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भारत: ‘सीखने की कोई उम्र नहीं होती’

45 वर्षीय निशा चौहान ने 5वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ने के बाद, अब 12वीं कक्षा पूरी की. उनकी बेटी, साक्षी चौहान, जो 7वीं कक्षा में है, पढ़ाई में उनकी मदद करती हैं.
UNWOMEN/Ruhani Kaur
45 वर्षीय निशा चौहान ने 5वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ने के बाद, अब 12वीं कक्षा पूरी की. उनकी बेटी, साक्षी चौहान, जो 7वीं कक्षा में है, पढ़ाई में उनकी मदद करती हैं.

भारत: ‘सीखने की कोई उम्र नहीं होती’

महिलाएँ

भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UN Women) का द्वितीय अवसर शिक्षा कार्यक्रम’, उन सैकड़ों महिलाओं को शिक्षा का दूसरा अवसर दे रहा है, जिन्होंने परिवार व ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाने के कारण, स्कूल की शिक्षा अधूरी छोड़ दी थी.

भारत के पश्चिमी प्रदेश राजस्थान में, बाराँ ज़िले के किशनगंज ब्लॉक की ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य, निशा चौहान कहती हैं, “शिक्षा हासिल करने की कोई उम्र नहीं होती. आप कभी भी, किसी भी उम्र में सीख सकते हैं. यह आपके भविष्य के लिए किया गया निवेश है.''

निशा चौहान, बाराँ ज़िले की उन 350 महिलाओं में से एक हैं, जो लम्बे अन्तराल के बाद दोबारा शिक्षा से जुड़ीं. इनमें से अधिकांश महिलाओं को, वित्तीय बाधाओं, कम उम्र में विवाह होने और परिवार की देखभाल के बोझ जैसे विभिन्न कारणों से अपनी शिक्षा बन्द करनी पड़ी थी.

2019 में ग़ैर-सरकारी संस्था, मंजरी फाउंडेशन ने, यूएन वीमेन के ‘सैकंड चांस एजुकेशन’ के वित्त-पोषण के साथ, प्रदान नामक एक अन्य संस्था के साथ मिलकर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के कुछ ज़िलों में महिलाओं के लिए वयस्क शिक्षा की पहल शुरू की.

यह कार्यक्रम, इन महिलाओं को open schooling शिक्षा प्रणाली के तहत, शिक्षा में पुनः प्रवेश दिलवाता है. इसमें, उन लोगों की भी सहायता की जाती है, जो अपनी वरिष्ठ माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद व्यावसायिक कौशल हासिल करना चाहते हैं.

चुनौतियाँ अनेक

‘सेकंड चांस’ कार्यक्रम की शिक्षक, शिक्षक रेनू कहती हैं, “20 साल के अन्तराल के बाद महिलाओं को, अपनी शिक्षा फिर शुरू करने के लिए राज़ी करना मुश्किल था. 

परिवारों ने, यहाँ तक ​​कि उनके बच्चों ने भी इसका विरोध किया. कार्यक्रम में शामिल होने की हामी भरने के लिए सभी के साथ बहुत विमर्श करना पड़ा.”

यह संस्था, महिलाओं को व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी प्रशिक्षित करती है. कॉलेज के प्रथम वर्ष की छात्रा, प्रिया ने महिला लघु उद्यमियों को उनके उत्पादों के विपणन और बिक्री में मदद करने के लिए एक 'बिजनेस सखी' का प्रशिक्षण लिया. 

प्रिया, एक निजी दूरसंचार कम्पनी के साथ अंशकालिक काम भी करती हैं और प्रति माह 5 हज़ार रुपए अर्जित कर लेती हैं. उन्हें उम्मीद है कि स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें नियमित रोज़गार वाला कामकाज मिल जाएगा.

बदलाव की बयार

निशा चौहान अब ग्राम पंचायत की निर्वाचित सदस्य भी हैं.
UNWOMEN/Ruhani Kaur

बिहार के गया ज़िले में, 2019 में लगभग 300 महिलाओं को, स्कूली शिक्षा शिक्षा से फिर से जोड़ा गया, जिनमें से 213 महिलाएँ, कक्षा 10 और 12वीं की परीक्षा पास करने में सफल रहीं. टनकुप्पा ब्लॉक के सैदापुर गाँव की 10 से 12 लड़कियाँ शिक्षा ले रही हैं. 

इस गाँव में, ‘सेकंड चांस एजुकेशन’ से वित्त पोषण प्राप्त यह परियोजना, PRAN (ग्रामीण संसाधनों और प्रकृति का संरक्षण और प्रसार) संस्था ने लागू की हैं, जिसे प्रदान संस्था कार्यान्वित कर रही है. 2019 में नामांकित 246 महिलाओं में से 213 महिलाएँ, परीक्षा में शामिल हुईं.

कार्यक्रम में भाग लेने वाली ललिता देवी कहती हैं, ''मेरे बेटे ने कहा कि मैं कभी परीक्षा पास नहीं कर पाऊंगी.'' 

लेकिन उन्होंने न केवल अपने बेटे को, बल्कि उन सभी महिलाओं को भी ग़लत साबित कर दिया, जो बड़ी उम्र में शिक्षा से दोबारा जुड़ने के लिए, उनकी हँसी उड़ाती थीं. 

आज, वह प्रगतिशील जीविका महिला संघ संस्था में सचिव के रूप में काम करती हैं और प्रति माह साढ़े तीन हज़ार रुपए की आय अर्जित करती हैं. उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूह से ऋण लेकर, अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए घर पर एक दुकान भी खोल ली है.

मुज़फ्फरपुर में, 324 महिलाओं ने दसवीं कक्षा के लिए नामांकन कराया था, जिनमें से 200 महिलाएँ, सक्रियता से शिक्षा हासिल कर रही हैं. कम से कम 130 महिलाओं ने एक प्रयास में परीक्षा उत्तीर्ण की, जबकि अन्य महिलाएँ फिर से परीक्षा उत्तीर्ण करने की कोशिशों में लगी हैं. इन 130 महिलाओं में से 30 से अधिक को रोज़गार प्राप्त हुआ. 

इसी तरह, बिहार मुक्त स्कूल बोर्ड के माध्यम से, बारहवीं कक्षा में दाख़िला लेने वाली, 42 में से 28 महिलाएँ उत्तीर्ण हुईं, जिनमें से कुछ महिलाओं ने आगे शिक्षा हासिल करने की इच्छा व्यक्त की है.