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भारत: अभिनव समाधानों के ज़रिए परिवर्तन का परचम लहराते प्रतिभावान युवजन

नवाचार और उद्यमिता के ज़रिए बदलाव लाते, यूएनडीपी यूथ को:लैब के प्रेरक युवजन.
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नवाचार और उद्यमिता के ज़रिए बदलाव लाते, यूएनडीपी यूथ को:लैब के प्रेरक युवजन.

भारत: अभिनव समाधानों के ज़रिए परिवर्तन का परचम लहराते प्रतिभावान युवजन

एसडीजी

भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने अपने साझेदार संगठनों के साथ मिलकर, 2017 में ‘यूथ को:लैब’ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य युवजन में निवेश और उनके सशक्तिकरण के लिए एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में स्थित देशों के लिए एक साझा एजेंडा स्थापित करना है, ताकि नेतृत्व, सामाजिक नवाचार और उद्यमिता के ज़रिये, टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने के प्रयासों में तेज़ी लाई जा सके. मौजूदा दौर की सबसे गम्भीर चुनौतियों से निपटने के लिए छह अभिनव समाधानों पर एक नज़र...

भारत में 18 से 29 वर्ष के बीच की युवा आबादी, 26 करोड़ से अधिक है, जो देश की जीवंत क्षमता का जीता-जागता प्रमाण है. आज युवजन, नवीन समाधानों के ज़रिए, जलवायु परिवर्तन, पहुँच, ग़रीबी और भुखमरी जैसे गम्भीर मसलों का हल निकालने के लिए आगे आ रहे हैं. 

उदाहरण के लिए, वे अपनी आवाज़ बुलन्द करके व जागरूकता फैलाकर, जलवायु कार्रवाई का हिस्सा बन रहे हैं, वहीं कृषि में उनके कल्पनाशील समाधानों से, बेहतर फ़सल उत्पादकता को बढ़ावा मिल रहा है.

इस आबादी की सामूहिक ऊर्जा को सामाजिक-आर्थिक व पर्यावरणीय प्रगति की ओर मोड़ना, भारत के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने की कुँजी है. 

इस पृष्ठभूमि में, भारतीय युवाओं और युवा-संचालित सामाजिक उद्यमों में निवेश नई ऊंचाइयाँ छू रहा है. यूएनडीपी का मानना ​​है कि युवा परिवर्तन के सकारात्मक उत्प्रेरक हैं, जिनमें विशाल, मूल्यवान क्षमता है, जिसमें सरकारों एवं संस्थानों को निवेश करने की ज़रूरत है. 

यूएन कार्यालय सामाजिक परिवर्तन के लिए युवा नवाचार और उद्यमिता का समर्थन करने हेतु, राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर पर प्रयासरत है. ऐसा ही एक प्रयास है ‘यूथ को:लैब’, जो एशिया और प्रशांत क्षेत्र का सबसे बड़ा युवा नवाचार आन्दोलन है. 

2019 में ‘यूथ को:लैब’ को भारत सरकार के नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन के साथ साझेदारी में लॉन्च किया गया था. तब से इसके पाँच संस्करण जारी किए जा चुके हैं. इस साल का संस्करण जून में समाप्त हुआ, जब असाधारण प्रतिभा के धनी और सकारात्मक बदलाव लाने में योगदान दे रहे छह युवाओं के समाधानों को प्रस्तुत किया गया. 

संदीप कुमार: स्वास्थ्य सेवा (उत्तर प्रदेश)

संदीप के दिमाग़ की उपज, ‘डिजीस्वास्थ्य’ में, आपात चिकित्सा आवश्यकताओं और विशेषज्ञ देखभाल के बीच की दूरी कम करके, दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया गया है. 

‘डिजीस्वास्थ्य’ से, दूरस्थ इलाक़ों में रहने वाले समुदायों के व्यक्तियों को वर्चुअल डॉक्टर परामर्श, चिकित्सा सलाह और उपचार के नुस्ख़ों से जोड़ा जाता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में क्रान्ति आ गई है. 

संदीप की दूरदर्शिता के कारण, कभी दूर का सपना लगने वाली विशेषज्ञ देखभाल, अब घर-घर पहुँचने लगी है.

सौम्या डाबरीवाल और आराधना राय गुप्ता: माहवारी स्वच्छता (दिल्ली)

सौम्या और आराधना की बाला परियोजना, भारतीय महिलाओं को माहवारी स्वच्छता चुनौतियों से निपटने की क्षमता प्रदान करती है, जिसमें सैनिट्री नैपकिन तक पहुँच, उनका निपटान, या उनसे जुड़े पूर्वाग्रहों को दूर करना शामिल है. 

यूनीसेफ़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं की स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच नहीं है, 71 प्रतिशत को पहली बार माहवारी होने से पहले उसके बारे में जानकारी नहीं होती, और लगभग दो करोड़ 30 लाख महिलाएँ, माहवारी शुरु होने पर स्कूल छोड़ देती हैं. 

बाला परियोजना के तहत, री-य़ूजे़बल सैनिट्री पैड तैयार करके व जागरूकता अभियान चलाकर, महिलाओं को ज्ञान एवं समाधान देकर सशक्त बनाया जाता है. 

