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ज़म मुआन वुंग को 9 वर्ष की उम्र में, म्याँमार स्थित अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

अपने घरों से दूर जबरन विस्थापितों को, भारत में मिला एक घरौंदा

UNHCR India
ज़म मुआन वुंग को 9 वर्ष की उम्र में, म्याँमार स्थित अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

अपने घरों से दूर जबरन विस्थापितों को, भारत में मिला एक घरौंदा

प्रवासी और शरणार्थी

संय़ुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का भारत कार्यालय, सरकार के साथ मिलकर शरणार्थियों तक सहायता पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि विस्थापित हुए लोगों के लिए एक गरिमामय जीवन सुनिश्चित किया जा सके. यूएन एजेंसी ने इस वर्ष शरणार्थी दिवस पर, शरणार्थियों की सहनसक्षमता और हार ना मानने के उनके जज़्बे को दर्शाने के लिए सोशल मीडिया के ज़रिये उनके अनुभवों को साझा किया है. इन्हीं में से कुछ शरणार्थियों पर एक नज़र... 

ज़म मुआन वुंग को म्याँमार में चिन राज्य के टेडिम शहर की ख़ूबसूरत वादियों से जबरन विस्थापित होना पड़ा. अब उन्हें घर के रूप में, दिल्ली में एक नई जगह मिल गई है. 

ज़म बताती हैं, "नौ साल की उम्र में, आप हँसते-खेलते हैं. लेकिन मेरी हक़ीकत कुछ और ही थी. जिस दिन उन सैनिकों ने मेरे घर में घुसकर, मेरे परिवार को धमकाया, गालियाँ दीं, उसी दिन मेरा बचपन मानो ख़त्म हो गया था." 

लेकिन ज़म ने अपने अतीत से परेशान होकर, भविष्य की उम्मीद नहीं खोई. ज़म की माँ व बहनों ने सब कुछ पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने का कठिन फ़ैसला लिया. उनका यह सफ़र उन्हें भारत ले आया. 

लेकिन यह संघर्ष का अन्त नहीं था.

उन्होंने बताया, "हम यहाँ केवल उम्मीद लेकर आए थे. हमें सहारा देने के लिए तीन बेटियों वाली हमारी माँ को, घरेलू सहायक के रूप में काम मिल गया. मगर, उन्हें हमें एक छात्रावास में भर्ती करवाना पड़ा.” 

“एक नए देश में उन्हें अलविदा कहना मुश्किल था, लेकिन हम नहीं जानते थे कि यह हमारी अन्तिम मुलाक़ात होगी..." 

कई साल पहले उस आख़िरी मुलाक़ात के बाद से ज़म, अपनी माँ से नहीं मिलीं हैं. रूंधे गले से याद करते हुए वो बताती हैं, "हमें आगे बढ़ना था, यह कठिन था, लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था.” 

“मेरी बहन, जो मेरी शक्ति थीं, उन्होंने ज़िम्मेदारी सम्भाली, काम खोजा और हमारा पालन-पोषण किया.”

तमाम मुश्किलों का सामना करने के बावजूद, बहनें एक-दूसरे की ताक़त बनीं. वो दिल्ली में एक छोटे से घर में रहने लगे. 

ज़म की बहन ने परिवार की मदद के लिए एक कॉलिंग एजेंट के रूप में काम करना शुरू किया, वहीं ज़म भी समय-समय पर दुभाषिये का काम करके उनकी मदद करती व साथ ही,  छात्रवृत्ति की मदद से विश्वविद्यालय में पढ़ने भी जाने लगीं.

उन्हें भारत की धरती पर क़दम रखे अब 12 साल हो चुके हैं.ज़म एक कोमल मुस्कान के साथ कहती हैं, "लेकिन आप जानते हैं? उम्मीद के मायने हैं, कभी हार न मानना, और मैं इसका जीता-जागता सबूत हूँ."

ज़म अकेली नहीं है जिन्हें अपने घर से दूर, भारत में उम्मीद मिली है. उनकी कहानी अनगिनत अन्य शरणार्थियों और आश्रय चाहने वालों में से एक है, जिन्हें पलायन करने और अन्य देश में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. 

इराक़ में जन्में अब्दुलमोहिमेन, केवल दो साल के थे, जब उनके परिवार को उत्पीड़न के डर से अपनी मातृभूमि से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
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घर की नई परिभाषा

अब्दुलमोहिमेन भी उन्ही में से एक हैं. इराक़ में जन्में अब्दुलमोहिमेन घर की यादें अपने दिल में समेटे हुए हैं. केवल दो साल की उम्र में उनके परिवार को उत्पीड़न के डर से अपनी मातृभूमि से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें फिर 2010 में शिक्षा के लिए भारत भेज दिया गया.

पुणे विश्वविद्यालय से कम्प्यूटर प्रबन्धन में स्नातकोत्तर करने के बाद, अब्दुलमोहिमेन अपना करियर शुरू करने के लिए उत्सुक थे. लेकिन उनके सपने पूरे नहीं हो सके. 

जैसे ही उनकी पढ़ाई पूरी हुई, उनके परिवार को एक और कठोर फ़ैसला लेना पड़ा. इराक़ में स्थिति अभी भी बहुत गम्भीर थी. इसलिए उन्होंने भारत में एक शरणार्थी के रूप में पंजीकरण करवाया और उस क्षण, UNHCR के साथ उनकी यात्रा शुरू हुई.

अब्दुलमोहिमेन ना केवल एक नए देश में घुल-मिल गए, बल्कि फले-फूले भी. उन्होंने गुज़र-बसर के लिए वेटर, बॉलीवुड एक्स्ट्रा, लाइन प्रोड्यूसर जैसे कई काम किए. फिलहाल  वो एक कम्पनी में बिज़नेस मैनेजर के रूप में कार्यरत हैं. 

एक शरणार्थी का लेबल लगा होने के बावजूद, अपनी वर्तमान भूमिका में, वो प्रगति कर रहे हैं और उनका सफ़र, अनजान डगर में सन्तुष्टि पाने का रहा है. 

वो कहते हैं, "यह अलग-अलग भावनाओं का मिश्रण था; यहाँ के लोगों, भाषा, संस्कृति और भोजन के स्वाद से तालमेल बिठाने में मुझे 6-12 महीने लगे.” 

पंजाब और राजस्थान के कुछ दोस्त अब उनका परिवार बन गए हैं, जिन्होंने उन्हें देश की विविध संस्कृति व भाषाओं से परिचित कराया और घर जैसा महसूस कराया.

अब्दुलमोहिमेन के अनुभव ने उन्हें 'घर' की एक नई परिभाषा सिखाई है. 

"मेरे लिए, जहाँ आप सुरक्षित हैं, जहाँ आपका परिवार है, जहाँ आप अपना भविष्य बना सकते हैं, और जहाँ आपके आसपास अच्छे लोग हैं, वही आपका घर है." 

उन्हें अपने परिवार की बहुत याद आती है, लेकिन, भारत में बनाए गए दोस्तों और गोद ली हुई अपनी पाँच बिल्लियों, क्वीन, मेयो, अलिंडा, बैला और पिका की देखभाल करने में सुक़ून पा लेते हैं.