सामाजिक न्याय व एसडीजी में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका पर संगोष्ठि

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन ने, टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में, प्रौद्योगिकी विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका पर विचार करने के लिए, शुक्रवार 14 अप्रैल को, यूएन मुख्यालय परिसर में विचार गोष्ठि का आयोजन किया. इस परिचर्चा में, ऐसे लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को प्रोत्साहन देने में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) समेत उन प्रौद्योगिकीय नवाचारों और प्रथाओं की भूमिका को रेखांकित किया गया, जो एक समावेशी, विकासोन्मुख, टिकाऊ और शान्तिपूर्ण समाज को मज़बूत करें.
न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में आयोजित हुए इस कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग यहाँ देखी जा सकती है...
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में डेटा व विश्लेषण मामलों के लिए निदेशक स्टीव मैकफ़िली ने न्यूयॉर्क में आयोजित इस कार्यक्रम को, जिनीवा से सम्बोधित करते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमता का उपयोग ज़िम्मेदारी से करने के लिए, ज़िम्मेदार डेटा की आवश्यकता होगी.
उनका मानना है कि सामाजिक न्याय हेतु कृत्रिम बुद्धिमता के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले मुक्त डेटा की ज़रूरत होगी.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में निदेशक ने ज़ोर देकर कहा कि डेटा वो ईंधन है, जिस पर एआई काम करती है. और यहाँ डेटा से तात्पर्य केवल आँकड़ों से नहीं है बल्कि तस्वीरों, लिखित शब्दों और ध्वनि से भी है.
उन्होंने सचेत किया कि वैश्विक स्तर पर डेटा संचालन व उपयोग व्यवस्था के अभाव में, मौजूदा पूर्वाग्रहों, विषमताओं व भेदभाव और पनपेंगे.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि, राजदूत रुचिरा काम्बोज ने अपने सम्बोधन में कहा कि सितम्बर 2023 में टिकाऊ विकास लक्ष्यों की मध्यावधि समीक्षा होनी है, जिसके मद्देनज़र कार्यक्रम का विषय बेहद प्रासंगिक है.
राजदूत रुचिरा काम्बोज ने कहा कि यह समय टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा को मज़बूती प्रदान करने का है ताकि सर्वजन के लिए सामाजिक व आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की जा सके.
उन्होंने भारत में सामाजिक सशक्तिकरण के लिए कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा समेत अन्य क्षेत्रों में एआई के प्रयोग का उल्लेख किया.
उदाहरणस्वरूप, भारत सरकार ने कृषि में एआई ऐल्गोरिथम विकसित किए हैं, जिनके ज़रिए कृषि सम्बन्धी समाचार साझा किए जाते हैं. इससे किसानों को अपनी फ़सलों के लिए बेहतर जानकारी के साथ निर्णय लेने में मदद मिलती है और हानि में कमी लाना सम्भव हुआ है.
वहीं, स्वास्थ्य देखभाल में एआई के ज़रिए उन इलाक़ों में रोग निदान व उपचार सुविधाएँ पहुँचाई जा रही हैं, जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी रही है.
संयुक्त राष्ट्र में अन्तरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) की प्रतिनिधि उरसुला विनहॉवेन ने एआई के प्रयोग में निहित लाभों को रेखांकित करते हुए कहा कि इसके ज़रिए निर्धनता से जुड़ी जानकारी अन्तरिक्ष से जुटाई जा सकती है और प्राकृतिक आपदाओं का अनुमान लगाया जा सकता है.
इसके अलावा, एक स्मार्टफ़ोन की मदद से डायबिटीज़ व त्वचा कैंसर का पता लगाना, आवश्यकता अनुसार पढ़ाई-लिखाई सम्बन्धी सहायता प्रदान करना और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना सम्भव है.
उन्होंने कहा हर दिन, एआई के प्रयोग से जुड़ी अनगिनत सम्भावनाएँ नज़र आती हैं, मगर सतर्कता बनाए रखना भी ज़रूरी है, चूँकि इससे रोज़गार हानि, ऊर्जा खपत, निर्णय निर्धारण में पूर्वाग्रह, डिजिटल दरारों के और पैना होने समेत अन्य जोखिम भी पैदा हो सकते हैं.