भारत में उनके प्रयासों से पाँच लाख से अधिक महिलाओं को लाभ हुआ है. साथ ही उनका प्रभाव, भारत के अलावा नेपाल, तंज़ानिया और घाना तक फैल गया है, जिससे 11 करोड़ 20 लाख प्लास्टिक पैड से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान से रक्षा करते हुए, माहवारी स्वच्छता तक पहुँच सम्भव हुई है.

सोनल शुक्ला: टिकाऊ निर्माण (दिल्ली)

सोनल के नेतृत्व में ‘ई-कॉन्शियस’ संस्था, पर्यावरण के प्रति जागरूक विकल्प पेश करती है. 

उनकी सरल री-सायक्लिंग विधि बेकार प्लास्टिक को, पार्क बेंच व कलाकृतियों जैसे कार्यात्मक उत्पादों में बदल देती है. 

100,000 किलोग्राम से अधिक प्लास्टिक कचरे को पुनर्चक्रित करने और 1,000 से अधिक पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाने के बाद, ‘ईकॉन्शियस’ एक उज्जवल, पर्यावरण-अनुकूल भविष्य के लिए प्रेरित करते हुए, सर्कुलर अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करती है.

डिमम पर्टनिन: परम्पराओं के ज़रिए सशक्तिकरण (अरुणाचल प्रदेश)

डिमम की ‘गेपो आली’ नामक संस्था ने, स्थानीय फ़सलों और पैतृक कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित किया है, जिससे अरुणाचल प्रदेश में 50 से अधिक महिला किसान सशक्त हुई हैं. 

आदिवासी जनजाति की डिमम, पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं. जंगल से उनका गहरा जुड़ाव, टिकाऊ कृषि, सांस्कृतिक विरासत और उनकी दादी की प्रेरणा ने उन्हें बाजरे की पारम्परिक क़िस्मों को बढ़ावा देने के लिए ‘गेपो आली’ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. 

बाजरा, जलवायु अनुकूल फ़सल होती है और इसे सुपरफूड माना जाता है, जो आधुनिक कृषि पद्धतियों के कारण नष्ट होता जा रहा है. 

डिमम के जीवन के सफ़र से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह आदिवासी पहचान और टिकाऊ खेती के संरक्षण से, आधुनिकता के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाली परम्पराओं का पोषण सम्भव है.

आकाशदीप बंसल: समावेशन की राह (राजस्थान)

आकाशदीप के सफ़र की विशेषता है, सहनसक्षमता. दृष्टिबाधित होने के बावजूद, आकाशदीप डिजिटल दुनिया में समावेशिता की दिशा में काम करने से नहीं कतराए. 

उन्होंने आईआईटी दिल्ली में सुलभ शिक्षा कार्यालय की स्थापना की, जिससे हर साल 150 से अधिक विकलांग छात्रों को, परिसर में आवास, लेखन सहायता, प्रतिपूरक समय, आवश्यक सहायक उपकरणों तक पहुँच, सुलभ अध्ययन सामग्री, कौशल विकास प्रशिक्षण, कक्षाओं/सेमिनार हॉल आदि में आरक्षित सीटों का लाभ मिलता है. 

उन्होंने 2019 में SaralX की सह-स्थापना भी की है, जो दुर्गम सामग्री को स्क्रीन रीडर के अनुकूल प्रारूपों में परिवर्तित करता है. 

इस अभिनव समाधान ने 4,000 से अधिक विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाया है, और 6 लाख से अधिक पृष्ठों को परिवर्तित किया है एवं समीकरणों व जटिल लेआउट जैसी चुनौतियों को पार किया है. 

वह कॉरपोरेट्स को डिजिटल पहुँच अपनाने और समावेशी रोज़गार को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए भी सक्रिय रूप से काम करते हैं.

प्रान्जुली गर्ग: टिकाऊ नवाचार के ज़रिए पोषण (मुम्बई)

प्रान्जुली की संस्था, ‘प्रोमीट’, पारम्परिक माँस के जलवायु-अनुकूल विकल्प पेश करके, प्रोटीन की ख़पत बढ़ाने में मददगार साबित हुई है. 

प्रौद्योगिकी व स्थानीय फ़सलों के संयोग से, पौध-आधारित चिकन का उत्पादन किया जाता है, जो पौष्टिक होने के साथ-साथ, पर्यावरण-अनुकूल भी है. 

गुणवत्ता और सततता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, प्रोमीट को स्वस्थ जीवन शैली और हरित ग्रह का कारक बनाती है. 

ये युवा नवप्रवर्तक परिवर्तन, सहनसक्षमता और प्रतिबद्धता की भावना का प्रतीक हैं. उनकी यात्राएँ स्पष्ट करती हैं कि नवप्रवर्तन की कोई सीमा नहीं होती. तीक्ष्ण बुद्धि वाले ये युवजन, भारत में बदलाव का नेतृत्व करने के लिए तैयार है, ताकि किसी को भी पीछे ना छूटने दिया जाए.