UNCTAD: नीतिगत ग़लतियों से भड़क सकती है – बदतरीन मन्दी

संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास संगठन (UNCTAD) ने सोमवार को एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि अगर कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में लागू व्यापक प्रभाव वाली वित्तीय और मुद्रा नीतियों को बहुत तेज़ी से नहीं बदला गया तो दुनिया एक वैश्विक मन्दी और एक दीर्घकालीन ठहराव की तरफ़ बढ़ती नज़र आ रही है.
अंकटाड की प्रमुख रेबेका ग्रिनस्पैन ने कहा है, “मन्दी के किनारे से क़दम पीछे हटाने के लिये, अब भी समय है.”
.@UNCTAD's Trade & Development Report 2022 projects global growth will slow to 2.2% in 2023 & warns of a global recession.
It calls for an urgent shift in policies & outlines actions to move the world economy in the right direction. https://t.co/eRuUBdcPNP
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UNCTAD
राजनैतिक इच्छा
उन्होंने कहा, “ये नीतिगत विकल्पों और राजनैतिक इच्छा का मामला है.”
उन्होंने ये भी ध्यान दिलाया कि कार्रवाई का मौजूदा स्तर, सर्वाधिक निर्बल हालात वाले लोगों को सबसे ज़्यादा प्रभावित कर रहा है.
अंकटाड ने आगाह किया है कि नीति जनित वैश्विक मन्दी, 2007-2009 में आए वैश्विक आर्थिक संकट से भी बदतर होगी.
एजेंसी का कहना है कि अत्यधिक मुद्रा सख़्ती और अनुपयुक्त वित्तीय सहायता से, विकासशील दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को, दीगर संकटों के लिये कमज़ोर हालात में धकेल सकती है.
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि आपूर्ति श्रृंखलाओं में देखे गए झटके, उपभोक्ता और निवेशकों के घटते भरोसे, और यूक्रेन में युद्ध जैसे मुद्दों ने, वैश्विक मन्दी के लिये उपयुक्त हालात और महंगाई के दबाव बनाए हैं.
निसन्देह, तमाम क्षेत्र प्रभावित होंगे, मगर विकासशील देशों के लिये सबसे ज़्यादा ख़तरे की घंटी बज रही है, उनमें से बहुत से देश तो, क़र्ज़ की अदायगी नहीं कर पाने की स्थिति के नज़दीक पहुँच रहे हैं.
जलवायु दबाव गहराने के साथ-साथ, कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के भीतर भी हानियाँ और क्षतियाँ ढ़ रही हैं क्योंकि इन देशों के पास इस तरह की आपदाओं का सामना करने के लिये वित्तीय स्थान मौजूद नहीं है.
रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था में, वर्ष 2022 में 2.5 प्रतिशत की मन्दी आएगी और वर्ष 2023 में 2.2 प्रतिशत की गिरावट होगी.
ये एक ऐसी वैश्विक मन्दी होगी जिससे जीडीपी कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले के समय से भी नीचे चली जाएगी और इससे दुनिया भर में उत्पादकता को 17 ट्रिलियन डॉलर की रक़म का नुक़सान होगा.
इस सबके बावजूद अनेक अग्रणी देशों के केन्द्रीय बैंक, बहुत तेज़ी से ब्याज़ दरें बढ़ा रहे हैं जिससे विकास अवरुद्ध होने और बहुत ज़्यादा क़र्ज़ वालों के लिये जीवन और भी ज़्यादा मुश्किल होने का ख़तरा बढ़ रहा है.
वैश्विक मन्दी से, विकासशील देश, क़र्ज़ों, स्वास्थ्य संकट और जलवायु संकटों की एक नई लहर के लिये जोखिम के दायरे में होंगे.
रिपोर्ट के अनुसार, लातीन अमेरिका में मध्य आय वाले देशों और अफ़्रीका में निम्न आय वाले देशों को इस वर्ष काफ़ी तेज़ मन्दी का सामना करना पड़ सकता है.