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एशिया-प्रशान्त: 2030 तक एड्स के ख़ात्मे के लिए, नवीन समाधानों का विस्तार ज़रूरी

यूएनएड्स में एशिया प्रशांत, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, एमॉन मर्फ़ी.
UNAIDS
यूएनएड्स में एशिया प्रशांत, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, एमॉन मर्फ़ी.

एशिया-प्रशान्त: 2030 तक एड्स के ख़ात्मे के लिए, नवीन समाधानों का विस्तार ज़रूरी

स्वास्थ्य

एचआईवी - एड्स मामलों पर संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNAIDS) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक एड्स का ख़ात्मा करने के लिए एक स्पष्ट मार्ग मौजूद हैजिसके लिए मज़बूत राजनैतिक नेतृत्व के साथ विज्ञान को अपनानेविषमताओं का मुक़ाबला करने और सतत निवेश सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता होगी. इस रिपोर्ट पर एशिया-प्रशान्त व ख़ासतौर पर भारत की स्थिति पर जानकारी के लिए, यूएन न्यूज़ ने UNAIDS में एशिया प्रशान्त, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, एमॉन मर्फ़ी के साथ विस्तार से बातचीत की.

 

भारत के 2022 एचआईवी आँकड़ों के मुताबिक़, देश में अनुमानित 24 लाख 70 हज़ार लोग एचआईवी से पीड़ित, जिनमें वयस्कों के बीच एचआईवी का प्रसार 0.2% है.

वर्ष 2022 में नए एचआईवी संक्रमण मामलों की संख्या अनुमानित 66 हज़ार थी, हालाँकि 2010 के बाद से नए संक्रमणों की दर में 42% से थोड़ी अधिक की गिरावट दर्ज की गई, जो वैश्विक औसत 38% से थोड़ी ज़्यादा है. 2010 के बाद से एड्स के कारण कुल मृत्यु दर में लगभग 77% की गिरावट आई है.

यूएनएड्स में एशिया प्रशान्त, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, एमॉन मर्फ़ी का कहना है कि भारत सरकार ने एड्स प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय स्वामित्व और नेतृत्व का प्रदर्शन किया है.

भारत में 2022 में एचआईवी से पीड़ित 79% लोगों को अपनी स्थिति की जानकारी है. जो लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानते हैं, उनमें से एचआईवी से पीड़ित 86% लोग एंटीरैट्रोवाइरल उपचार करा रहे हैं. 

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जिन लोगों का इलाज चल रहा है और वायरल लोड के लिए परीक्षण किया गया है, उनमें से 93% पीड़ितों का वायरल दबाने में सफलता प्राप्त हुई है. देश के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता -, एचआईवी से पीड़ित उन लोगों तक पहुँचना है जो अपनी स्थिति के बारे में तो जानते हैं लेकिन इलाज के बारे में नहीं. 

भारत, प्री-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (पीआरईपी) और वर्चुअल हस्तक्षेप जैसे नवीन समाधानों का लाभ भी उठा रहा हैं; साथ ही, सेवाओं तक पहुँच बनाना और अधिक सक्षम वातावरण बनाने के लिए आवश्यक अतिरिक्त नीति सुधार भी लागू कर रहा है. लेकिन कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए नए व प्रभावी नेतृत्व की ज़रूरत है.

यूएन न्यूज़: यूएनएड्स की नई रिपोर्ट से मालूम होता चलता है कि एड्स को 2030 तक समाप्त किया जा सकता है और वहाँ तक ​​पहुँचने का रास्ता स्पष्ट है. वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर हम फ़िलहाल कहाँ हैं, और क्या आपको लगता है कि 2030 तक एड्स को समाप्त कर दिया जाएगा?

एमॉन मर्फ़ी: इस लक्ष्य को हासिल करना, हमारे क्षेत्र के लिए एक चुनौती है, क्योंकि यहाँ लापरवाही के कारण जवाबी कार्रवाई में कमी आई है, जिससे नए संक्रमण सामने आ रहे हैं, और यह चिन्ता का विषय है. रिपोर्ट हमें यह ज़रूर बताती है कि एड्स ख़त्म करने का रास्ता स्पष्ट है, लेकिन वही कार्रवाई सफल होती है, जो मज़बूत राजनैतिक नेतृत्व पर आधारित होती है. इसके लिए चार क़दम अहम होंगे - साक्ष्य-आधारित रोकथाम और उपचार बढ़ाना, उन असमानताओं से निपटना जो कई देशों में प्रगति को रोक रही हैं, समुदायों और नागरिक समाज संगठनों को प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु सक्षम बनाना, और कार्रवाई के लिए पर्याप्त एवं टिकाऊ वित्तपोषण सुनिश्चित करना. 

