ब्रिटेन: श्वेत वर्चस्व को सामान्य बताने की कोशिश करने वाली रिपोर्ट की निन्दा

ब्लैक लाइव्स मैटर आन्दोलन के समर्थन में, जून 2020 में, लन्दन में प्रदर्शन
Unsplash/James Eades
ब्लैक लाइव्स मैटर आन्दोलन के समर्थन में, जून 2020 में, लन्दन में प्रदर्शन

ब्रिटेन: श्वेत वर्चस्व को सामान्य बताने की कोशिश करने वाली रिपोर्ट की निन्दा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ब्रिटेन सरकार द्वारा समर्थित एक रिपोर्ट की यह कहते हुए निन्दा की है कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों को और ज़्यादा झूठ के आवरण में, व तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और इससे नस्लवाद व नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा मिल सकता है.

अफ्रीकी मूल के लोगों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के एक कार्यकारी समूह ने सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, “वर्ष 2021 में, नस्ल और जातीयता पर एक ऐसी रिपोर्ट पढ़ना आश्चर्यजनक है जिसमें नस्लीय आँकड़ों व आम धारणाओं को तथ्य बनाकर पेश किया गया है, इसमें तथ्य तोड़-मरोड़ कर पेश किये गए हैं और आँकड़े व अध्ययन, ग़लत तरीक़े से प्रस्तुत करके, अफ्रीकी मूल के लोगों पर चोट की गई है.”

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यह रिपोर्ट नस्लीय व जातीय विषमताओं पर आयोग ने 31 मार्च को पेश की जिसका गठन, ब्रिटेन सरकार ने, गत वर्ष, नस्लभेद विरोधी –‘ ब्लैक लाइव्स मैटर’ नामक आन्दोलन के तहत प्रदर्शन भड़कने के बाद किया था.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ये भी कहा है कि रिपोर्ट में ऐसे दावे करने के लिये सन्देहपूर्ण सबूत पेश किये गए हैं जो श्वेत वर्चस्व को सही ठहराते हैं और इसके लिये ऐसे जाने-पहचाने तर्क दिये गए हैं जिनमें सदैव ही नस्लीय क्रम को जायज़ ठहराया जाता है.

“संस्थागत नस्लभेद पर व्यापक पैमाने पर किये गए शोध और सबूतों के बावजूद, श्वेत वर्चस्व को सामान्य बताने का प्रयास, दुर्भाग्य से, अतीत में हुई ज़्यादतियों को स्वीकार करने के अवसर और आगे बढ़ने की प्रक्रिया में किये गए व्यापक योगदानों को दरकिनार करने की एक कोशिश है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ब्रिटेन सरकार से रिपोर्ट के निष्कर्षों को, स्पष्ट रूप से रद्द करने और ऐतिहासिक तथ्यों की सटीक प्रस्तुति व प्रतिनिधित्व किये जाने का आहवान किया है, क्योंकि ये ऐतिहासिक तथ्य, अतीत की ज़्यादतियों और अत्याचारों के साथ जुड़े हुए हैं, विशेष रूप से दासता, दास बनाए गए अफ्रीकी लोगों की ख़रीद-फ़रोख़्त और उपनिवेशवाद के साथ.

वास्तविकताओं की अनदेखी

मानवाधिकार विशेषज्ञों के कार्यकारी समूह ने कहा है कि ब्रिटेन के आयोग की रिपोर्ट में, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं द्वारा संस्थागत नस्लभेद की पहचान और उसके विश्लेषण को नज़रअन्दाज़ कर दिया गया है. 

इनमें इस कार्यकारी समूह द्वारा 2012 में की गई समीक्षा, नस्लभेद के उन्मूलन पर समिति के निष्कर्षकारी विचार, और नस्लभेद के समकालीन रूपों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर की 2018 की रिपोर्ट भी शामिल हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में की गई इस टिप्पणी को भी रद्द कर दिया है कि ब्रिटेन में नस्लभेद की कुछ ज़ाहिर गतिविधियाँ हो सकती हैं, मगर संस्थागत नस्लभेद बिल्कुल भी नहीं है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि ज़रूरी नहीं है कि नस्लभेद विषमताएँ, नस्लवाद या नस्लीय भेदभाव से पनपती हों, मगर ऐसे ज़ोरदार सबूत हैं कि इन विषमताओं की जड़ें संस्थागत नस्लभेद और ढाँचागत भेदभाव में बैठी हुई हैं क्योंकि ये ढाँचागत हानियों का सामना करने वाले समुदायों की प्राथमिकताओं और वरीयताओं को प्रतिबिम्बित नहीं करतीं.

विशेषज्ञों का कहना है, “ये कहा जाना कि काले लोगों के अनुभव के केन्द्रीय कारक, संस्थागत व ढाँचागत भेदभावपूर्ण प्रथाएँ व माहौल के बजाय, पारिवारिक ढाँचा है - दरअसल ब्रिटेन में, अफ्रीकी मूल के लोगों व अन्य नस्लीय अल्पसंख्यकों की जीवन्त वास्तविकताओं को रद्द किया जाना है.”

एक शर्मनाक लेकिन जानी-पहचानी चाल

मानवाधिकार विशेषज्ञों के कार्यकारी समूह ने ये भी कहा है कि रिपोर्ट में, दासता को किसी परीकथा के रूप में पेश किया जाना, दरअसल दास बनाए गए अफ्रीकी लोगों के व्यापार के इतिहास को धोने की एक कोशिश है.

“ये एक शर्मनाक, मगर जानी-बूझी चाल है, जिसका सहारा वो लोग लेते हैं जिन्होंने, अपनी सम्पदा सीधे तौर पर, अन्य लोगों को दास बनाकर एकत्र की है, और ऐसा उन्होंने दासता को अवैध घोषित किये जाने के बाद से किया है.”

उन्होंने कहा, “दास बनाने वालों की क्रूर भूमिका को छुपाने, उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी जो दिमाग़ को चौंकाने वाली सम्पदा इकट्ठी की है, उसे छुपाने, और उन्होंने काले लोगों के शरीरों का शोषण करके जो सामाजिक पूंजी व राजनैतिक प्रभाव हासिल किये हैं, उसे छुपाने की कोशिश किया जाना, ऐतिहासिक वास्तविकता को ग़लत तरीक़े से पेश करने का सोचा-समझा प्रयास है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञ

अफ्रीकी मूल के लोगों पर मानवाधिकार विशेषज्ञों का कार्यकारी दल, संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं जो 2002 में स्थापित किया गया था. इस दल का शासनादेश, अफ्रीकी मूल के लोगों द्वारा अनुभव किये जाने वाली नस्लीय भेदभाव की समस्याओं का अध्ययन करना, और उनके ख़िलाफ़ होने वाले नस्लीय भेदभाव का ख़ात्मा करने के लिये प्रस्ताव पेश करना है.

इस कार्यकारी समूह में 5 मानवाधिकार विशेषज्ञ हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं हैं और ना ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है. वो अपनी व्यक्तिगत हैसियत में काम करते हैं और किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र हैं.