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भारत: ज़मीनी स्तर की महिला नेतृत्व की कहानी, उनकी ज़ुबानी

साधारण महिलाओं की असाधारण कहानियाँ.
UNWOMEN India
साधारण महिलाओं की असाधारण कहानियाँ.

भारत: ज़मीनी स्तर की महिला नेतृत्व की कहानी, उनकी ज़ुबानी

महिलाएँ

भारत के ओडिशा प्रदेश के भुवनेश्वर शहर की एक महिला, मुख्यधारा की मीडिया के बजाय, अपने वीडियो चैनल के ज़रिए, संवेदनशील वर्ग की महिलाओं की कहानियाँ प्रसारित कर रही है, जिससे धीरे-धीरे ही सही, मगर क्षेत्र के ग्रामीण इलाक़ों में लैंगिक पूर्वाग्रह ध्वस्त हो रहे हैं. यूएनवीमेन के प्रकाशन से एक प्रेरक कहानी...

"मैं अपना सपना जी रही हूँ."

इन शब्दों में बत्तीस वर्षीय पल्लवी होता की साधारण शुरुआत से लेकर, एक प्रसिद्ध टीवी समाचार एंकर बनने और महिला-विशिष्ट यू-ट्यूब चैनल शुरू करने तक के सफ़र का सार छिपा है.

पश्चिमी ओडिशा के सुदूर गाँव बलाँगीर में अकेली माँ के हाथों पली-बढ़ीं पल्लवी ने, स्नातक की पढ़ाई पूरी करके, अपने पैतृक गाँव से लगभग 300 किलोमीटर दूर ढेनकनाल में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) में पत्रकारिता में डिप्लोमा के लिए प्रवेश लिया. 22 साल की उम्र में उन्हें पहला रोज़गार मिला और पल्लवी, जल्द ही एक लोकप्रिय टेलीविज़न समाचार एंकर बन गईं. 

लेकिन मुख्यधारा मीडिया से असन्तुष्ट पल्लवी ने, शीघ्र ही वहाँ से कामकाज छोड़ दिया और अपने गृह नगर से महिलाओं के साहस और सशक्तिकरण, ज़मीनी स्तर के नेतृत्व और महिला परिवर्तनकर्ताओं की कहानियाँ प्रस्तुत करने के लिए ‘पहाड़ा’ नामक एक सफल कम्पनी की स्थापना की.

‘पहाड़ा’ की कहानियाँ, आर्थिक रूप से पिछड़े, पश्चिमी ओडिशा पर केन्द्रित हैं, जो स्थानीय भाषा में बताई जाती हैं – जैसेकि सम्बलपुरी कोसली, जो पश्चिमी ओडिशा में बोली जाने वाली एक इंडो-आर्यन भाषा है और जिसे पश्चिमी उड़िया भी कहा जाता है. 

इसके तहत, एक सफल डेयरी संचालन चलाने वाली महिला समूह की कहानी से लेकर, राज्य की मिशन शक्ति पहल के ज़रिए, महिला सशक्तिकरण की कहानियाँ लिपिबद्ध करने और भीतरी इलाक़ों की अज्ञात परम्पराओं व संस्कृतियों के बारे में बात करने तक, ‘पहाड़ा’ ने अपने लैंगिक लैंस से इस क्षेत्र की तस्वीरों-कहानियों में समेटने का काम बख़ूबी निभाया है.

पल्लवी कहती हैं, ''’पहाड़ा’ आज अपने-आप में वैसी ही कहानी बन गई है, ठीक उसी तरह, जैसी कि आम महिलाओं की असाधारण कहानियाँ उसमें दिखाई जाती हैं.'' 

उन्होंने कहा कि उनकी कहानियों को विशेष रूप से प्रदेश के अन्दरूनी इलाक़ों से हज़ारों पेज-व्यू, लाइक और शेयर मिलते हैं.

ज़्यादातर स्मार्टफोन पर फिल्माई गईं, पहाड़ा की कहानियाँ, पाँच से दस मिनट लम्बे वीडियो हैं, जो लोक धुनों और साक्षात्कारों को मिलाकर बनाए जाते हैं. 

पल्लवी, ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली महिलाओं की प्रेरक कहानियाँ प्रसारित करती हैं.
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पल्लवी एक बहुत छोटी और युवा टीम के साथ काम करती हैं जिसमें छह पत्रकार शामिल हैं. ये पत्रकार, पश्चिमी ओडिशा के छह ज़िलों में तैनात हैं, जिनमें पाँच सम्पादक स्तर के और लगभग तीन कैमरा ऑपरेटर हैं, जो चैनल के भुवनेश्वर कार्यालय से काम करते हैं.

समूह की सबसे वरिष्ठ सम्पादक 40 वर्ष की सागरिका प्रधान, लगभग 15 वर्षों से इस पेशे में काम कर रही हैं. वो कहती हैं, “इन दिनों पुरुष-प्रधान न्यूज़रूम में काम करना बहुत मुश्किल हो गया है.”

"लेकिन ‘पहाड़ा’ बिल्कुल अलग है. यह हमारी अपनी जगह है, जहाँ हम हर दिन महिला परिवर्तनकारियों की कहानियाँ बुनते हैं." टीम में कई युवा भी शामिल हैं.

21 साल की हर्षिता जेना ने कटक के एक संस्थान से फ़िल्म और वीडियो सम्पादन में डिप्लोमा किया है. वह बताती हैं, ''यह मेरी पहला रोज़गारशुदा काम है और मैं इससे बहुत ख़ुश हूँ. मुझे  मालूम है कि मैं कुछ ऐसा कर रही हूँ जो कुछ सार्थक है."

23 वर्षीय चन्द्रकान्ति मुंडारी, मुख्य सम्पादक हैं. वह कहती हैं, ''मैं जल्द ही अपनी ख़ुद की डॉक्यूमेंट्री बनाना शुरू करना चाहती हूँ. 

''धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, ‘पहाड़ा’ महिलाओं की पारम्परिक देखभाल की भूमिका से जुड़े पूर्वाग्रहों को तोड़कर, उन्हें उद्यमियों, श्रमिकों और नेताओं के रूप में चित्रित कर रहा है.

पल्लवी कहती हैं, ''हम कई अन्य महिलाओं की कहानियों के ज़रिए, अपनी कहानियाँ बता रहे हैं. इन कहानियों से एक नई कहानी लिखी जा रही हैं - धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से!"