हमारे पास अपने क्षेत्र के दो देशों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं जो परीक्षण और उपचार लक्ष्यों के 95 आँकड़े तक पहुँचने के बहुत क़रीब हैं - कम्बोडिया और थाईलैंड. अगर उनके लिए ऐसा करना सम्भव है, तो अन्य देशों व लोगों के लिए भी ऐसा करना सम्भव होगा. 

लेकिन इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को मिलाकर काम करने की आवश्यकता है, जो एक मज़बूत राजनैतिक नेतृत्व के ज़रिए आपस में बंधे हों. 

यूएन न्यूज़:. भारत में क्या स्थिति है? भारत और एशिया के लिए रिपोर्ट के प्रमुख सन्देश क्या हैं?

एमॉन मर्फ़ी: एशिया-प्रशान्त के उपचार कवरेज में पिछले वर्ष से कोई वृद्धि नहीं हुई है. यह एक गम्भीर चिन्ता का विषय है क्योंकि रोकथाम में पर्याप्त निवेश नहीं करने के कारण, बहुत से देश उपचार पर निर्भर हैं. और हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 2010 के बाद से नए संक्रमणों में केवल 14% की गिरावट आई है. इसलिए, कुछ अर्थों में एड्स की महामारी एक मुक़ाम पर स्थिर हो गई है, और कई देशों में, यह बढ़ रही है. इसलिए, हम हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते. 

हमें उन नवीन समाधानों का लाभ उठाना होगा जो अब देशों में उपलब्ध हैं. सबसे अधिक जोखिम वाले लोगों को लक्षित करने के लिए उपायों का आधुनिकीकरण किया जाना ज़रूरी है. सबसे जोखिम वाला वर्ग युवजन हैं. इसलिए, हमें कमज़ोर तबक़ों तक पहुँचने, उनके अधिकारों की रक्षा करने, दंडात्मक क़ानूनों को हटाने और आपराधीकरण से निपटने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है.  

भारत ने पिछले दशक में इन दोनों क्षेत्रों में प्रगति की है. हमने वहाँ ट्रान्सजेंडर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता का अधिकार अर्जित करते देखा है. 

एचआईवी से सम्बन्धित भेदभाव को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया है और सहमत समलैंगिक आचरण को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. 

तो, उदाहरण मौजूद हैं, लेकिन भारत के लिए प्रतिक्रिया को पटरी पर लाने के लिए, और दोबारा सक्रिय करने के लिए, राजनैतिक नेतृत्व महत्वपूर्ण है.

यूएन न्यूज़: 2030 तक एड्स महामारी को समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, देशों को और क्या क़दम उठाने की आवश्यकता है?

एमॉन मर्फ़ी: यह समझना, पहली प्राथमिकता होगी कि वर्तमान में संक्रमण कहाँ हो रहे हैं. और ऐसे अनेक देश हैं जहाँ युवजन संक्रमित हो रहे हैं. कुछ देशों में 50% नए संक्रमण, 25 वर्ष से कम आयु वर्ग में देखे गए हैं. लेकिन क्या युवाओं के लिए उपलब्ध सेवाएँ सुलभ हैं. युवाओं को वर्चुअल मंचों पर मददगार कार्यक्रमों की ज़रूरत है, युवाओं तक सेवाओं को अलग तरीक़े से पहुँचाने की ज़रूरत है. ज़रूरी है कि उनमें इन सेवाओं तक पहुँचने के लिए कोई डर नहीं हों. और इसके लिए क़ानूनी बाधाओं को दूर करना, कलंकिक मानसिकता एवं भेदभाव का हल निकालना व उनसे निपटना ज़रूरी है.

इसमें थाईलैंड जैसे देश में बड़ी सफलता मिली है. लेकिन दूसरे देश इस क्षेत्र में  निवेश नहीं कर रहे हैं. युवाओं के लिए रोकथाम सेवाएँ, वास्तव में महत्वपूर्ण हैं, और इसमें स्व-परीक्षण भी शामिल है. लोगों को अपने स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखने, यह पहचानने में सक्षम होना चाहिए कि क्या वे जोखिम में हैं. Pre-exposure Prophylaxis (PrEP), एक बहुत ही सरल विधि है, जो संक्रमण को रोकने में भी मदद कर सकती है. यह महत्वपूर्ण है कि इसे बढ़ावा दिया जाए. कुछ देशों में शुरू हुआ लेकिन इसका विस्तार नहीं किया गया.

भारत में, तैयारी और स्व-परीक्षण दोनों को ही मौजूदा कार्यक्रमों में जोड़ने की ज़रूरत है.

