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ट्रांसजैंडर के लिए मॉडलिंग एजेंसी: चुनौतियों के बीच से निकलता रास्ता

रूद्रानी छेत्री, अन्य ट्रान्सजेंडर मॉडलों के साथ
UNDP India/Srishti Bhardwaj
रूद्रानी छेत्री, अन्य ट्रान्सजेंडर मॉडलों के साथ

ट्रांसजैंडर के लिए मॉडलिंग एजेंसी: चुनौतियों के बीच से निकलता रास्ता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की पत्रिका ‘Inspiring India’ में अनेक महिलाओं की कामयाबी की अनूठी आपबीती और कहानियाँ पेश की गईं है. इन्हीं में से एक कहानी, कुछ ऐसे ट्रांसजैंडर लोगों की एक मॉडलिंग एजेंसी पर आधारित है, जो सभी समस्याओं व पूर्वाग्रहों का सामना करते हुए, फ़ैशन की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत हैं.

भारत की राजधानी नई दिल्ली में रहने वाली एक ट्रांसजैंडर कार्यकर्ता, रुद्रानी छेत्री कहती हैं, “हम हार नहीं मानेंगे. हम केवल वही मांग रहे हैं, जो एक सिस-जैंडर विषमलैंगिक (heterosexual) व्यक्ति को मिल रहा है, उससे अधिक हमें कुछ नहीं चाहिए. हम इससे कम पर राज़ी नहीं होंगे. मेरे लिए समानता के यही मायने हैं.”

एक मॉडल और अभिनेता रूद्रानी छेत्री ने, 2015 में ट्रान्सजैंडर व्यक्तियों के लिए, ‘बोल्ड’ नामक भारत की पहली मॉडलिंग एजेंसी स्थापित की थी, लेकिन काम ढूंढना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है.

उन्होंने बताया, "एक व्यक्ति ने एक बार मुझसे कहा था कि मैं एक शानदार काम कर रही हूँ, लेकिन उसके ग्राहक, ट्रांस मॉडल के लिए तैयार नहीं हैं."

एक मॉडल और अभिनेता रूद्रानी छेत्री ने, 2015 में ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों के लिए, ‘भारत की पहली मॉडलिंग एजेंसी की स्थापना की थी.
UNDP India/Srishti Bhardwaj

2011 की जनगणना में, भारत में चार लाख 88 हज़ार लोगों की ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के रूप में पहचाना गया है. यह संख्या भी शायद कम ही होगी, चूँकि इस बात की प्रबल सम्भावना है कि अनेक ट्रांसजैंडर लोग, जनगणना अधिकारी के सामने आने से कतराएंगे.

रुद्रानी छेत्री ने ‘बोल्ड’ की शुरुआत, पहचान बढ़ाने और पूर्वाग्रहों को दूर करने के उद्देश्य से की थी. उन्होंने बताया कि, "हमें अपनी पैरोकारी के लिए पारम्परिक तरीक़ों पर क्यों निर्भर रहना पड़ता है?"

उनकी एजेंसी, ‘मित्र ट्रस्ट’ के परिसर से संचालित होती है, जोकि दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में सीतापुरी में स्थित, एक समुदाय-आधारित संगठन और आश्रय है. इसका संचालन भी रुद्रानी ही करती हैं.

इसके लिए, उन्हें किराए की इमारत खोजने में छह महीने लग गए, क्योंकि अधिकतर लोग अपने मकान, ट्रांजैंडर व्यक्तियों को किराए पर देने में हिचकते थे. उन्होंने बताया कि इलाक़े के लोगों को यह समझने में एक और साल का समय लग गया कि वे अपराधी या बुरे लोग नहीं हैं.

'अधिकारों से वंचित'

2017 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की रिपोर्ट में पाया गया कि 92 प्रतिशत ट्रांसजैंडर व्यक्ति, भारत में किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिविधि में भाग लेने के अधिकार से वंचित हैं.

इससे यह भी पता चला कि बहुत से लोग सहपाठियों और शिक्षकों द्वारा धमकाए जाने के कारण अपनी शिक्षा अधर में ही छोड़ देते हैं. अध्ययन में पाया गया कि उन्हें, योग्यता के बावजूद अक्सर रोज़गार से वंचित कर दिया गया, जिसके कारण उन्हें भीख मांगने या यौनकर्मी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा.

