनिया में, विभिन्न देशों के युवाओं को उन गतिविधियों में शामिल करना जारी रखेगा, जिसके तहत वो उस भविष्य के लिये पैरोकारी कर सकें, जैसा भविष्य वे चाहते हैं."
"इस तरह की पहल के ज़रिये, रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर्स, संयुक्त राष्ट्र की देशीय टीमों और अन्य विकास भागीदारों को आपस में जुड़े उन मुद्दों पर लगातार सहयोग मिलता रहेगा, जिनका सीमाओं के दोनों तरफ़ व्यापक प्रभाव पड़ता है.”
सीमाओं के परे तक जाने वाली इस साझेदारी में युवाओं की आवाज़ परिलक्षित करने के इरादे से, रैजिडेंट कोऑर्डिनेटर कार्यालयों ने, एक युवा पैनल बहस का आयोजन किया, जिसमें पाँच देशों के युवा प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन से क्षेत्र के युवाओं के जीवन पर पड़ने वाले असर पर चर्चा हुई.
पाकिस्तान की 19 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता, रिदा राशिद के अनुसार, क्षेत्रीय युवा पैनल चर्चा ने, राष्ट्रीय और सीमा पार के युवाओं के साथ जुड़ने व भविष्य की पहलों के लिये नैटवर्क बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया.
हाल ही में एक अन्य पैनल चर्चा में, पाँच रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर ने बताया कि किस तरह, ‘ट्रांस-बाउंड्री पार्टनरशिप’ के उद्देश्यों के अनुरूप, उनकी देशीय टीमें, अपने सम्बन्धित मेज़बान देशों को, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण व जैव विविधता की हानि के तिहरे संकट की चुनौती से निपटने में मदद कर रही हैं.
पाँचों देशों की टीमें, जलवायु परिवर्तन से लेकर आपदा जोखिम में कमी के जोखिमों का मुक़ाबला करने के लिये सहनक्षमता बनाने से लेकर, अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को ठोस कार्रवाई में बदलने के लिये प्रयासरत हैं.
भूटान में संयुक्त राष्ट्र की रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, कार्ला रॉबिन हर्शी ने ज़ोर देकर कहा कि यह समझना होगा कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती और अनुकूलन के उपाय, समावेशी एवं सीमाओं से परे हैं.
उन्होंने कहा, "भूटान और उसके पड़ोसी देश, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं. जलवायु परिवर्तन से जुड़ा जोखिम और क्षति, सीमाओं से परे है. इसलिये हमें भविष्य की ज़रूरतों और चुनौतियों का समाधान करने के लिये, सीमाओं से परे जाकर, समाधान व तंत्र खोजने की आवश्यकता है."
'Students' Educational and Cultural Movement of Ladakh' के संस्थापक-निदेशक, सोनम वांगचुक ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई और हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं को कम करने के प्रयासों में महिलाओं को शामिल करने के महत्व पर ज़ोर दिया.
पर्वतीय समुदायों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही महसूस किया जा रहा है. इन संवेदनशील पर्वतीय समुदायों के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ सामने लाने और सीमा पार साझेदारी उजागर करने के लिये, अन्तरराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर पाँच देशों की पाँच कहानियों का एक वीडियो संकलन, संयुक्त राष्ट्र के पाँचों देशों के कार्यालयों के सोशल मीडिया मंचों से जारी किया गया था.
वीडियो में ब्लॉगर्स और पर्वतारोही बता रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से, पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ा है.
सभी पाँच रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर्स का उद्देश्य है, पूरे क्षेत्र में जलवायु सम्बन्धित ख़तरों के प्रति समर्थन और जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ, इन देशों में मौजूद संयुक्त राष्ट्र की टीमों के बीच अधिक से अधिक ज्ञान साझा करना व विकास भागेदारों के साथ समन्वय मज़बूत करने के लिये मज़बूत नेतृत्व प्रदान करना.
इस विस्तृत क्षेत्रीय सहयोग के ज़रिये, संयुक्त राष्ट्र की देशीय टीमें, क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये, अपनी साक्ष्य-आधारित प्रतिक्रियाओं का विस्तार करेंगी.
इस पहल के हिस्से के रूप में, संयुक्त राष्ट्र कार्यालयों ने, टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्ति के प्रयासों को विकसित व मज़बूत करने का संकल्प लिया है.
एसडीजी, 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा अपनाए गए 17 लक्ष्यों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में शान्ति व समृद्धि बनाने व पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों को हल करने में मदद करना है.
प्रत्येक एसडीजी, एक विशिष्ट विषय को सम्बोधित करता है - ‘ट्रान्सबाउंड्री पहल’ के तहत समन्वय की प्राथमिकताओं में भुखमरी का मुक़ाबला करना, सतत शहरों और समुदायों का निर्माण, जलवायु परिवर्तन से निपटना तथा ज़िम्मेदार उत्पादन एवं खपत सुनिश्चित करना शामिल है.
(यूएन भूटान, यूएन नेपाल, यूएन पाकिस्तान, यूएन बांग्लादेश, यूएन भारत, के सहयोग से तैयार किये गए इस लेख के लिये सम्पादकीय सहयोग, यूएन विकास समन्वय कार्यालय से प्राप्त हुआ.).
यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.