भारत: कोविड-19 की जवाबी कार्रवाई में 'थर्ड जैण्डर' समावेश

लीज़ा प्लास्टिक कचरा संग्रहण के लिये वाहन संचालक का काम करती हैं.
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लीज़ा प्लास्टिक कचरा संग्रहण के लिये वाहन संचालक का काम करती हैं.

भारत: कोविड-19 की जवाबी कार्रवाई में 'थर्ड जैण्डर' समावेश

एसडीजी

कोविड-19 के प्रसार से ट्रान्सजैण्डर व्यक्तियों को आजीविका के संकट का सामना करना पड़ा. समारोहों व आवाजाही पर प्रतिबन्धों के कारण, 'थर्ड जैण्डर' लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा. ऐसे में, भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन कार्यक्रम में ट्रान्सजैण्डरों को शामिल करके, इस संकट के समय में उन्हें जीवन की एक नई राह दिखाई.

25 वर्षीय निरंजल मलिक यानि लीज़ा एक ट्रान्सजैण्डर के रूप में अपनी पहचान करती हैं. लीज़ा अन्य ट्रान्सजैण्डरों की तरह, अपनी लैंगिक पहचान के कारण समाज में बहिष्कृत होकर, हाशिये पर रहने के लिये मजबूर हैं.

लीज़ा बताती हैं, “किशोरावस्था में मुझे अहसास हुआ कि मेरी पहचान पुरुष या महिला के रूप में नहीं है. इससे मुझे बहुत आलोचना और बहिष्कार का सामना करना पड़ा. हालाँकि मेरे परिवार ने मुझे स्वीकार किया, लेकिन समाज ने नहीं. मुझे स्कूल जाने से रोका गया. पड़ोसियों ने मेरे माता-पिता को परेशान करना शुरू कर दिया. मुझे अन्ततः अपना घर छोड़ना पड़ा.”

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में ट्रान्सजैण्डर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है. इस निर्णय के तहत, सरकार को ट्रान्सजैण्डर लोगों को अन्य अल्पसंख्यकों के अनुरूप रोज़गार अवसरों और शिक्षा में कोटा प्रदान करने के साथ-साथ प्रमुख सुविधाएँ प्रदान करने का आदेश दिया गया है. लेकिन फिर भी, LGBTQI समुदाय के प्रति भेदभाव जारी है – और अक्सर देह व्यापार, शोषण, क्रूरता एवं अपमान की दुखद कहानियाँ सामने आती रहती हैं.

लीज़ा कहती हैं, “हर बार जब मुझे रक़म मांगने के लिये लोगों के पास जाना पड़ता था, तो मेरी गरिमा को ठेस पहुँचती थी. मुझे निराशा घेर लेती थी कि अब मेरे लिये ऐसा करते रहना असम्भव है. भीख मांगते समय, मैंने देखा कि लोग प्लास्टिक की बोतलों की तरह री-सायकिल होने वाले कचरे को उठाकर बाज़ार में बेचते हैं. मुझे लगा कि क्यों न मैं भी ऐसा करके, कम से कम अपनी आजीविका कमा लूँ. यह भीख मांगने से तो बेहतर होगा.”

लीज़ा, भारत में यूएनडीपी के प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत, वर्तमान में सफ़ाई साथी समूह के हिस्से के रूप में घर-घर कचरा संग्रह पर काम कर रहे एक वाहन ऑपरेटर के रूप में काम करती हैं. इसमें प्लास्टिक कचरे को सूखे कचरे से अलग करके Material Recovery Facility (MRF) में बेचा जाता है.

महामारी का संकट

ट्रान्सजैण्डर पिया कपूर, दिल्ली में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं.
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ट्रान्सजैण्डर पिया कपूर, दिल्ली में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं.

ट्रान्सजैण्डर पिया कपूर के लिये आजीविका के अल्प साधनों के मिटने से कोविड-19 महामारी का संकट, उनके जैसे ट्रान्सजैण्डर लोगों के लिये भयानक त्रासदी समान रहा है.

कोविड-19 से पहले भी, बुनियादी सेवाओं तक पहुँच के लिये लक्षित नीतियों की कमी के कारण समुदाय पहले से ही गम्भीर ग़रीबी में जीवन-यापन करता रहा था. अधिकतर बड़ी शादियों या मन्दिरों में नृत्य करके, गीत गाकर वे थोड़ी बहुत धनराशि कमाते थे.

अब भारत की राजधानी दिल्ली के उत्तम नगर इलाक़े में एक स्थानीय एनजीओ के साथ समन्वयक के रूप में काम कर रही, पिया कपूर बताती हैं, “बहुत सारे ट्रान्सजैण्डर लोग भीख मांगते हैं, यौनकर्मी हैं या फिर शादी जैसे समारोहों में नृत्य करने जाते हैं. महामारी के कारण इनमें से अधिकतर गतिविधियों पर विराम लग गया है. मेरे समुदाय के बहुत सारे लोग भूख से मर रहे थे.”

18 महीने से अधिक समय से चली आ रही इस भयंकर महामारी के बीच, केन्द्र और राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही हैं कि ग़रीबों को चावल, गेहूँ, दाल व अन्य अनाज मुफ़्त या भारी रियायती दर पर सूखा भोजन राशन मिल सके, लेकिन इस सेवा में कई कमियाँ भी हैं. पिया कपूर ने बताया, "राशन प्राप्त करना सबसे बड़ी समस्या थी, कई लोगों के पास राशन कार्ड ही नहीं थे.” 

