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भारत: ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को रोज़गार में समानता देने के प्रयास

भारत में यूएन एड्स और यूएनडीपी कार्यालयों ने, ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों के लिए आयोजित रोज़गार  मेले का समर्थन किया.
TWEET Foundation
भारत में यूएन एड्स और यूएनडीपी कार्यालयों ने, ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों के लिए आयोजित रोज़गार मेले का समर्थन किया.

भारत: ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को रोज़गार में समानता देने के प्रयास

एसडीजी

भारत में ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को मुख्य धारा में बेहतर रोज़गार अवसर देने व समावेशन के लिए, यूएनएड्स और यूएनडीपी समर्थित ट्रांस रोज़गार मेले जैसी पहलों के ज़रिए प्रयास किए जा रहे हैं.

भारत में कोलकाता की वासी, रात्रीश साहा एक ट्रांसजैंडर महिला हैं. वह सात साल के कार्य अनुभव के बावजूद, साल 2022 में रोज़गार के नए आवेदन को लेकर चिन्तित थीं.

वो बताती हैं, “एक ट्रांसजैंडर महिला होने के नाते रोज़गार मिलना कभी आसान नहीं होता. मुझे ऐसे शब्द सुनाकर टाल दिया जाता है कि ‘फ़िलहाल यहाँ एलजीबीटी हायरिंग नहीं चल रही है' या फिर 'हमारे कार्यालय में एक ट्रांस व्यक्ति को समायोजित करने की सुविधा नहीं है.'

लेकिन रात्रीश साहा, ‘ट्रांसजैंडर कल्याण समता और सशक्तिकरण न्यास’ यानि TWEET संस्थान के माध्यम से, उन कम्पनियों में उपलब्ध उपयुक्त अवसरों के साथ जुड़ पाईं, जिन्होंने संवेदनशीलता प्रशिक्षण प्राप्त किया है. जल्दी ही उन्हें बैंगलोर स्थित ‘सीमेंस टैक्नोलॉजी’ में सहयोगी सलाहकार के पद पर नियुक्त किया गया.

उन्होंने अपने साक्षात्कार के बारे में बताते हुए कहा: "मुझ से केवल मेरे कौशल के बारे में बातचीत की गई और उन वार्तालापों में कोई लिंग स्पष्टीकरण शामिल नहीं किया गया." बेहद उत्साहित रात्रीश साहा ने बताया कि वह इस "अवसर को हाथों-हाथ ले रही हैं...और पूरे दिल से अपना काम करेंगीं."

भारत में समुदायों, सरकार और विकास भागीदारों के बीच सहयोगात्मक प्रयास की बदौलत, अब ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के सामने प्रतिष्ठित व सभ्य कामकाज की दिशा में नई राह खुलने लगी है.

इस कार्यक्रम के ज़रिए, ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों के आर्थिक समावेशन के प्रयास किए जा रहे हैं.
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रोज़गार मेला

भारत में UNAIDS कार्यालय और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने हाल ही में संयुक्त रूप से, राजधानी नई दिल्ली में ट्रांस रोज़गार मेला (जॉब फ़ेयर) का समर्थन किया. इस पहल को, संयुक्त रूप से, राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान, सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय, ट्वीट फाउंडेशन एवं विविधता परामर्श फ़र्म ‘इन हार्मनी’ ने आयोजित किया था.

कार्यक्रम का उद्देश्य था, ट्रांस समुदाय के सामाजिक-आर्थिक समावेशन में तेज़ी लाना, उनके मुद्दों के बारे में मुख्यधारा के निगमों में जागरूकता लाना और उन्हें समावेशी संगठनों में रोज़गार के अवसरों से जोड़ने के लिए एक मंच प्रदान करना.

TWEET फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष और सह-संस्थापक, माया अवस्थी ने बताया, "यह दृष्टिकोण न केवल सरकार के प्रतिनिधियों, नागरिक समाज संगठनों और व्यवसायों के बीच संवाद का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह कौशल प्रशिक्षण, करियर परामर्श, उद्यमिता समर्थन व परामर्श सहायता तक पहुँच भी मुहैया करवाता है."