ट्रान्सजेंडर मॉडल, तितली, रैम्प पर जाने की तैयारी कर रही हैं.
UNDP India/Srishti Bhardwaj

‘बोल्ड’ में काम करने वाले मॉडलों से प्राप्त जानकारी भी कुछ इसी ओर इशारा करती है. झारखंड निवासी ‘तितली’ नर्स बनने के लिए पढ़ाई कर रही थीं, मगर वह कई वर्षों तक लोगों के तानों व धमकियों का सामना करती रहीं.

उनसे जब यह सहन नहीं हुआ, तो उन्होंने शिक्षा छोड़ दी. फिर एक दोस्त ने उन्हें रुद्रानी छेत्री के बारे में बताया, तो तितली ने अपना बैग पैक किया और दिल्ली चली आईं.

इस एजेंसी में कई ऐसे ट्रांसजैंडर लोग भी हैं, जो दिल्ली के स्थानीय निवासी ही हैं, लेकिन उन्हें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. दीपिका का अपने घर के भीतर और बाहर मज़ाक उड़ाया जाता था, इसलिए उन्होंने सैक्स वर्कर का पेशा अपना लिया था.

अंजलि कहती हैं कि उपहास तब और बढ़ गया जब उन्होंने अपने बाल बढ़ा लिए और महिलाओं के कपड़े पहनने शुरू कर दिए. रुद्रानी छेत्री के साथ काम करने वाली बेला, तब अपने परिवार को छोड़कर भाग आईं, जब उनके परिवार ने उन पर "सामान्य" जीवन जीने का दबाव डाला.

NHRC के अध्ययन के अनुसार, केवल 2 प्रतिशत ट्रांसजैंडर लोग ही अपने माता-पिता के साथ रहते हैं. रुद्रानी छेत्री बताती हैं, "मेरे पिता मुझे दूध पिलाने के लिए ट्रांस लोगों का हवाला देते थे, 'अगर दूध नहीं पियोगे, तो ये लोग आपको ले जाएंगे.' अगर मैं एक सिस-जैंडर व्यक्ति होती, तो बड़ी होकर ट्रांसफ़ोबिक बन जाती.”

रैम्पवॉक का अभ्यास करती, ट्रान्सजेंडर मॉडल, बेला.
UNDP India/Srishti Bhardwaj

समावेशन के लिए संवाद 

लेकिन अब वो मनोरंजन उद्योग में आए बदलाव से उत्साहित हैं. वह कहती हैं कि फ़िल्मों में ट्रांस किरदारों को उपहास की वस्तु के रूप में चित्रित किया जाता था, उनकी पहचान केवल "हँसाने-उपहास करने" या "एक बुरे व्यक्ति या...एक बदसूरत व्यक्ति" के रूप में ही थी.”

लेकिन 2019 में, उन्हें विधवाओं को लेकर बनी एक फ़िल्म, ‘द लास्ट कलर’ में एक प्रमुख भूमिका मिली, जिसे समीक्षकों ने बेहद सराहा.

तब से, वह उद्योग में बहुत से ऐसे लोगों से मिलती रही हैं, जिन्होंने कभी किसी ट्रांसजैंडर व्यक्ति से बात नहीं की. वह कहती हैं, “अब चूँकि वो मेरे बारे में जानते हैं, तो अगर उनकी स्क्रिप्ट में ट्रांसजैंडर की भूमिका होती है, तो वो परामर्श के लिए मुझे फ़ोन करते हैं."

"तो किसी न किसी तरह सलाह लिए जाने की शुरुआत हो चुकी हैं. बहुत सारी आने वाली फिल्में ट्रांस-जैंडर लोगों और उनकी पीड़ा के बारे में बात कर रही हैं, उन्हें रोज़गार क्यों नहीं मिल रहा है या रोज़गार होने पर उन्हें वो क्यों छोड़ना पड़ता है."

उनका मानना ​​है कि इसका एकमात्र निदान है, संवाद, विशेषकर हिंसा के अपराधियों के साथ बातचीत करना ज़रूरी है.

"मैं एक बार जब नया साल मनाने बाहर गई थी तो मुझे एक पुलिसकर्मी ने पीटा था...कुछ साल पहले नौ लड़कों ने मुझ पर हमला किया था...लेकिन, अगर हम केवल उन लोगों के साथ जुड़ेंगे, जो हमारे समुदाय के प्रति संवेदनशील हैं, जैसेकि विकास भागीदार, तो हमारा सन्देश केवल कुछ लोगों तक ही सीमित रह जाएगा.”

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.