ब्रिटेन: आपराधिक न्याय प्रणाली में 'व्यवस्थागत नस्लवाद, एक गम्भीर चिन्ता'

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ब्रिटेन में व्यवस्थागत, संस्थागत और ढाँचागत नस्लवाद पर चिन्ता जताते हुए आगाह किया है कि देश में अफ़्रीकी मूल के लोगों को अब भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, और उनके बुनियादी अधिकारों का क्षरण हो रहा है.
अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों पर विशेषज्ञों के एक कार्यकारी समूह ने ब्रिटेन की अपनी आधिकारिक यात्रा के समापन पर शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी किया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आपराधिक न्याय प्रणालियों में नस्लीय विसंगतियों से निपटने में मिली विफलता, दंडमुक्ति की भावना, पुलिस हिरासत में मौतों, और औचक रोककर तलाशी लेने की पुलिस रणनीति की ‘अमानवीय प्रकृति’ पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है.
#UK: ‘Will this never end?’ #Racism in the #UnitedKingdom is structural, institutional & systemic, UN experts say, warning that people of African descent in the country continue to encounter racial discrimination and erosion of their fundamental rights.
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मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों द्वारा नस्लीय भेदभाव के मामलों अन्याय की पीड़ा पर साक्ष्य जुटाए हैं.
उनका कहना है, “हम यात्रा के दौरान अफ़्रीकी मूल की एक महिला से मिले, जिसने ये उदगार व्यक्त किए: क्या इसका कभी अन्त होगा?”
यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि 2007-08 के वित्तीय संकट के बाद, ब्रिटेन में पिछले एक दशक से आर्थिक मितव्ययिता उपायों से नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव और असहिष्णुता के अन्य रूप गहरे हुए हैं.
अफ़्रीकी मूल के लोगों को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके बुनियादी अधिकार कमज़ोर होते हैं.
“अफ़्रीकी मूल के लोगों के नज़रिये, ब्रिटेन में नस्लवाद ढाँचागत, संस्थागत और व्यवस्थागत है.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, राज्यसत्ता व लोक संस्थाओं, निजी सैक्टर और समाज के साथ उनका अनुभव बताता है कि मौजूदा हालात में नस्लीय पदक्रम (hierarchies) और पनपता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बताया कि अफ़्रीकी मूल के लोगों को निशाना बनाने के कृत्य अब भी होते हैं, और ब्रिटेन के विभिन्न हिस्सों में यह अनुभव समान है.
बताया गया है कि भुक्तभोगियों के पास, न्याय व्यवस्था या फिर प्रशासनिक एजेंसियों के ज़रिए कष्ट निवारण का कोई आश्वासन नहीं है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि दासता के शिकार अफ़्रीकी लोगों के व्यापार और तस्करी पर मुआवज़ा दिए जाने की दिशा में प्रयास आगे बढ़े हैं, जोकि स्वागतयोग्य है.
इस क्रम में, वर्किंग समूह ने सरकार समेत सभी हितधारकों को पुनर्वास, पुनर्बहाली और मेल-मिलाप पर और अधिक प्रयास करने का आग्रह किया है.
वर्किंग समूह की प्रमुख कैथरीन नामाकुला ने सुलभ, स्वतंत्र और कारगर शिकायत तंत्रों को अनिवार्य बताया है, जोकि नस्लवाद से निपटने, पुलिस की जवाबदेही और सर्वजन के लिए निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई सुनिश्चित करने और 'विंडरश प्रकरण' से प्रभावित सभी लोगों की पीड़ा पर मरहम लगाने के लिए अहम होगा.
विंडरश मामला लगभग पाँच वर्ष पहले का है, जब कैरीबियाई देशों में जन्मे और ब्रिटेन लाए गए बच्चों से देश के गृह मंत्रालय ने नागरिकों के तौर पर अपना दर्जा साबित करने के लिए कहा.
इनमें से अनेक लोग पिछले 50 वर्षों से ब्रिटेन में रह रहे थे, मगर कुछ ने कभी औपचारिक रूप से नागरिकता ग्रहण नहीं की और ना ही पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था.
इनमें बड़ी संख्या में लोगों को देश निकाला दे दिया गया, या फिर बताया गया कि उन्हें ब्रिटेन से बाहर भेज दिया जाएगा, जबकि अपने मूल देश में क़ानूनी रूप से ब्रिटेन के अधीनस्थ ही थे.
सैकड़ों लोगों ने पीड़ा सही, धमकियों का सामना किया और उन्हें अधिकारों से ही वंचित कर दिया गया, जिसके बाद 2018 में तत्कालीन गृह मंत्री को अपना त्यागपत्र देना पड़ा था.
वर्किंग समूह ने अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान लन्दन, बर्मिंघम, मैनचेस्टर और ब्रिस्टल का दौरा किया. मानवाधिकार विशेषज्ञ अपने निष्कर्षों व अनुशंसाओं के साथ यूएन मानवाधिकार परिषद में इस वर्ष सितम्बर में अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे.
यह वर्किंग समूह, वर्ष 2002 में दक्षिण अफ़्रीका के डरबन में नस्लवाद के विरुद्ध विश्व सम्मेलन के बाद स्थापित किया गया था.
इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.