भारत का 2019 ट्रांसजैंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, सार्वजनिक या निजी क्षेत्रों में ट्रांस व्यक्तियों के ख़िलाफ़ रोज़गार में भेदभाव पर रोक लगाता है. हालाँकि हितधारक पक्ष, क़ानून के उन पहलुओं की ओर इशारा करते हैं जिन्हें मज़बूत किया जा सकता है, लेकिन वे स्वीकार करते हैं कि व्यापक भेदभाव-विरोधी प्रावधान, एक अधिक समावेशी संस्कृति के निर्माण और अधिकारों का उल्लंघन पर निवारण का मार्ग प्रशस्त करता है.

रोज़गार तक पहुँच में असमानता से निपटना एचआईवी प्रतिक्रिया के लिए भी प्रासंगिक है. 2021 में भारत में ट्रांसजैंडर व्यक्तियों में एचआईवी का प्रसार 3.8% था, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग 20 गुना अधिक था.

भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 2017 में केवल छह प्रतिशत ट्रांसजैंडर लोगों को औपचारिक रूप से या तो निजी या गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) क्षेत्र में रोज़गार मिला था. वहीं लगभग 5% ट्रांसजैंडर क्रमशः सेक्स वर्कर और घरेलू श्रमिकों के रूप में काम करने को मजबूर हैं. तेरह प्रतिशत ट्रांसजैंडर, भोजन और अन्य सामान बेचकर गुज़ारा चलाते हैं, जबकि 11 प्रतिशत, भीख मांगकर गुज़र-बसर करते हैं.

भारत में यूएनएड्स के देश निदेशक डेविड ब्रिजर ने बताया, "ऐसे अनेक तरीक़े हैं जिनमें उच्च वेतन और निरन्तर रोज़गार से एचआईवी संवेदनशीलता कम हो सकती है. उन असमानताओं से निपटकर जिनकी वजह से, ट्रांस व्यक्ति ग़लत तरीक़े से, अवसरों से दूर धकेल दिए गए हैं, हम एक अधिक सशक्त समुदाय बनाने में मदद कर सकते हैं, जिसमें लोग अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए, बेहतर स्वास्थ्य व कल्याण का आनन्द ले सकते हैं."

2017 के मानवाधिकार आयोग के अध्ययन में पाया गया कि लगभग आधी ट्रांसजैंडर आबादी कभी स्कूल नहीं गई. बहुत से विकास भागीदार, समुदाय को कलंक मुक्त वातावरण में शिक्षा के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की पहल का समर्थन कर रहे हैं.

इन कोशिशों की वजह से कई ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों को सभ्य कामकाज मिलने में सफलता हासिल हुई है.
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समावेशन ज़रूरी

आरव सिंह एक ट्रांसपुरुष हैं, जो छह महीने से बेरोज़गार थे. ट्रांस रोज़गार मेले में उन्हें ‘रूप ऑटोमोटिव्स’ में मानव संसाधन के क्षेत्र में इंटर्नशिप करने का अवसर मिला.

उन्होंने कहा, "यह एक संवेदनशील, अन्तर-समावेशी संगठन है जहाँ मुझे दस्तावेज़ सम्बन्धी मुद्दों का न के बराबर सामना करना पड़ा. केवल मैं ही नहीं, बल्कि मेरे दोस्तों को भी कई अग्रणी ट्रांस समावेशी कम्पनियों के साथ काम करने के शानदार अवसर मिले हैं. मैं उम्मीद करता हूँ कि यह सिलसिला जारी रहेगा."

हालाँकि ट्रांस रोज़गार मेले के लाभार्थी अपनी चुनौतियों के सामुदायिक आयाम को स्वीकार करते हैं, लेकिन असल में वे किसी भी साधारण, युवा पेशेवर जैसे ही होते हैं - उम्मीदों से परिपूर्ण.

युमनाम थवलंगम्बा मीतेई ने 2022 में एमबीए पूरा किया, लेकिन कोई भी रोज़गार, "यहाँ तक ​​कि वेतन आधारित एक छोटा कामकाज " मिलना भी मुश्किल हो गया.

उन्होंने बताया, “TWEET  फाउंडेशन की मदद से मैं मुम्बई में प्रतिभा प्रबन्धन और संगठनात्मक विकास के लिए एक कार्यकारी के रूप में, महिंद्रा लॉजिस्टिक्स लिमिटेड में जगह पाने में सफल हुआ. मैं अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करने के लिए इस जगह का बहुत आभारी हूँ.”