अगस्त 2020 से मार्च 2021 तक, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO), भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से छह राज्यों - गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम शुरू किया.

इसके तहत, एलजीबीटीक्यू समुदाय की मदद करने और उन्हें पेंशन, बीमा योजनाओं व कौशल विकास कार्यक्रमों जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँचने में सक्षम बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.  Strengthening access to social protection measures among PLHIV and key populations  नामक ये कार्यक्रम, चयनित राज्यों में कैटलिस्ट मैनेजमेंट सर्विसेज (सीएमएस) प्राइवेट लिमिटेड के साथ साझेदारी में लागू किया गया है.

यह कार्यक्रम छह राज्यों में एलजीबीटीक्यू समुदाय के 6 हज़ार लोगों तक पहुँचने में सफल रहा है और इसके ज़रिये उन्हें सरकारी लगभग 26 करोड़ रूपये (3.48 मिलियन डॉलर) की रक़म वाले सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच हासिल हुई. इनमें से कुछ लाभ, सरकार से नक़दी के सीधे हस्तान्तरण से सम्बन्धित थे, जबकि अन्य लाभ सहायता योजनाओं के सन्दर्भ में गई सहायता के रूप में थे..

UNDP के इस कार्यक्रम में स्वयंसेवकों और सामुदायिक नेताओं के प्रशिक्षण और सरकार द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य, जीवन एवं मामूली प्रीमियम पर उपलब्ध आकस्मिक बीमा योजनाओं तक पहुँचने पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया है.

नए कौशल

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के पाली बाज़ार में रहने वाले भोला (बदला हुआ नाम) ने बताया, "मैंने नहीं सोचा था कि हम जैसे लोगों के लिये राशन कार्ड या कोई सरकारी लाभ मिलना सम्भव है."

अपने राशन कार्ड के साथ, भोला.
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यह उनके लिये एक बड़ी राहत है और अब वह सिलाई सीखने और नए कौशल प्रशिक्षण लेने के लिये प्रेरित हैं.

21 साल की छोटी उम्र में ही, मोलू अभाव और बीमारी का सामना कर रहे हैं. जबरन स्कूल छोड़ने को मजबूर, हाल ही में एचआईवी संक्रमित होने पर, वो  मुश्किल से ही गुज़र-बसर लायक़ आमदनी कमा पाते हैं. 

उन्होंने बताया, "दरअसल, मैं एचआईवी संक्रमण के परामर्श के लिये जाता था, जहाँ मैंने इस प्रशिक्षण अवसर के बारे में सुना. यूएनडीपी की इस पहल की मदद से, उन्होंने राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (एनएसडीसी) द्वारा प्रायोजित एक ब्यूटीशियन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला लिया.

मोलू को अपने नए कौशल से बहुत उम्मीदें हैं और वह महामारी के ख़त्म होने के इन्तजार में हैं, जिससे लोग फिर से सैलून में आना शुरू करें. 

उनके मुताबिक़, "यह सिर्फ़ एक कामकाज नहीं बल्कि मेरे लिये एक जुनून है."

भारत में यूएनडीपी, ट्रान्सजैण्डर समुदाय के लिये कल्याणकारी उपायों के कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल है. इसके लिये, भारत सरकार व राज्य सरकारों को समर्थन देने के लिये ट्रान्सजैण्डर कल्याण पर एक फ्रेमवर्क दस्तावेज़ भी तैयार किया गया है.

एचआईवी और एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम के हिस्से के रूप में यूएनडीपी, राज्य के स्वास्थ्य और समाज कल्याण विभागों के साथ साझेदारी में, गुजरात, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ट्रान्सजैण्डर समुदाय के लिये कोविड-19 टीकाकरण शिविर भी आयोजित करता है. 

इस सम्बन्ध में, हाल के वर्षों में, भारतीय दण्ड संहिता के अनुच्छेद 377 का ग़ैर-अपराधीकरण होने से बहुत प्रगति हुई है. इसमें उस दण्डात्मक भाग को हटा दिया गया है जिसका उपयोग, समान लिंग के लोगों को सहमति से यौन सम्बन्ध बनाने से रोकने के लिये किया जा सकता है.

एक और सकारात्मक क़दम है - 2019 में ट्रान्सजैण्डर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम है, जो उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, आवास, अन्य तक समान पहुँच प्रदान करता है.

भारत में एलजीबीटीक्यू आबादी का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है, लेकिन सरकार ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामे में ऐसे व्यक्तियों की संख्या लगभग 25 लाख आँकी है, जो समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से यौन समबन्धों को अपराध की क्षेणी से मुक्त करने की मांग कर रहे हैं.

वर्ष 2011 की जनगणना में, ट्रान्सजैण्डर आबादी 4 लाख 87 हज़ार 803 दर्ज की गई थी, लेकिन सरकार का कहना है कि यह सम्भव है कि कुछ ट्रान्सजैण्डर लोगों ने अपनी पसन्द के मुताबिक़ ख़ुद को पुरुष या महिला के रूप में पहचान दे दी हो.