और, इस सबमें, समुदाय की भूमिका अहम है. हम समुदाय के नेतृत्व वाले कार्यक्रमों में निवेश और क्षेत्र के देशों में प्रतिक्रियाओं की निगरानी में उनकी भागेदारी घटती देख रहे हैं. भारत को लम्बे समय से सामाजिक अनुबन्ध के क्षेत्र में एक उदाहरण के रूप में रखा गया है, लेकिन उसे इस क्षेत्र में दोबारा निवेश करने की ज़रूरत है और इन नवाचारों के साथ-साथ प्रतिक्रिया में विज्ञान-आधारित नवाचारों को भी सबसे आगे रखना होगा, विशेष रूप से रोकथाम के लिए.

मैडागास्कर में एक महिला का, एचआईवी परीक्षण.
© UNICEF/Rindra Ramasomanana

यूएन न्यूज़: रिपोर्ट में मज़बूत राजनैतिक नेतृत्व को जगाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है? सरकारें, संयुक्त राष्ट्र और सदस्य देश, संवेदनशील समुदायों को कैसे सशक्त बना सकते हैं?

एमॉन मर्फ़ी: इसके लिए सबसे पहले विश्वसनीय घरेलू वित्तपोषण अहम है. यह कमज़ोर व हाशिए पर धकेली गई आबादी की मदद के लिए महत्वपूर्ण है. हमें समुदायों को जवाबी कार्रवाई का हिस्सा बनाना होगा, जैसाकि हमने उस अवधि में किया था जब नए संक्रमणों में बहुत बड़ी गिरावट आई थी. 

स्वास्थ्य कार्रवाई के साथ जुड़ाव, एचआईवी के नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है. योजना और कार्यान्वयन, निगरानी व मूल्यांकन में समुदायों की निरन्तर क्षमता निर्माण, भागेदारी का तर्कसंगत दृष्टिकोण बनाकर, कार्रवाई के केन्द्र में रखना होगा.

इससे यह कार्रवाई, लोगों की ज़रूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील बनती है, क्योंकि समुदायों को इसकी समझ होती है. यदि आप एक युवा एमएसएम हैं, तो स्वास्थ्य क्लीनिक, या किसी अन्य सरकारी सेवा में जाने से पहले आप अपने समुदाय के अन्य लोगों से बात करने में अधिक सहजता महसूस करेंगे. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकारें सामुदायिक कार्रवाई एवं सामुदायिक निगरानी, दोनों क्षेत्रों में वित्तीय निवेश करें. 

यूएन न्यूज़: क्या कुछ ऐसे अभिनव समाधान हैं, जिन्हें देशों को एचआईवी की रोकथाम और उपचार के लिए अपनाने की आवश्यकता है?


एमॉन मर्फ़ी: इनमें से सबसे पहले PrEP है. PrEP विकसित हो रहा है – पहले यह गोली के रूप में था, लेकिन अब यह इंजेक्शन में लिया जा सकता है. इसे सम्पूर्ण आबादी तक पहुँचाने की आवश्यकता है. दूसरा, अब बहुत से लोग ऑनलाइन रहते हैं. यह लोगों के साथ जुड़ने का एक बिल्कुल अलग तरीक़ा है, ख़ासतौर पर युवाओं के साथ. 

इसलिए, हमें उन लोगों तक पहुँचने के लिए वर्चुअल कार्यक्रम की आवश्यकता है, जो सोशल मीडिया के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं - चाहे वो डेटिंग वेबसाइट हो या फ़ेसबुक या ट्विटर, या फिर इंस्टाग्राम. इन स्थानों पर समुदाय सबसे अच्छी तरह से जुड़ते हैं. इसलिए, स्व-परीक्षण के साथ-साथ, इसे लागू करने का भी यह सर्वोत्कृष्ट स्थान है.

यूएन न्यूज़: रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते धनराशि-अन्तराल समेत असमानताएँ और बाधाएँ, प्रगति में व्यवधान डाल रही हैं. क्या आपको लगता है कि इसका असर कमज़ोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है?

एमॉन मर्फ़ी: हमारे पास अनेक देशों में ऐसे स्पष्ट प्रमाण हैं कि जो महिलाएँ पिछले वर्षों में शारीरिक या यौन अन्तरंग साथी हिंसा का शिकार हुई हैं, उनमें उन लोगों की तुलना में एचआईवी होने की सम्भावना तीन गुना अधिक है, जिन्होंने ऐसी हिंसा का अनुभव नहीं किया है. इसलिए, इस क्षेत्र पर ध्यान देने की ज़रूरत है. यही बात असमानताओं के मुद्दे पर भी लागू होती है. 

इसलिए, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, लिंग आधारित हिंसा को समाप्त करने के लिए काम करना, एचआईवी के प्रति महिलाओं की संवेदनशीलता को कम करके एक बड़ा बदलाव लाने में सहायक होगा.

हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सभी महिलाओं को यौन प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल, प्रसव-विरोधी देखभाल व बायो-मेडिकल उपकरण, व्यवहारिक सांस्कृतिक और संरचनात्मक हस्तक्षेप, दोनों को एक साथ लाने वाले कार्यक्रमों सहित, सेवाओं तथा सहायता की पूरी श्रृंखला तक पहुँच हासिल हो.

यूएन न्यूज़: तो 2030 तक एड्स ख़त्म करने के सम्बन्ध में भारत ने क्या प्रगति की है? क्या आपको लगता है कि अन्य देश, चुनौतियों से निपटने और समाज के सबसे वंचित वर्गों तक पहुँचने के मामले में भारत से कुछ सीख सकते हैं?

एमॉन मर्फ़ी: हम देशों से लगातार, कई क्षेत्रों में भारत के उदाहरण से सबक़ सीखने को कह रहे हैं, विशेष रूप से, उसके अनूठे रोकथाम मॉडल से, जो भारत में काफ़ी समय से मौजूद है. यह सामाजिक अनुबन्ध पर केंद्रित है.

वर्तमान में भारत, अपनी एड्स प्रतिक्रिया का 95% वित्तपोषण भी स्वयं करता है, जो एक मज़बूत राष्ट्रीय स्वामित्व दर्शाता है. 

लेकिन साथ ही, भारत को  महत्वपूर्ण नए नवाचारों का विस्तार करने की आवश्यकता है. भारत में कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए स्व-परीक्षण PrEP को नए एजेंडे का हिस्सा बनने की आवश्यकता है, ताकि यह इन वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके.

उज़बेकिस्तान के ताशकन्त में, एचआईवी पॉज़िटिव एक नौ वर्षीय लड़की, यूनीसेफ़ समर्थिक एक कार्यक्रम में चित्रकारी करते हिुए.
© UNICEF/Giacomo Pirozzi

यूएन न्यूज़: संक्षेप में कहना हो तो एड्स को समाप्त करने के 2030 लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु, एशिया-प्रशान्त क्षेत्र की क्या तीन मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए?

एमॉन मर्फ़ी: सबसे पहले, प्रमुख आबादी पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे उन सेवाओं तक पहुँच सकें. हमें नीति, विधायी और सामाजिक कार्य प्रणालियों की आवश्यकता है, ताकि ऐसा वातावरण बनाया जा सके जिसमें वे अधिक से अधिक समर्थित महसूस करें. 

हमें, स्व-परीक्षण, बड़े पैमाने पर उपचार सेवाओं जैसेकि रोकथाम के आधुनिक उपाय भी मुहैया करवाने होंगे. इसके लिए, PrEP का विस्तार करने की आवश्यकता है, जो बहुत से देशों में असरदार साबित हो चुका है. जिन देशों ने इसे बड़े पैमाने पर अपनाया है, वहाँ नए संक्रमणों में भारी गिरावट देखी जा रही है. इसलिए, यह देश भर में उपलब्ध होना चाहिए, न कि केवल पायलट परीक्षणों या पायलट परियोजनाओं में. 

दूसरा क्षेत्र स्व-परीक्षण है - यह कुछ ऐसा है जिसे निश्चित रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है. और हम ऐसा कर सकते हैं. कोविड के दौरान हमने इसकी सफलता स्पष्ट देखी कि किस तरह लोग आसानी से स्व-परीक्षण कर सकते हैं. यह एचआईवी के लिए भी अहम है. सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि लोग अपनी स्थिति जानकर निर्णय ले सकते हैं कि ख़ुद को सुरक्षित रखने और संचरण को रोकने के लिए उन्हें किस रास्ते पर जाना है.

आख़िर में, हमें सामुदायिक नेतृत्व को प्राथमिकता देनी होगी. स्वास्थ्य सेवाएँ तभी असरदार साबित होती हैं जब वे समुदायों के साथ साझेदारी में काम करती हैं. एचआईवी पीड़ितों को एक सुरक्षित एवं गोपनीय कलंक-मुक्त वातावरण प्रदान करना और आबादी को जोखिम से दूर रखना. 

इसके साथ ही इन संगठनों के लिए धनराशि की विश्वसनीय घरेलू उपलब्धता भी बेहद आवश्यक है, जिससे कमज़ोर व हाशिए पर धकेले गए समुदायों की मदद हो सके.

तो, ये तीन शीर्ष क्षेत्र हैं. यदि हम इसे कार्यान्वित होते देखते हैं, तो एशिया-प्रशान्त क्षेत्र, पटरी पर वापस आ सकता है, कार्रवाई में व्यावधान को रोका जा सकता है और नए संक्रमणों में गिरावट एवं अधिकाधिक लोगों तक उपचार पहुँचाना सम्भव होगा.